अदिति की यात्रा एक कलाकार की यात्रा नहीं, साधना की है कहानी सहरसा . कहते हैं कि हर कलाकार की राह केवल मंच तक नहीं जाती. बल्कि आत्मा की गहराइयों तक पहुंचती है. कथक नृत्यांगना अदिति की यात्रा भी कुछ ऐसी ही है. जहां कदम सिर्फ धरती पर नहीं पड़ते, बल्कि समय व परंपरा की धारा में भी अपनी छाप छोड़ते हैं. नवहट्टा प्रखंड के मुरादपुर की निवासी अदिति, संतोष झा एवं अंजू झा की सुयोग्य पुत्री है. साथ ही वह एमएलटी कॉलेज से स्नातकोत्तर की छात्रा भी है. अदिति के जीवन में नृत्य का बीज बचपन में ही अंकुरित हुआ. नृत्य की प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने शशि सरोजनी रंगमंच संस्था से प्राप्त की. जिसके बाद राष्ट्रीय कथक केंद्र के पूर्व छात्र व वर्तमान नृत्य शिक्षक रोहित झा के सान्निध्य में घंटों तक चलने वाला पखावज का अभ्यास, लयकारी की बारीकियां एवं भावाभिनय की सूक्ष्मता इन सबने उन्हें एक साधक की दृढ़ता प्रदान की. उनकी साधना में तप है, अनुशासन है एवं सबसे बढ़कर नृत्य के प्रति अटूट प्रेम. जब अदिति मंच पर आती हैं तो उनके पांवों की ताल जैसे तालाब की लहरों में गूंजती हैं. उनकी आंखों के भाव दर्शकों को अदृश्य यात्राओं पर ले जाते हैं. एक ओर उनकी प्रस्तुतियों में राधा-कृष्ण की रसमयता है तो दूसरी ओर तिहाइयों की सटीकता व झपताल की चंचलता. उनके नृत्य में परंपरा का गहन अनुशासन भी है व नवाचार की ताजगी भी. कोसी महोत्सव, उग्रतारा महोत्सव, युवा उत्सव,सिंहेश्वर महोत्सव जैसे कई प्रतिष्ठित मंचों पर अदिति की प्रस्तुतियों ने दर्शकों का ध्यान खींचा है एवं उन्हें विशेष रूप से सराहा गया है. राह नहीं रही आसान हर कलाकार की तरह अदिति की राह भी सरल नहीं रही. अभ्यास के कठोर दिन, थकान के बावजूद ना रुकने का संकल्प एवं मंच पर हर बार नयी उंचाई छूने की जिद यही उनके संघर्ष की कहानी है. उन्होंने सीखा कि पसीने की हर बूंद कला को सींचती है एवं हर असफलता साधना का एक नया सोपान बनती है. आज अदिति केवल एक नृत्यांगना नहीं, बल्कि कथक की परंपरा व आधुनिकता के बीच एक सेतु बन चुकी है. उसका उद्देश्य है कि कथक की आत्मा, उसकी गहराई, उसका रस एवं उसकी शक्ति नयी पीढ़ी तक पहुंचे. वह मानती हैं कि नृत्य केवल कला नहीं, बल्कि जीवन की भाषा है. अदिति ने कहा कि उसके लिए कथक केवल मुद्राओं एवं गतियों का खेल नहीं है. यह आत्मा एवं ब्रह्मांड के बीच संवाद है. हर तिहाई, हर घुमाव एवं हर भाव मेरे भीतर की प्रार्थना है. जब मंच पर होती हैं तो लगता है जैसे अकेली नहीं, बल्कि अपने साथ लखनउ घराने की सैकड़ों साल पुरानी परंपरा लेकर नृत्य कर रही हैं. अदिति की यात्रा केवल एक कलाकार की यात्रा नहीं, बल्कि उस साधना की कहानी है जो घुंघरुओं की हर गूंज के साथ और गहरी होती जाती है. उनके पांवों की ध्वनि, उनके भाव की संवेदना एवं उनके रियाज का अनुशासन उन्हें कथक की उस अनवरत धारा से जोड़ते हैं, जो गंगा की तरह सतत बहती है शुद्ध, निर्मल व जीवनदायिनी.
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