पूर्णिया. विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे परवान पर चढ़ रहा है, वैसे-वैसे चुनावी शोर भी बढ़ती जा रही है. शहर से गांव तक अचानक लाउड स्पीकरों पर नेताजी की बात गूंजने लगी है. दिन में तो लोग काम पर रहते हैं पर सुबह और देर शाम यह आवाज कई लोग बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं. आलम यह है कि जो लोग सुबह भजन की आवाज सुनकर नींद से जग रहे थे वे अहले सुबह लाउड स्पीकरों में गूंजती सियासी शोर से जग रहे हैं. देर शाम जब नींद से आंखें बंद होने लगती हैं तो यही आवाज नींद उड़ा ले जाती है. कभी लोग कोसते हैं तो कभी अपने आप से सवाल करते हैं कि इस पर कोई पाबंदी क्यों नहीं लगाता. दरअसल, पिछले दो दिनों से लाउड स्पीकरों का सियासी शोर काफी तेज है. शहर हो फिर गांव, गली-मोहल्ले में हर पांच मिनट के बाद कोई न कोई दल का चुनाव प्रचार की गाड़ी चली आ रही है और लाउडस्पीकर की कानफाड़ू आवाज सबको बेचैन कर जा रही है. कहीं मोबाइल पर होती बात दब जा रही है तो कहीं घरों में आपसी चर्चा को ब्रेक लग जा रहा है . उन सबकी परेशानी तो और बढ़ गई है जिनके घर या दुकान के अगल-बगल में दलों के चुनावी कार्यालय खुले हुए हैं. चुनाव कार्यालय से तेज आवाज में लाउडस्पीकर बजने पर घर या दफ्तर के आसपास मोबाइल पर किसी की कॉल आने पर पहले तो पता नहीं चलता है और अगर कॉल रिसीव कर लिए तो बात करना मुश्किल हो जाता है. लोगों को बात करने के लिए दूसरी ओर जाना पड़ रहा है. सबसे ज्यादा दिक्कत चुनाव कार्यालय के आसपास के दुकानदारों को हो रही है जहां लाउड स्पीकरों की आवाज अधिक होने से ग्राहक व दुकानदार की आवाज उसमें दब जाती है. उन्हें तेज आवाज में बोलना पड़ रहा है. कुछ लोग ऐसे भी हैं जो लाउड स्पीकरों हो रहे चुनाव प्रचार पर मस्ती कर रहे हैं. कहते हैं, अरे नेताजी जितना मचाना है मचा लीजिए शोर…हम भी तैयार हैं… 11 नवम्बर को ही इसका हिसाब करेंगे. लोग कहते हैं कि शोर तो सब मचा रहा है पर पता नहीं, इस बार किसका बेड़ापार होगा. चन्देसर कीदुकान पर शाम की चाय पीने आए सबनूर अली कहते हैं कि प्रचार का यह तरीका ठीक नहीं है. सब डिस्टर्व हो जाता है. तरीका यह होना चाहिए कि घर-घर आदमी घूम जाए, जो पसंद आएगा उसे लोग वोट दे देंगे. मगर, यहां तो उल्टे होता है. प्रचार के जरिये सब अपने आपको बड़ा आदमी बताने के चक्कर में रहते हैं. जिसका जितना ज्यादा गाड़ी जितना ज्यादा शोर वह उतना ही बड़ा और जनता का प्रिय बनने की कोशिश में है. राजू सहनी कहते हैं,चलिये, अब कुछ ही दिन तो है, झेल लेते हैं नेताजी का शोर-शराबा, फिर तो 14 को तो तय हो हीजाएगा कि कौन कितना बड़ा रहा !
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