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कुसहा त्रासदी के 16 वर्ष गुजर जाने के बाद भी लोगों के जख्म हैं हरे

कुसहा त्रासदी के 16 वर्ष गुजर जाने के बाद भी लोगों के जख्म हैं हरे

कोसी की संरचनाओं को संवारकर सुंदर कोसी बनाए जाने का अहम सवाल आज भी है जिंदा पतरघट. कुसहा त्रासदी के 16 वर्ष गुजर जाने के बाद आज भी उस प्रलयंकारी बाढ़ के जख्म भरें नहीं हैं. वर्ष 2008 के 18 अगस्त को नेपाल के कुसहा के समीप कोसी बांध टूटने के पांच दिन बाद 22 अगस्त की काली रात को बाढ़ के पानी ने भयंकर तबाही मचाते इस इलाके में प्रवेश किया था. 23 अगस्त की सुबह से लोग अपने अपने घरों को छोड़ जान माल की हिफाजत के लिए सुरक्षित जगह के लिए निकल पड़े थे. उस समय कौन अपनों से बिछड़ा कौन कहां छुटा किसी को होश नहीं रहा. जो निकल गए वो भी अपनों के गम में परेशान थे. जो रह गए वो पानी से घिरकर जिंदगी के जद्दोजहद से जूझ रहे थे. चारों तरफ सड़क संपर्क भंग हो चुका था. सरकारी स्तर से कहीं कहीं नावों की मुकम्मल व्यवस्था की गयी थी. लेकिन वह भी कम पर चुका था. बेघर लोग भूख प्यास से परेशान थे. किसी को कोई देखने सुनने वाला तक नहीं था. स्कूलों, उंचे-उंचे सार्वजनिक जगहों पर सरकारी एवं स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा शिविर के माध्यम से बेघर लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था शुरू की गयी. राष्ट्रीय आपदा घोषित होने के बाद निजी संगठनों एवं संस्थाओं द्वारा बाढ़ प्रभावित इलाकों में जाकर बाढ़ प्रभावित लोगों को खाने पीने से लेकर कपड़ा, दूध सहित अन्य राहत सामग्री मुहैया कराए जाने के बाद राहत महसूस हुआ. जिसके बाद सरकारी स्तर से क्षेत्र के लगभग 27 हजार परिवार को अनाज एवं राशि आपदा प्रबंधन राहत कोष से मुहैया कराया गया. बाढ़ से प्रभावित लोगों को बिहार कोसी बाढ़ सम उत्थान परियोजना के तहत दिए जाने वाले कोसी पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण योजना का लाभ कुछ पंचायतों तक ही सिमटकर रह गया. 11 पंचायतों में मात्र पांच पंचायत विशनपुर, गोलमा पुर्वी, गोलमा पश्चिम, पामा व पस्तपार पंचायत के 3231 लाभुकों को इस योजना के तहत भवन निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया गया था. जिसमें से 3033 लाभुकों को ही राशि मुहैया कराया गया. शेष आज भी लाभ से वंचित हैं. कुसहा त्रासदी से प्रभावित हुए लोगों का आज भी कहना है कि मानव निर्मित त्रासदी के असली गुनहगार को सरकार आज तक भी नहीं खोज सकी. सरकार द्वारा गठित वालिया जांच समिति की रिपोर्ट में कुसहा त्रासदी के जिम्मेदार पर आज तक कतिपय कारणों से कोई कार्रवाई नहीं किए जाने से संदेह उत्पन्न हो रहा है. कोसी की संरचनाओं को संवारकर सुंदर कोसी बनाए जाने का अब क्या होगा. यह अहम सवाल आज भी जिंदा है. 18 अगस्त 2008 का वह काला दिन जहां नेपाली प्रभाग के तहत कुसहा गांव के समीप लगभग दो किलोमीटर की लंबाई में तटबंध बह जाने से नेपाल के 34 गांव सहित कोसी प्रमंडल के 441 गांव की बड़ी आबादी बाढ़ की चपेट में आकर बह खप गए. बडी आबादी ने झेला त्रासदी बेकाबू कोसी जिस होकर गुजरी उधर सिर्फ पानी के साथ-साथ बर्बादी ही बर्बादी नजर आया. बेकाबू स्थिति पर तब के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोसी क्षेत्र में आयी प्रलयंकारी बाढ़ की चपेट में आए मृतक के परिजनों को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन राहत कोष से एक लाख, मुख्यमंत्री आपदा प्रबंधन राहत कोष से एक लाख एवं राज्य आपदा प्रबंधन राहत कोष से 50 हजार रुपया सभी प्रभावित परिजनों को दिए जाने की घोषणा भी कर दी. बावजूद आज भी यहां के क्षेत्रवासियों को कुसहा त्रासदी का जख्म हरा भरा नजर आ रहा. ध्वस्त हो चुकी कोसी की संरचनाओं को संवारकर सुंदर कोसी बनाए जाने का अब क्या होगा यह अहम सवाल आज भी जिंदा है. कुसहा त्रासदी के बाद तत्कालीन केंंद्र सरकार एवं राज्य सरका द्वारा उस दौरान बड़ी बड़ी घोषणा भी हुई थी. लेकिन आलम यह है की अधिकारियों द्वारा जिले से लेकर प्रखंड स्तर तक कुसहा त्रासदी से जुड़े सभी फाइलों को बंद कर दिया गया.

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