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मखाना के बाद पानीफल सिंघाड़ा के लिए जीओ टैगिंग की कवायद

पौराणिक प्राकृतिक एवं बौधिक सम्पदा

पूर्णिया. वैश्विकरण के इस युग में अपनी पौराणिक प्राकृतिक एवं बौधिक सम्पदा को अच्छुण रखने हेतु कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के कुलपति, डॉ. दुनिया राम सिंह एवं निदेशक अनुसंधान, डॉ. अनिल कुमार सिंह, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के मार्गदर्शन में भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय के मखाना वैज्ञानिक डॉ. अनिल कुमार की टीम ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए सेन्टर ऑफ एक्सीलेंस मखाना की स्थापना से पूर्व ही बिहार के आर्द्रभूमि क्षेत्रों में सिंघाड़ा और अन्य लाभकारी फसलों के मौजूदा जैव भौतिक और सामाजिक-आर्थिक वातावरण के लिए प्रासंगिक प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए काम करना प्रारंभ कर दिया है. सीमांचल में पानी फल कहे जाने वाले सिंघाड़ा की खेती तो हो रही है, लेकिन समुचित बाजार के अभाव में इसका रकवा अभी भी सिमटा हुआ है. अब मखाना की तर्ज पर भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय के विज्ञानियों ने सिंघाड़ा को जीओ टैग दिलाने की कवायद शुरु की है. भौगोलिक सूचक जीआई प्राप्त करने हेतु में आवेदन करने के लिये किसानों की संस्था बनाना अनिवार्य होता है. जिसके लिए सिंघाड़ा उत्पादक संघ, पूर्णिया का गठन भेाला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय (बिहार कृषिविश्वविद्यालय, सबैार, भागलपुर) के तकनीकी मार्गदशन में सिंघाड़ा उत्पादक किसानों के सर्वांगिण विकास एवं सिंघाड़ा की ब्रांडिंग हेतु भौगोलिक संकेतक/जीआई. कराने के लिए आवेदन किया गया. कोसी एवं सीमांचल जिले के प्रत्येक सिंघाड़ा उत्पादक जिलों से दो-दो सिंघाड़ा उत्पादकों को सम्मिलित कर राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करने वाली संस्था सिंघाड़ा उत्पादक संघ का गठन सोसाईटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 21, 1860 के तहत् निबंधित हेतु आवेदन किया गया है. पी.आर.ओ डॉ. राजेश कुमार ने बताया कि सिंघाड़ा के भौगोलिक सूचक जीआई प्राप्त करने हेतु आवेदन भारत सरकार के भौगोलिक सूचक कार्यालय, चेन्नई भेज दिया गया है. सिंघाड़ा के जीआई. टैगिंग से किसानों को विपणन में अधिक से अधिक लाभ मिलेगा. राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय बाजारों में सिंघाड़ा की विशेष ब्रांडिंग होगी साथ ही साथ किसानों की सामाजिक एवं आर्थिक उन्नति होगी.

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Prabhat Khabar News Desk
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