पूसा : झारखंड एवं बिहार में मधुमक्खी पालन सहित कार्बनिक शहद के बेहतर बाजार का सृजन हो चुका है. भारत देश के लिए शहद एक आवश्यक सामग्री व तत्व के रूप में चरितार्थ होकर औषधी का कार्य संपादित कर रहा है. इसे विश्वविद्यालय के सहयोग से हमेशा सर्वोत्तम बाजार दिलाने का प्रयास किया जा रहा है.
किसानों को प्रशिक्षण के उपरांत संगठित होकर छोटे-छोटे समूहों को एक साथ मिलकर अधिकाधिक शहद उत्पादन करने की जरूरत है. इस व्यवसाय को स्वरोजगार से जोड़कर किसानों की आमदनी दोगुनी संभव हो सकता है. फसलों में ज्यादा से ज्यादा रासायनिक खाद के प्रयोग से पर परागण के समय में मधुमक्खी जहरीले पराग को चूसकर मधु का उत्पादन करता है.
जिसका दुष्प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता प्रतीत हो रहा है. ये बातें डा. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय स्थित संचार केंद्र में मधुमक्खी पालन की वैज्ञानिक तकनीक विषय पर चल रहे पांच दिनी प्रशिक्षण के समापन सत्र को संबोधित करते हुए बतौर मुख्य अतिथि प्रसार शिक्षा निदेशक डा. केएम सिंह ने कही.
प्रसार शिक्षा सहनिदेशक डा. ब्रजेश शाही ने कहा प्राकृतिक रूप से जीने के लिए साधन रहने वाले क्षेत्रों में ही मानव जीवन गुजर बसर कर सकता है. धन्यवाद ज्ञापन प्रसार शिक्षा उप निदेशक प्रशिक्षण डा. पुष्पा सिंह ने किया. मौके पर डा. केके वर्मा, समन्वयक श्रीकांत कुमार, ज्ञानरंजन, विक्रांत कुमार, रामाधार महतो, महेश साह आदि मौजूद थे.