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सुलग रहा है पूर्णिया में हाइकोर्ट बेंच की स्थापना का मुद्दा, जनता कर रही सवाल

जनता कर रही सवाल

जनता पूछ रही सवाल, जनहित की मांग में आपका क्या रहा है योगदान

कई बार हुए आंदोलनात्मक कार्यक्रम पर क्यों नहीं हुई आपकी भागीदारी

पूर्णिया. विधानसभा चुनाव इस बार हाइकोर्ट बेंच की स्थापना का मुद्दा सुलग रहा है. लोग सवाल पर सवाल कर रहे हैं पर नेताजी के पास देने को जवाब नहीं मिल रहा. हालांकि नेताजी अपने तई जनता को संतुष्ट करने की कोशिश करते हैं पर जनता भी बड़ी बेबाकी से कहती है, जिसने अपने दायित्व का निर्वाह किया उसे जब जानते हैं पर इसमें आपका अपना क्या योगदान रहा ? इस मांग को लेकर कई-कई बार आंदोलनात्मक कार्यक्रम हुए पर कभी आपकी भागीदारी नहीं रही. जनहित की मांग का मर्म जिसने समझा, पहल की पर आप क्यों खामोश क्यों रह गये. आम जनता के पास नेताजी से पूछने के लिए ऐसे ढेर सवाल हैं पर इसमें हाइकोर्ट बेंच की स्थापना बड़ा मुद्दा बना हुआ है.

दरअसल, पूर्णिया में हाइकोर्ट बेंच की मांग कोई नई नहीं है. इसके पहले भी यह मांग उच्च न्यायालय की चौखट तक पहुंची थी. पूर्णिया के चर्चित अधिवक्ता स्व. के.पी. वर्मा इसे लेकर 13 वर्षों तक मुहिम चलाते रहे. उन्होंने नब्बे के दशक में पटना हाइकोर्ट में इसे लेकर रिट याचिका भी दायर की थी. इसके पहले उनकी ही पहल पर पूर्णिया में 1981 में ऑल इंडिया बार एंड बेंच यूनिटी कांफ्रेंस हुआ था जिसमें शिकरत करने पहुंचे न्यायाधीश एवं दूसरे राज्यों के अधिवक्ता ने इस मांग को मजबूत आधार दिया. पूर्णिया के अधिवक्ताओं ने भी इस मांग को लेकर कई कार्यक्रम किए और अपनी आवाज पटना से दिल्ली तक पहुंचाने की कोशिश की. कालांतर में यह मांग वकीलों के बीच से निकलकर आम आवाम की हो गयी.

गौरतलब है कि फरवरी 1986 में जब पटना हाइकोर्ट के जस्टिस आनंद प्रसाद सिंहा पूर्णिया आए तो उन्होंने इसे प्रासंगिक बताते हुए चीफ जस्टिस को रिपोर्ट करने का आश्वासन दिया. अप्रैल 1992 में पटना हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस बिमल चन्द्र बसाक के पूर्णिया आगमन पर इस मांग को पुरजोर तरीके से रखा गया तो जसवंत कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद इस मुद्दे पर विचार करने का आश्वासन दिया गया. बाद के वर्षो में चीफ जस्टिस डी.पी.बधवा ने भी पूर्णिया दौरा के दौरान इस मांग को विधि सम्मत तरीके से विचार करने का भरोसा दिलाया. इसके बाद अनवरत पूर्णिया में इस मांग को लेकर बार एसोसिएशन समेत अन्य संगठनों द्वारा आवाज बुलंद की जाती रही है.

आलम यह है कि भौगोलिक बनावट के दृष्टिकोण से इस जिले की दूरी राजधानी पटना से तीन सौ किलोमीटर से अधिक है और दूर-दराज के ग्रामीण इलाकोंं से लोगों को पटना जाकर न्याय हासिल करना काफी परेशानियों का सबब बन गया है. दूसरी तरफ सीमांचल क्षेत्र के केन्द्र में यह जिला अवस्थित है जहां हाइकोर्ट के बेंच की स्थापना से इससे जुड़े अन्य जिलों के वाशिंदो की मुश्किलें आसान हो सकती हैं. यही वजह है कि पूर्णिया के वोटर वोट देने से पहले यह आश्वस्त होना चाहते हैं कि नेताजी अगर जगह पर पहुंच गये तो पूर्णिया में हाईकोर्ट का बेंच लड़ कर भी ले लेंगे. नेताजी की परेशानी है कि वे इसके लिए सदन तक आवाज तो पहुंचा ही देंगे और लड़ भी जाएंगे पर उनके हाथ में तो बहुत कुछ है नहीं. इसकी बड़ी प्रक्रिया होती है पर जनता तो सिर्फ रिजल्ट चाहती है.

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