Purnia news : एचआइवी विषाणु द्वारा फैलनेवाला रोग एड्स पूर्णिया समेत पूरे सीमांचल में इस प्रकार अपने पैर पसार रहा है, जो चिंता का सबब बन गया है. किसी खास क्षेत्र की बात तो दूर इसके मरीज हर इलाके में मिल रहे हैं. कहीं कम तो कहीं ज्यादा संख्या में. जिले के राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल परिसर में स्थापित एआरटी केंद्र के आंकड़े बताते हैं कि प्रत्येक माह पूरे कोसी सीमांचल से लगभग 25 से 30 नये एचआइवी संक्रमित लोगों के नाम उक्त केंद्र में दवा के लिए जुड़ते हैं. संक्रमण के लगातार बढ़ते ग्राफ से स्वास्थ्य विभाग चिंतित है.
मरीजों की बढ़ती संख्या मानव समाज के लिए एक चेतावनी
फैलाव की रफ्तार इतनी तेज है कि स्वास्थ्य विभाग इस आंकड़े को गंभीरता से देख रहा है, क्योंकि जीएमसीएच के ओपीडी के एचआइवी जांच केंद्र पर जांच कराने आनेवाले सैंपल में प्रत्येक महीने लगभग 15 से 17 लोग एचआइवी संक्रमण के शिकार पाये जाते हैं. दूसरी ओर जिले में शुरू किये गये एआरटी केंद्र में शुरुआती दौर में एचआइवी संक्रमित मरीजों की जितनी संख्या निबंधित थी, वह मात्र चार वर्षों में तिगुनी से भी ज्यादा हो गयी है. चिकित्सकों का कहना है कि अमूमन संक्रमित रक्त, असुरक्षित यौन संबंध, सुईयों, सिरिंज आदि द्वारा यह रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है. हालांकि विभिन्न सरकारी, गैर सरकारी एवं स्वयंसेवी संगठनों द्वारा लगातार एड्स के खिलाफ जनजागरूकता अभियान चलाये जाने के बावजूद इसके मरीजों की बढ़ती संख्या मानव समाज के लिए एक चेतावनी है. पूर्णिया एआरटी सेंटर पर फिलवक्त लगभग तीन हजार से भी ज्यादा मरीज निबंधित हैं.
प्रत्येक माह मुहैया करायी जा रही दवा
पूर्णिया एआरटी सेंटर एमओ डॉ सौरभ कुमार ने बताया कि पूर्णिया सेंटर के निबंधित एड्स मरीजों को नियमित रूप से सेवन के लिए दवाइयां उपलब्ध करायी जाती हैं. इन मरीजों को प्रतिदिन दवा लेनी होती है. इसके लिए सभी को पहले तीन माह की दवा एक साथ उपलब्ध करायी जाती थी, लेकिन अब प्रत्येक माह के अनुसार दवा दी जाती है. फिलहाल पूर्णिया में कटिहार, अररिया, मधेपुरा, किशनगंज आदि जिलों के भी मरीज दवा के लिए पहुंचते हैं, जबकि किशनगंज भी पूर्णिया एआरटी सेंटर से लिंक्ड है. मरीजों को वहां भी दवाइयां मिल सकती हैं. कुल मिलाकर प्रति दिन 100 से अधिक की संख्या के आसपास मरीज उक्त एआरटी सेंटर पर दवा लेने के लिए आते हैं. डॉ सौरभ ने जानकारी दी कि पूर्णिया सेंटर पर वाइरल लोड की सुविधा विगत वर्ष के अक्तूबर माह से शुरू हो गयी है, जिसके तहत कलेक्ट सैंपल को पीएमसीएच भेजा जाता है और चार-पांच दिनों के अंदर उसकी रिपोर्ट आ जाती है.
संक्रमित परिवार को मिल रही सरकारी मदद
विभाग से प्राप्त सूचना के अनुसार, सरकार एचआइवी पीड़ित परिवारों के लिए कई योजनाएं चला रही है. बिहार शताब्दी योजना के तहत 18 साल की उम्र से ऊपर के एड्स मरीज को सरकार की ओर से आजीवन 1500 रुपये प्रतिमाह दिये जाने का प्रावधान है. यह एआरटी द्वारा किया जाता है, जबकि परवरिश योजना में वैसे बच्चे जो खुद एड्स के मरीज हैं अथवा नहीं हैं, अगर उनके माता या पिता या दोनों एचआइवी पॉजिटिव हैं, तो सीडीपीओ के थ्रू उक्त बच्चे को 18 वर्ष की उम्र तक प्रतिमाह 1,000 रुपये दिये जाने का प्रावधान है. वहीं स्पांसरशिप योजना के तहत प्रति वर्ष एक बच्चे को 48 हजार (मासिक 04 हजार) रुपये की मदद दिये जाने का भी प्रावधान है, जिसके पिता का संक्रमण के बाद निधन हो चुका है. कामगार योजना में एकमुश्त 50 हजार रुपये इलाज कराने के लिए दिये जाते हैं.
कैंप लगा कर की जाती है रक्त की जांच
एचआइवी सर्वेक्षण व अन्य कार्यों से जुड़े बीएन प्रसाद ने बताया कि टीआइ यानि टार्गेटेडइंटर्वेंशन के तहत एनजीओ द्वारा एचआइवी के सबसे ज्यादा जोखिम वाले क्षेत्रों में समय-समय पर कैंप लगाकर लोगों के रक्त की जांच की जाती है. इसके लिए विशेष स्वास्थ्य टीम निर्धारित स्थानों पर कैंप करती है और सैंपल कलेक्ट कर अपना रिपोर्ट प्रस्तुत करती है. उसके बाद संक्रमित लोगों को उनके नजदीकी एआरटी सेंटर से जोड़ा जाता है, जहां से उन्हें दवाइयां तथा अन्य सहायताएं मिलती हैं.
एड्स मरीजों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय
एआरटी पूर्णिया के एमओ डॉ सौरभ कुमार ने कहा कि हर तरफ से जनजागरूकता अभियान चलाये जाने के बावजूद एड्स के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है, जो चिंता का विषय है. इस दिशा में सभी को सतर्क रहने की जरूरत है. इसके फैलनेवाले कारकों से परहेज करके ही हम खुद को सुरक्षित रख सकते हैं. नियमित दवा के सेवन से पीड़ितों के मृत्यु दर में गिरावट आयी है. डॉ तपन विकास सिंह ने कहा कि एड्स एक जानलेवा रोग है, जो संक्रमण से फैलता है. इसमें मूल रूप से पीड़ित व्यक्ति के शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता धीरे-धीरे कम होती चली जाती है, जिससे छोटी से छोटी स्वास्थ्य समस्या भी उसके लिए गंभीर हो जाती है. पर, एआरटी दवा एवं पौष्टिक आहार के सेवन से व्यक्ति लंबे समय तक जीवित रह सकता है. सर्वेक्षण निरीक्षक बीएन प्रसाद ने बताया कि ज्यादातर जांच कैंप सेक्स वर्कर्स के इलाके में आयोजित किये जाते हैं.टीआइ की टीम ने इस तरह के ज्यादातर मामले इन्हीं इलाकों में पाये हैं. ड्रग के लिए प्रयोग में लायी जानेवाली एक ही सूई अथवा सिरिंज के कई लोगों द्वारा इस्तेमाल जैसे मामले इन इलाकों में नहीं के बराबर हैं. हालांकि सभी मामलों को गोपनीय ही रखा जाता है.