Samastipur News:समस्तीपुर : निर्धनता व सामाजिक उपेक्षा का चक्र तोड़ने में शिक्षा की अहम भूमिका रहती आई है. इसीलिए बच्चों को शिक्षा से वंचित रखना एक तरह से अपराध ही है. चिंता की बात यह है कि सरकारी स्तर पर तमाम योजनाओं और कानूनी प्रावधानों के बावजूद बड़ी संख्या में बच्चे शिक्षा के मूलभूत अधिकार से वंचित हैं. खासतौर से वे बच्चे जिनके सिर से खेलने-कूदने की उम्र में माता-पिता दोनों का ही साया उठ गया. अधिकांश मामलों में रिश्तेदारों की ओर से भी उपेक्षापूर्ण रवैया इन्हें पढने का अवसर तक उपलब्ध नहीं करा पाता. कोरोना महामारी के दौर में अपने माता-पिता को खोने वाले बच्चे भी बड़ी संख्या में हैं. ऐसे बच्चों की शिक्षा लंबे समय से चिंता और चर्चा का विषय रही है. अनाथ बच्चों के शैक्षिक भविष्य में एक नया अध्याय जुड़ गया है. अब ऐसे बच्चे शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम के दायरे में आ गये हैं. इसके बाद अब अनाथ बच्चों की पढ़ाई में कोई बाधा नहीं आयेगी और अब सीधे निजी स्कूलों तक उनकी पहुंच होगी. इस अधिनियम के तहत ये बच्चे मुफ्त में ही निजी विद्यालयों में पढ़ाई कर सकेंगे. यह बदलाव हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद आया है. कोर्ट ने अनाथ बच्चों को भी आरटीई का लाभ दिए जाने का निर्देश दिया था. इसके बाद शिक्षा विभाग ने इसे तत्काल प्रभाव से बिहार में लागू करने का फैसला किया. शिक्षा विभाग के उप सचिव ने पिछले महीने आए कोर्ट के आदेश को 2 सितंबर से लागू करते हुए जिला शिक्षा पदाधिकारी और संबंधितों को पत्र लिखा है. मालूम हो कि इस प्रावधान के लागू होने के बाद वैसे बच्चे जिनके जैविक माता- पिता नहीं हैं, उन्हें इसका लाभ मिलेगा. शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 6 से 14 वर्ष की उम्र के हर बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार देता है. इसका मुख्य उद्देश्य हर बच्चे तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करना है. आरटीई के तहत सभी मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों को अपनी कुल सीटों का 25% कोटा कमजोर वर्ग और अलाभकारी समूह के बच्चों के लिए आरक्षित रखना अनिवार्य है. अब अनाथ बच्चे भी इसी दायरे में शामिल हो गये हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को ऐसे अनाथ बच्चों का सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया, जो ””बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009”” के तहत शिक्षा से वंचित हैं. शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यों को उन अनाथ बच्चों का सर्वेक्षण करना होगा, जिन्हें अधिनियम के तहत पहले ही प्रवेश दिया जा चुका है. साथ ही उन बच्चों का भी सर्वेक्षण करना होगा, जो अधिनियम के तहत मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं. यह भी पता लगाना होगा कि यदि ऐसा है, तो इसके पीछे क्या कारण हैं? राज्यों को इस संबंध में हलफनामा दाखिल करना होगा.
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