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‘का हो भइया, अबकी बेर केकरा सिर पर सजतय ताज’

चाय पर चौपाल

चाय पर चौपाल

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चर्चा में कहीं लहर का हौवा तो कहीं चुप्पा हावी

अपनी गणना में कोई एक घंटा देर करने को तैयार नहीं

पूर्णिया. ‘का हो ललन भइया, केकरा तकदीर बना रहे है! हमरा पूछे का मतलब ई है कि अबकी का होने वाला है. ई बार केकरा सिर पर सजतय ताज? गुरुवार की सुबह चनेसर साव की दुकान पर चाय की चुस्की लेते हुए जब ललन जी से उनके पड़ोसी ने सवाल किया तो वे खीझते हुए बोले- अरे कुछ घंटा धैर्य नहीं रख सकते का? धीरज रखो, यहां तो अपने दिमगवा काम नहीं कर रहा है. अरे, ठीक कहे ललन भइया, हमरो सबके यही हाल है. दोनों की चुनावी चर्चा सुन रहे बडकू बाबू को मानो टपकने का मौका मिल गया. बोले, अबकी वोटवा का गणिते गड़बड़ा रहा है. एतना तो समझ में आता है कि मुस्लिम वोट एकतरफा गिरा पर समीकरण वाला वाई कहां कितना गिरा, केतना बंटा, ईहे में उलझा जाते हैं. देखिये, ललन भाई, हमको तो लगता है कि यहां फिर कमलवे खिलेगा… अरे का बड़कू बाबू, बववन जैसन बात कर रहे हैं. बड़कू की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि ललन जी चिडचिड़ा गये…. ई बार कौनो नेतवन के लहर था का? लहर था बदलाव का, लिए इसलिए कहते हैं कि मुगालते में नहीं रहिए, समीकरण वाला पूरा”””” माय”””” के थोक वोट हथवा में गया है, चलिये आपही के बात मान लेते हैं पर का ई भूल गये कि नरेन्द्र मोदी विकास के खातिर सबका मन मिजाज बना के गये हैं. अरे भइया ई सबसे कुछु नहीं होता है. चाय-निमकी के चटकारे के लिए पहुंचे जुम्मन भाई टपक पड़ते हैं. अपना पूर्णिया में कभी कौनो लहर काम नहीं करता है. ईहां लोगवन सब काम देखते हैं, नेताजी का मन-मिजाज देखते हैं तब वोट डालते-डलवाते हैं. ललन जी को मुखातिब देख जुम्मन भाई बात खत्म करने के मूड में आ जाते हैं. देखिये, ई बार बदलाव का बयार था और ई जो आप लोग वोट का चक्कर में पड़े हैं न इसमें मगजमारी बेकार है. ई राज तो जुमादिने के खुल जाएगा जब काउंटिंग होगी. हां, भाई जान, आप ठीके कहते हैं, सज्जन बाबू को जैसे कहने का मौका मिल गया, कहने लगे यहां तो वोटरवे इतना चतुर हो गया है कि कुछ पता नहीं चलने दिया, सब अनुमाने लगा-लगा के संतोष कर रहे है. पूर्णिया में जहां भी जाइये, वहीं चुनाव की चर्चा से सामना होगा. अब जबकि चुनाव परिणाम आने में महज कुछ घंटे शेष बचे हैं, लोगों का उतावलापन और बढ़ गया है, चनेसर साव की चाय दुकान हो या कोई रेस्तरां, हर जगह आपसी बात-चीत का यही नजारा सहज ही नजर आ रहा है. आलम यह है कि लोग जहां मिलते हैं वहीं शुरू हो जाते है. मतगणना में भले ही देर हो पर ये लोग अपनी गणना करने में एक घंटा भी देर करने को तैयार नहीं, हर कोई परिणाम के लिए बेताब है.

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