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Samastipur News:सोशल साइंस किट बच्चों को प्रोजेक्ट आधारित शिक्षण को बनायेगी सुगम

बूंद-बूंद पानी से घड़ा भरता है. यह कहावत हमने सबने पढ़ी-सुनी है, लेकिन अब बच्चें हकीकत में इस कहावत का मतलब और महत्व समझेंगे और माॅडल तैयार करेंगे.

Samastipur News:समस्तीपुर : बूंद-बूंद पानी से घड़ा भरता है. यह कहावत हमने सबने पढ़ी-सुनी है, लेकिन अब बच्चें हकीकत में इस कहावत का मतलब और महत्व समझेंगे और माॅडल तैयार करेंगे. वही बच्चे अपने माॅडल के माध्यम से बतायेंगे कि प्रकाश संश्लेषण एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से पौधे अपना भोजन स्वयं बनाते हैं. अब जिले के सरकारी विद्यालय के बच्चे सोशल साइंस किट के जरिए पृथ्वी की भौतिक विशेषताओं, प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिक तंत्रों की खोज से संबंधित ज्ञान मॉडल के जरिए अर्जित करेंगे. शिक्षा विभाग जल्द ही जिले के चयनित विद्यालयों में यह किट मुहैया करा पठन-पाठन को रोचक बनाने के लिए संकल्पित है. विदित हो अभी हाल में ही पहली से 12वीं कक्षा तक के छात्र-छात्राओं को शैक्षिक सामग्री उपलब्ध कराई गई है. हर सोशल साइंस किट में लगभग 24 प्रकार के मॉडल और टूल्स शामिल होंगे, जो बच्चों को विषय को प्रैक्टिकल रूप से समझने में मदद करेंगे. इन मॉडल्स में भूकंप का मॉडल, वोल्केनो मॉडल, सीस्मोग्राफ मॉडल, चंद्रमा की कलाएं और विंड डायरेक्शन इंडिकेटर (वायु दिग्दर्शक) जैसे उपकरण शामिल हैं. इनका उद्देश्य छात्रों को केवल किताबों तक सीमित न रखकर व्यावहारिक और अनुभवात्मक तरीके से सीखने का मौका देना है.इन मॉडल्स के माध्यम से बच्चों को कई फायदे होंगे. इससे उनकी रटने की आदत कम होगी, क्योंकि वे केवल किताबों में नहीं, बल्कि अनुभव के जरिए सीखेंगे. सब्जेक्ट रोचक और मजेदार बनेगा, जिससे क्लासरूम में पढ़ाई बोरिंग नहीं लगेगी. बच्चों की जिज्ञासा बढ़ेगी, वे खुद सवाल पूछेंगे और खोज करेंगे. इसके अलावा, किताबों का ज्ञान असली दुनिया से जुड़ जाएगा, और समूह में काम करने से उनका टीमवर्क और आत्मविश्वास भी मजबूत होगा. इसके अलावा, शिक्षकों को भी विशेष ट्रेनिंग दी जाएगी ताकि वे इन किटों का सही तरीके से इस्तेमाल कर सकें और इन्हें पाठ्यक्रम में शामिल कर सकें. शिक्षा विभाग का कहना है कि इससे बच्चों की वैज्ञानिक सोच और व्यावहारिक समझ मजबूत होगी. वे अब केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि मॉडल और उपकरणों के जरिए चीज़ों को प्रत्यक्ष रूप से देख और समझ पाएंगे. इससे विज्ञान के प्रति रुचि और आत्मविश्वास भी बढ़ेगा. बता दें यह पहल पहली बार पटना और पूरे राज्य के सरकारी स्कूलों में शुरू की जा रही है इसका मकसद बच्चों की पढ़ाई को मजेदार, अनुभव से सीखने वाला और आसान बनाना है. डीईओ कामेश्वर प्रसाद गुप्ता ने बताया कि प्रोजेक्ट आधारित शिक्षण से बच्चे व्यावहारिक रूप से सीखते हैं. छात्रों को एक आकर्षक अनुभव के माध्यम से ज्ञान और कौशल का प्रयोग करके सीखने के लिए प्रोत्साहित करती है.

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