पूर्णिया. मानव शरीर में किसी ख़ास स्थान पर त्वचा के ऊपर से ही उभरी हुई नीले या गहरे बैगनी रंग की टेढ़ी-मेढ़ी दिखने वाली रक्त सिराओं यानि वेरीकोज वेंस के उपचार को लेकर पूर्णिया में एक निःशुल्क कैंप का आयोजन किया गया. इस शिविर में सिलीगुड़ी से वेरिकोज वेन स्पेशलिस्ट डॉ मितेश कुमार ने आये मरीजों की जांच की और अपने सुझाव दिए. डॉ मितेश ने बताया कि वेरिकोज तीन चरणों में होता है. इसमें सबसे पहले नस फूल कर बाहर दिखने लगती हैं. दूसरे स्टेप में वेन में छोटे छोटे छिद्र से रक्त बाहर आने लगते हैं और तीसरे स्टेप में वह अल्सर का रुप ले लेता है. इस अल्सर के इलाज में चार पांच साल लग जाते हैं. इसीलिए जैसे ही वेन बाहर दिखने लगे तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. उन्होंने बताया कि वेरीकोज वेन का इलाज लाइफस्टाइल बदलाव, न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रियाओं जैसे लेजर (एब्लेशन), स्क्लेरोथेरेपी (इंजेक्शन) से लेकर सर्जरी (लिगेशन और स्ट्रिपिंग, एम्बुलेटरी फ्लेबेक्टोमी) तक कई तरीकों से किया जाता है, जिनका उद्देश्य नसों को बंद करना या हटाना है ताकि रक्त स्वस्थ नसों में प्रवाहित हो सके और लक्षणों से राहत मिल सके. डॉ मितेश ने पीड़ित मरीजों को कई सुझाव भी दिए. उन्होंने बताया कि दिन में कई बार पैरों को दिल के स्तर से ऊपर तक उठाएं ताकि रक्त संचार बेहतर हो और सूजन कम हो. साथ ही विशेष प्रकार के कम्प्रेशन स्टॉकिंग्स मोज़े पहनने की सलाह दी कहा इसके इस्तेमाल से नसों पर दबाव बना रहता है और ये रक्त को जमा होने से रोकते हैं तथा रक्त प्रवाह में मदद करते हैं. इसके अतिरिक्त उन्होंने चिकित्सीय उपचार के तकनीक की भी जानकारी दी. इस दौरान आये कई मरीजों ने उपचार के बाद के अपने अनुभव भी साझा किये.
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