पूर्णिया. नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के सौजन्य से एक रंग श्रेष्ठ रंग के तहत भारत रंग महोत्सव अंतर्गत विगत 28 जनवरी से शुरू हुए नाट्य महोत्सव का रविवार को समापन हो गया. आखिरी दिन रेणु रंगमंच संस्थान रंगमंडल पूर्णिया की ओर से नाटक पंचम वेद पर केन्द्रित लघु नाटक की प्रस्तुति कला भवन नाट्य विभाग परिसर में की गई. इस नाटक के निदेशक अजीत कुमार सिंह उर्फ बप्पा ने कहा कि हर एक कलाप्रेमी, रंगप्रेमी एवं रंगकर्मी को पंचम वेद के विषय में जानना बेहद जरूरी है क्योंकि वेद के बिना नाटक पूर्ण नहीं होता. सामान्य जन को नाटक के माध्यम से शिक्षा और धर्म के मार्ग पर ले जाया जा सके स्वयं ब्रह्मा जी ने चारों वेदों के तत्वों को मिलाकर नाट्यशास्त्र की रचना की है. नाट्य शास्त्र के रचनाकार भरत मुनि ने स्वयं देवताओं दानवों और मनुष्यों के समस्त शुभ अशुभ कर्मों को दिखलाने वाला बतलाया है इनमें सारे रस भावों शास्त्रों शिल्पों और कार्यों का समावेश है, जिसे हम नाट्यशास्त्र कहते हैं. उन्होंने कहा नाटक केवल कलाकार के लिए ही नहीं यह समाज का दर्पण है यह मानवता को सत्य के मार्ग पर ले जाने का साधन है रंगमंच जाति धर्म भौगोलिक सीमाओं से परे जाकर समग्रता में मान्यता की बात करता है आज भी रंगमंच समाज में विषम परिस्थितियों को दूर कर समाज में समता का भाव लेकर आता है यह भाव निसंदेह धरती को स्वर्ग बना सकता है. भरत मुनि जी कहते हैं इसी आशा और अपेक्षा के साथ की समाज कला और कलाकारों को वह स्थान दें जिसके वह अधिकारी है. मैंने नाट्यशास्त्र को पंचम वेद कहकर पुकारा है क्योंकि पंचम वेद समस्त वेदों का ज्ञान होता है. श्री बप्पा ने बताया कि पंचम वेद के इन्हीं कथ्यों पर केन्द्रित रहा यह लघुनाटक. इसी क्रम में भरतमुनि की भूमिका में अजीत कुमार सिंह बप्पा, ऋषि एक में अदिति, ऋषि दो वो पांच में चंदन कुमार, ऋषि तीन में रजनीश कुमार ऋषि, ऋषि चार में प्रियंक सिंह जीत आदि कलाकारों ने पंचम वेद लघु नाटक में अहम भूमिका निभाई.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है