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जिले में कहां चला किसका जोर कहां किसकी मजबूत रही डोर

विधानसभा चुनाव

विधानसभा चुनाव :

मौजूदा राजनीतिक हालात में पेंचीदा हो रहा है समीकरण और वोटों के विभाजन का प्रश्न

मतदान के बाद उछाल खाते सवालों का जवाब ढूंढ़ने के लिए मगजमारी कर रहे लोग

पूर्णिया. मतदान सम्पन्न होने के बाद अब समीकरण का सवाल उछाल खा रहा है. आम लोग यह जानने के लिए बेताब हो रहे हैं कि इस चुनाव में कहां किसका जोर चला, कहां किस गठबंधन की डोर कितनी मजबूत रही और कहां नया फैक्टर काम आया. हालांकि इस तरह के सवाल अभी अनुत्तरित हैं पर शहरवासी इन सवालों के जवाब के लिए अभी भी मगजमारी कर रहे हैं. आलम यह है कि मौजूदा हालात में नया समीकरण और वोटों के विभाजन का सवाल पेंचीदा हो रहा है और यही वजह है कि हर कोई असमंजस की स्थिति में है. अलबत्ता यह माना जा रहा है कि इस बार की चुनावी लड़ाई विकास बनाम बदलाव के नाम पर लड़ी गयी.

राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो इस चुनाव में हार-जीत का संदेश इन्हीं सवालों के पीछे छिपा है. एक सवाल है कि इस चुनाव में महिलाओं का झुकाव किधर था. वोट के इस बाजार में महिला वोटरों की चर्चा गर्म है. लोग कहते हैं कि महिलाएं अब मतदान का मतलब ही नहीं, अपना अधिकार भी समझने लगी हैं. महिलाओं की इस जागरूकता का अंदाजा पिछले चुनावों में उनकी सहभागिता से लगाया जा सकता है. खास तौर पर 2005 के चुनाव के बाद से चाहे वे स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हों या फिर जीविका के कार्यक्रमों से जुड़ी हों, उनका झुकाव कहीं न कहीं जरूर रहा है. लोग यह जानना चाहते हैं कि इन महिलाओं ने क्या इस बार मिथक तोड़ दी? अगर मिथक टूटा तो इसका प्रतिशत कितना हो सकता है. चुनावों के परिदृश्य पर नजर डालें तो 2005 के बाद से हर चुनाव में महिलाओं के वोट का प्रतिशत पुरुषों की अपेक्षा अधिक रहा है. अगर 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में महिलाओं की वोटिंग का प्रतिशत देखा जाए तो वहां भी पुरुषों की अपेक्षा आगे रहा है.

अहम तो यह है कि इस बार भी मतदान केंद्रों पर महिला वोटरों की लंबी कतार देखी गयी. मतदान के बाद का आंकड़ा देखा जाए तो जिले के सभी सातों विधानसभा क्षेत्रों में मतदान करने वाली महिलाओं की संख्या पुरुषों की अपेक्षा अधिक रही है. राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि इस तरह की महिला वोटरों ने 15 सालों की इस धारणा के उलट मतदान किया है तो चुनाव परिणाम पर इसका जबरदस्त असर हो सकता है. राजनीतिक प्रेक्षक इन सवालों का जवाब युवाओं में भी ढूंढ़ रहे हैं. प्रेक्षकों का मानना है कि इस दफे युवा वोटरों में भारी इजाफा हुआ है.. इस लिहाज से वे इस मामले में पूर्णिया की तकदीर भी लिख सकते हैं. जवाब यह ढूंढा जा रहा है कि इन युवा वोटरों की सोच क्या रही और युवाओं के वोट का ट्रेंड क्या रहा.

वैसे, इस बार युवा नौकरी व रोजगार के मुद्दे पर गोलबंद दिखे. आज के युवा न तो जंगलराज जानते हैं और न ही इसका उनपर कोई असर दिखा. कई युवा कहते हैं कि नब्बे में क्या था उन्हें कुछ पता नहीं आज जब वे युवा बने हैं तो उनके सामने रोजगार का बड़ा संकट खड़ा है. नौकरी के लिए वे भटक रहे हैं पर व मिल नहीं रही. बीते मंगलवार को मतदान के दौरान कई युवा वोटरों ने बातचीत के क्रम में अपने विचार रखे. युवा ही वह वर्ग है जो एग्रेसिव होकर मतदान करता है. लोग यह जानने के लिए बेताब हैं कि इन सवालों को लेकर क्या उनकी गोलबंदी हो पायी. अगर वे गोलबंद हुए तो यह वोट में किस हद तक तब्दील हो पाया ? प्रेक्षकों का कहना है कि इन सवालों के अलावा यह देखना भी जरूरी है कि किसे कितना लाभ मिल सकता है. यह भीदेखना होगा कि कहां किसके वोट बैंक में किसने कितनी सेंधमारी की ओर किसको इससे लाभ मिल सकता है.

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