वैज्ञानिक के सलाह से किसानों की बदल सकती है किस्मत सहरसा . जिले की पहचान अब सिर्फ धान व मक्के की खेती तक सीमित नहीं रहेगी. अब यहां की मिट्टी से भी फूलों की खुशबू महक उठेगी. जिले की बालू दोमट मिट्टी अब गेंदा व गुलाब जैसे फूलों की खेती के लिए बिल्कुल उपयुक्त मानी जा रही है. फिलहाल जिले के बाजार में जो फूल बिकते हैं, वे कोलकाता व बंगाल के अन्य जगहों से आते हैं. वहां से लाए गये इन फूलों की कीमत यहां पहुंचते-पहुंचते लगभग दोगुनी हो जाती है. ऐसे में स्थानीय किसान खुद फूलों की खेती शुरू करें, तो उन्हें ना सिर्फ अच्छी कीमत मिलेगी. बल्कि अब यहां अच्छा बाजार भी मौजूद है. जिले की मिट्टी फूल खेती के है अनुकूल कृषि अनुसंधान केंद्र अगुवानपुर के उद्यान विभाग के वैज्ञानिक डॉ पंकज कुमार ने कहा कि जिले की मिट्टी व जलवायु फूलों की खेती के लिए बेहद अनुकूल है. यहां के किसान परंपरागत फसलों के साथ फूलों की खेती अपनाएं तो वे बहुत अच्छी आमदनी कमा सकते हैं. फूलों की खेती में बीमारी व कीटों का प्रकोप बहुत कम होता है. जिससे किसानों को कम नुकसान व ज्यादा मुनाफा मिलता है. किसान सही किस्म एवं सही समय पर खेती करें तो यह बेहद लाभदायक साबित हो सकती है. गेंदा व गुलाब की खेती इस माह है उपयुक्त उन्होंने कहा कि गेंदा एवं गुलाब फूल की खेती के लिए नवंबर का महीना सबसे उपयुक्त होता है. अभी का समय इस खेती की शुरुआत के लिए बिल्कुल सही है. गेंदा की कई उन्नत किस्में हैं जिसमें पूसा नारंगी, पूसा बसंती, पूसा अर्पिता व स्पंज वैरायटी शामिल है. इन वैरायटी की मांग बाजार में बहुत अधिक रहती है. कोई किसान बीज लगाना चाहता है तो प्रति हेक्टेयर तीन सौ से चार सौ ग्राम बीज की आवश्यकता होती है. मिट्टी को उपजाऊ बनाना जरूरी कृषि अनुसंधान केंद्र अगुवानपुर के उद्यान विभाग के वैज्ञानिक डॉ पंकज कुमार ने कहा कि मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए खाद एवं उर्वरक की जरूरत होती है. खासकर फूलों की खेती में मिट्टी को उपजाऊ बनाए रखना बेहद जरूरी है. इसके लिए प्रति हेक्टेयर दो सौ क्विंटल वर्मी कंपोस्ट डालना चाहिए. साथ ही नाइट्रोजन एक सौ से 120 किलो, फाॅस्फोरस व पोटाश 70 से 80 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में प्रयोग किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि किसान इस ओर जागरूक हो रहे हैं. लेकिन सरकार के स्तर प्रोत्साहन की जरूरत है. पौधे के पिंचिंग से बढ़ती है उपज जब पौधे की उम्र 30 से 35 दिन की हो जाती है, तब उसका पिंचिंग करना आवश्यक होता है. पौधे के मुख्य शीर्ष को हल्का काट देना, इससे पौधे में साइड ब्रांचिंग बढ़ती है व फूलों की संख्या भी ज्यादा होती है. यही तकनीक उपज बढ़ाने में सबसे अहम भूमिका निभाती है. किसान इस पद्धति से फूलों की खेती करें, तो उन्हें प्रति हेक्टेयर 80 से 100 क्विंटल तक की उपज मिल सकती है. सबसे खास बात फूलों की खेती में उत्पादन लागत कम एवं मुनाफा अधिक होता है, फूलों की खेती की ओर मुड़ रहे किसान जिले के किसान अब पारंपरिक खेती से आगे बढ़ रहे हैं. धीरे-धीरे किसान गेंदा, गुलाब एवं अन्य फूलों की खेती की ओर रुख कर रहे हैं. इस बदलाव से ना सिर्फ किसानों की आमदनी बढ़ेगी. बल्कि जिले की पहचान भी बदलेगी. धान का कटोरा कहलाने वाला जिला अब फूलों की घाटी के नाम से जाना जा सकता है. उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि जिले के किसान छोटे स्तर पर ही सही, फूलों की खेती शुरू करें. बाजार की कोई कमी नहीं है. पूजा-पर्व, शादी-ब्याह एवं धार्मिक आयोजनों में फूलों की मांग हमेशा बनी रहती है.
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