कथाशिल्पी रेणु जी की फिल्म ‘डाग्दर
बाबू’ की शूटिंग के लिए आये थे
जया भादुड़ी बतौर नायिका आयीं थीं, कई कारणों से अधूरी रह गई फिल्म
अखिलेश चन्द्रा, पूर्णिया. कहते हैं, वक्त गुजर जाता है पर यादें शेष रह जाती हैं. पांच दशकों से भी अधिक हो गया. उस जमाने के कई युवा बूढ़े हो गये, पर उनकी आंखों में आज भी उस जमाने के सिने स्टार धर्मेंद्र का चेहरा याद है, जब वे अपनी जवानी में जया भादुड़ी जैसी अदाकारा के साथ कथाशिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु के उपन्यास ‘मैला आंचल’ पर बन रही फिल्म ‘डाग्दर बाबू’ की शूटिंग के लिए पुराने पूर्णिया जिले के फारबिसगंज आये थे. तब फारबिसगंज पूर्णिया जिले के अररिया अनुमंडल का प्रखंड मात्र था. कथाशिल्पी रेणु की इस धरती से आज भी सिने स्टार धर्मेंद्र की ढेर सारी यादें जुड़ी हुई हैं. अतीत के झरोखों में झांक कई लोग आज भी धर्मेंद्र का जिक्र कर गर्व महसूस करते हैं. रेणु जी के उपन्यास ‘मारे गए गुलफाम’ पर बनी फिल्म ‘तीसरी कसम’को तो लोग जानते हैं पर उस फिल्म की चर्चा तक नहीं होती जो अधूरी रह गई. जी हां, सत्तर का दशक था जब हिन्दी साहित्य की दुनिया में तहलका मचा देने वाले रेणु जी के उपन्यास मैला आंचल पर ‘डाग्दर बाबू’ फिल्म का निर्माण शुरू हुआ था. वर्ष 1972 का था. नवेंदु घोष ने पटकथा लिखी थी और निर्देशन भी उन्हीं का था. निर्माता एसएच मुंशी थे जबकि संगीत आर डी बर्मन ने दिया था. फिल्म की शूटिंग फारबिसगंज के भंटाबाड़ी में हो रही थी. जया भादुड़ी भी उनके साथ बतौर नायिका आयीं थीं. तब धर्मेंद्र और जया को एक स्थानीय होटल में ठहराया गया था जबकि टीम के कई लोग डाकबंगला में पड़ाव डाले हुए थे. धर्मेंद्र को देखने की ललक लोगों में ज्यादा थी. उनकी एक झलक पाने के लिए लोग तब बेताब हो जाते थे. यही वजह है कि धर्मेंद्र को चाहने वालों की भीड़ होटल से शुटिंग स्थल तक रहती थी.धर्मेंद्र की खूबसूरती व कला के दीवाने थे लोग
कथाशिल्पी फणीश्वर नाथ के पुत्र दक्षिणेश्वर प्रसाद राय उर्फ पप्पू कहते हैं कि फिल्म के 13 रील तैयार हो गए थे. वे बताते हैं कि मायापुरी फिल्म पत्रिका में आने वाली फिल्म के सेक्शन में इस फिल्म का पोस्टर भी जारी किया गया था. दक्षिणेश्वर कहते हैं कि काफी खूबसूरत कास्टिंग थी. धर्मेंद्र, जया बच्चन, उत्पल दत्त, पद्मा खन्ना, काली बनर्जी इससे जुड़े थे. वे बताते हैं कि निर्माता और वितरक के बीच अनबन के चलते यह फिल्म डब्बे में बंद रह गई. दक्षिणेश्वर राय का कहना है कि धर्मेंद्र की खूबसूरती और उनके अभिनय कला के लोग दीवाने थे. दीवानगी में ही करीब से हर कोई देखने को आतुर रहता था.एक झलक पाने को पेड़ पर चढ़ जाते थे लोग
उस दौर के कई लोग डागदर बाबू की शूटिंग को आज भी याद करते हैं. इसकी बानगी बयां करते हुए 75 वर्षीय राजू अग्रवाल कहते हैं कि तब वे ली अकादमी के छात्र थे और स्कूल का क्लास छोड़ कभी भंटाबाड़ी तो कभी भदेसर चले जाते थे. उनके साथ पवन अग्रवाल, ओम प्रकाश समेत छात्रों का हुजूम भी हुआ करता था पर पुलिस करीब पहुंचने नहीं देती थी. श्री अग्रवाल बताते हैं कि जब इसकी शूटिंग हो रही थी तब धर्मेंद्र-जया को देखने आने वालों का तांता लगा रहता था. कई लोग पेड़ पर चढ़े होते थे तो करीब जाने की होड़ में कई को पुलिस के डंडे भी खाने पड़ते थे. .डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

