Samastipur News:पूसा : डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के संचार केंद्र स्थित पंचतंत्र सभागार में औषधीय एवं सुगंधित पौधों का उत्पादन, प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन विषय पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण शुरू हुई. अध्यक्षता करते हुए प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ रत्नेश कुमार झा ने कहा कि औषधीय एवं सुगंधित पौधे की बाजार को नियंत्रित रखने की जरूरत है. औषधीय पौधे की खेती सभी फसलों में सर्वोपरि है. यह जंगली जानवरों से भी सुरक्षित खेती होता है. प्रशिक्षण का उद्घाटन विवि के प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. आरके झा एवं वैज्ञानिक डॉ. शैलेश कुमार ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया. इस अवसर पर मौजूद प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित करते हुए डॉ. आरके झा ने कहा कि औषधीय पौधों की खेती किसानों के लिए काफी लाभकारी खेती है. उन्होंने कहा कि आजकल हर्बल उत्पादों का डिमांड बाजार में काफी अधिक है. औषधीय पौधों की मदद से बनने वाले हर्बल कास्टमेटिक आम कास्टमेटिक की तुलना में 10 गुना ज्यादा महंगे बिकते हैं. उन्होंने कहा की औषधीय पौधों की खेती में रासायनिक कीटनाशकों और खाद की आवश्यकता कम होती है. इसकी मांग पूरे साल बाजारों में बनी रहती है. औषधीय पौधे की खेती से मिट्टी की सेहत में सुधार होता हैं. उन्होंने कहा कि औषधीय पौधों का उपयोग दवा, कॉस्मेटिक और खाद्य उद्योग आदि में होता हैं। औषधीय पौधे कीट-प्रतिरोधी होने के साथ-साथ जलवायु अनुकूल भी होते हैं. इसकी खेती कम उपजाऊ भूमि पर भी आसानी से की जा सकती है. वैज्ञानिक डॉ. शैलेश कुमार ने कहा कि औषधीय पौधों की खेती विवि में काफी पहले से चल रही है. किसानों को अन्य फसलों की खेती के अलावा औषधीय पौधों की खेती भी निश्चित रूप से करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि ऐसे बहुत सारे औषधीय पौधे हैं जिसकी मांग हमेशा बाजार में बनी रहती है. सामान्य फसलों की तुलना में औषधीय फसलों की खेती किसानों को ज्यादा फायदा दिलाती है. उन्होंने कहा कि औषधीय पौधों के बाजार को नियंत्रित रखने की भी जरूरत है. मंच संचालन करते हुए डॉ. विनीता शतपथी ने कहा कि बिहार में औषधीय एवं सुगंधित पौधों की खेती100 हेक्टेयर से भी कम क्षेत्र में की जा रही है. परंपरागत खेती की तुलना में यह खेती अधिक लाभकारी एवं पर्यावरण के अनुकूल विकल्प साबित हो सकती है. औषधीय एवं सुगंधित पौधों से संबंधित उद्योग जैसे परफ्यूम, कॉस्मेटिक्स, आवश्यक तेल और एरोमा इंडस्ट्री का बाजार बहुत बड़ा है. इस दिशा में किसानों को तैयार करने के लिए डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा एरोमा कॉरिडोर विकसित करने की पहल कर रहा है.
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