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कल तक जो साथ-साथ चल रहे थे, आज आमने-सामने होने को आतुर

कहते हैं कि राजनीति में ना कोई स्थायी दोस्त होता है और न ही दुश्मन. खासकर चुनाव के वक्त यह बात और भी सटीक बैठती है.

जदयू के पूर्व सांसद संतोष कुशवाहा के राजद में शामिल होने से सियासत गरम

संतोष के बहाने राजद ने की सीमांचल में कुशवाहा वोट बैंक को साधने की कोशिश

पूर्णिया. कहते हैं कि राजनीति में ना कोई स्थायी दोस्त होता है और न ही दुश्मन. खासकर चुनाव के वक्त यह बात और भी सटीक बैठती है. कल तक जो साथ-साथ चल रहे थे, आज आमने-सामने होने को आतुर हैं. जदयू के पूर्व सांसद संतोष कुशवाहा के राजद में शामिल होने पर कुछ ऐसा ही नजारा सामने आनेवाला है.

विधानसभा चुनाव से पूर्व राजद नेतृत्व ने श्री कुशवाहा को पार्टी में शामिल कर सीमांचल की राजनीति में एक बड़ा दांव खेला है. माना जा रहा है कि श्री कुशवाहा धमदाहा विधानसभा से जदयू की वरिष्ठ नेत्री और मंत्री लेशी सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राजद नेतृत्व ने एक तीर से दो निशाना साधा है. एक यह कि कुशवाहा के चुनाव मैदान में उतरने से न केवल धमदाहा में मुकाबला कड़ा और दिलचस्प हो जायेगा, बल्कि सीमांचल में कुशवाहा वोट बैंक को अपने पाले में खींचने में भी मदद मिलेगी. सीमांचल की सियासत में श्री कुशवाहा अपने समाज में जाना पहचाना नाम है. राजनीति के जानकार बताते हैं कि संतोष कुशवाहा भले ही विधानसभा चुनाव की घोषणा होने के महज चार दिन बाद राजद में शामिल हुए हों, लेकिन इसकी पृष्टभूमि पिछले पांच- छह माह पहले ही बन गयी थी. लोकसभा चुनाव के हार के बाद श्री कुशवाहा के समर्थकों और शुभचिंतकों का उनपर चुनाव लड़ने का काफी दबाव था. चर्चा है कि श्री कुशवाहा कदवा से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन जदयू के शीर्ष नेतृत्व ने वहां किसी दूसरे को आगे कर इन्हें दरकिनार कर दिया. ऐसे में उनके समक्ष पार्टी के अंदर दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा था. संतोष के समर्थक कहते हैं कि पार्टी नेतृत्व को उन्हें आगे कर पीछे धकेलना नहीं चाहिए था. यही बात उनके नेता को नागवार गुजरी. समर्थक इस बात को लेकर भी नाराज हैं कि पार्टी का एक तबका मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खांटी लोगों को पार्टी से दरकिनार करने में लगे हैं. इसी का नतीजा है कि आज संतोष कुशवाहा को पार्टी छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा.

संतोष कुशवाहा का राजनीतिक सफर

संतोष कुशवाहा ने पहली बार 2005 में राजनीति में कदम रखा. 2010 में वे मुस्लिम बाहुल बायसी विधानसभा से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और पहली बार जीत कर विधायक बने. 2013 में भाजपा छोड़कर जदयू में शामिल हो गये. 2014 में जदयू के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने. 2019 में जदयू के टिकट पर पुनः लोकसभा चुनाव जीतकर दूसरी बार लोकसभा पहुंचे थे. 2024 के लोकसभा चुनाव में जदयू के टिकट पर हैट्रिक लगाने जा रहे थे, लेकिन निर्दलीय पप्पू यादव उन्हें हरा दिया. अब जदयू छोड़कर राष्ट्रीय जनता दल में शामिल हो गये. स्वभाव से मृदुभाषी एवं हंसमुख संतोष बचपन से ही चुनौतियों से खेलते रहे हैं. इससे पहले भी वे 2013 में पांच साल का कार्यकाल पूरा होने से एक साल पूर्व ही विधायक पद से इस्तीफा देकर जदयू में शामिल हो गये और पूर्णिया लोकसभा के उम्मीदवार हो गये.

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