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हथियार छोड़ पकड़ी कलम तो धो डाला गांव का कलंक, 150 युवकों ने नौकरी प्राप्त कर पेश की मिसाल

सासाराम : गांव में पुलिस कभी भी आ धमकती थी. बच्चे और महिलाएं हमेशा सहमे हुए रहते थे. उनका अधिकांश समय इसमें गुजरता था कि किसके घर पुलिस आयी और किस केस में नाम दर्ज हो गया है. यह स्थिति एक दशक पूर्व तक थी. एक व्यक्ति ने शिक्षा की ऐसी बयार चलायी कि आज […]

सासाराम : गांव में पुलिस कभी भी आ धमकती थी. बच्चे और महिलाएं हमेशा सहमे हुए रहते थे. उनका अधिकांश समय इसमें गुजरता था कि किसके घर पुलिस आयी और किस केस में नाम दर्ज हो गया है. यह स्थिति एक दशक पूर्व तक थी. एक व्यक्ति ने शिक्षा की ऐसी बयार चलायी कि आज हर घर में एक ना एक व्यक्ति सरकारी नौकरी में है. वह भी गृह मंत्रालय से लेकर सेना और राज्य सरकार के विभागों में. यह हाल जिले के दिनारा प्रखंड के रामपुर गांव का है.

एक समय था कि इस गांव के प्राय: घरों के युवक और अधेड़ कुछ प्रतिशोध में तो कुछ सोहबत के कारण आपराधिक गतिविधियों को पसंद करते थे. इसके पीछे अशिक्षा भी एक महत्वपूर्ण कारण था. आपराधिक गतिविधियों का आलम यह था कि दिन हो या रात, कभी भी गोलियों की तड़तड़ाहट से गांव की गलियां गूंज उठती थीं. प्राय: घरों में हाथियार उपलब्ध थे, जिसके कारण ग्रामीण क्षेत्रों इस गांव को लोग चोरवा गांव के नाम से पुकराने लगे थे. जबकि, गांव का नाम भगवान श्रीरामचंद्र के नाम पर पुराने लोगों ने रामपुर रखा था. वर्तमान समय में गांव में करीब 90 घर हैं.

एक दशक पूर्व गांव के कालिका प्रसाद सिंचाई विभाग में एसडीओ के पद पर थे, तो बहादुर सिंह रेलवे में नौकरी कर रहे थे और भगवान सिंह एचसीएल में नौकरी कर सेवानिवृत्त हो चुके थे. इन तीनों को गांव की स्थिति कचोट रही थी. तीनों ने आपस में सलाह कर अपने घर के युवाओं से अनुशासन का पालन कराने लगे. उन्हें बिगड़े हुए युवा से दूर रखने के साथ पढ़ाई और व्यायाम में मन लगाने को तैयार किया. इसका परिणाम सामने आया कि इनके घरों के युवा सरकारी नौकरी पाने में सफल रहे. फिर क्या था? गांव की फिजा बदल गयी और आज हर घर में एक व्यक्ति सरकारी नौकरी करनेवाला है. साथ ही गांव की भी छवि भी बदल गयी. 10 वर्षों के अंदर गांव के युवाओं ने शिक्षा व मेहनत की बदौलत ना सिर्फ गांव को अलग पहचान दिलायी, बल्कि कुछ अलग करने की सोच और सरकारी नौकरी हासिल करने के जुनून ने गांवों के युवाओं के लिए एक रोल मॉडल बन चुका है.

गांव का नाम लेने में अब शर्म नहीं, होता है गर्व

एक समय था, जब गांव छद्म नाम लोगों को शर्मिंदा करता था, लेकिन अब नहीं. अब तो गांव के लोग अपने गांव का नाम सीना तान कर सबके सामने लेने में गर्व महसूस करते हैं. गांव में प्राथमिक विद्यालय है. उच्च शिक्षा के लिए यहां के युवाओं को नटवार या संझौली जाना पड़ता है. मैट्रिक के बाद अधिकांश युवा दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, वाराणसी, पटना, कोटा जैसे शहरों की रुख कर लेते हैं. गांव के चितरंजन, मंजीत, श्याम बाबू, सुजीत, विकास, धीरज, नवीन, सुधीर आदि ने कहा कि हम सब न सिर्फ गांव पर लगी बदनामी के धब्बे को मिटाना चाहते हैं, बल्कि एक अलग इतिहास रच गांव का नाम ऊंचा करना चाहते हैं.

केस-मुकदमे के लिए जमीन को बेचना हो गयी थी आम बात

कभी चोरवा गांव से बदनाम रामपुर गांव में घर में हथियार रखने और केस लड़ने के लिए खेत और जमीन बिक जाता था. कहीं कोई घटना हो, उसमें इस गांव के युवाओं का नाम आ जाता था और फिर केस और मुकदमा. इसके लिए जमीन और खेत बेचना आम बात थी. लेकिन, जब युवाओं ने शिक्षा की ओर रुझान किया, तो अभिभावकों की सोच भी बदल गयी. लगभग पूरा गांव अपराध की दुनिया से तौबा कर चुका है. अब यहां के खेत पुलिस और न्यायालय के चक्कर में नहीं, बल्कि अपने लाडले के भविष्य को संवारने के लिए ही बिकते हैं. गांव के राजबली सिंह बताते हैं कि मैंने बेटे-बेटियों की पढ़ाई में करीब एक बीघा खेत बेचा है. लेकिन, मुझे इसकी परवाह नहीं. राजबली सिंह गांव में अकेले नहीं हैं. गांव के राजाराम सिंह, ललन सिंह, राजेंद्र सिंह, रामविलास सिंह जैसे अभिभावक अपने बच्चों के भविष्य बनाने के लिए जमीन बिकने की चिंता नहीं करते. वे अपने बच्चों को ऊंची उड़ान भरना देखना चाहते हैं. इसके लिए जो भी कीमत लगे.

150 युवाओं ने नौकरी प्राप्त कर पेश की मिसाल

मात्र एक दशक में इस छोटे गांव रामपुर के करीब 150 युवाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में नौकरियां हासिल कर एक मिसाल पेश की हैं. 150 में रितेश पुष्कर गृह मंत्रालय में भगोलविद्, निर्मल सिंह इसरो में अभियंता हैं, तो चार दारोगा, दो बैंक पीओ, करीब 30 युवक सेना में अपनी जांबाजी दिखा रहे हैं. करीब एक दर्जन इंजीनियर हैं, तो करीब डेढ़ दर्जन रेलवे में नौकरी कर रहे हैं. इसके अलावा करीब 30 युवा निजी कंपनियों में अच्छे पदों पर कार्यरत हैं.

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