हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में महिलाओं को अक्सर केवल गायन से जोड़ा जाता रहा है, जबकि वाद्य संगीत को पुरुषों का क्षेत्र माना जाता था. आज भी कई वाद्य यंत्रों में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है, और इनमें से एक है सरोद. यह एक महंगा और वजनी वाद्य यंत्र है, जिसे महिलाएं कम ही बजाती हैं. उन्होंने अपने संगीत सफर, चुनौतियों और सफलताओं से जुड़ी बातें प्रभात खबर से साझा कीं. पेश है उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश.
Q. सरोद वादन से आपका कैसे जुड़ाव हुआ, आप इससे कैसे जुड़ीं? अपने बारे में भी कुछ बताएं ?
मैं मूल रूप से मिथिला की रहने वाली हूं, लेकिन मेरा जन्म पटना में हुआ. मेरे पिता, प्रोफेसर सीएल दास, अंग्रेजी के प्रोफेसर थे और उन्हें संगीत से गहरी प्रेम था. घर में अक्सर बड़े-बड़े कलाकारों का आना-जाना होता था. बचपन से ही मैंने पिता और उस्ताद बहादुर खान साहब का सरोद सुना और यह संगीत मेरे मन और मस्तिष्क में बैठ गया. जब मैंने सरोद सीखने की इच्छा जतायी, तो मेरे पिता ने वायलिन और सितार सीखने की सलाह दी, क्योंकि सरोद एक पुरुष प्रधान और वजनी वाद्य यंत्र है, और यह महंगा भी है. हालांकि, मैं जिद पर अड़ गयी और फिर सरोद वादन सीखने की शुरुआत की.राग-संगीत तो मेरे जींस में है, जो अब मेरी रगों में भी दौडता है.

Q. अपनी शिक्षा और पहली प्रस्तुति के बारे में बताएं?
मेरी शिक्षा पटना में हुई. मैंने पीयू से सोशियोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. इसके बाद, इंदिरा कला संगीत विवि खेरागढ़ से एमए और डीयू से ‘प्रकृति ऑफ फाइन आर्ट एंड म्यूजिक’ में एमफिल और पीएचडी की. मेरी पहली प्रस्तुति खेरागढ़ में पढ़ाई के दौरान हुई. एक बार घर पर छुट्टियों में पिताजी ने दो दिवसीय वाद्य यंत्र पर आधारित कार्यक्रम रखा, जिसमें 1993 में मेरी पहली प्रस्तुति हुई. इस प्रस्तुति को बहुत सराहा गया. इसके बाद, मैंने बिहार के विभिन्न महोत्सवों, कई राज्यों और नेपाल में भी अपनी प्रस्तुति दी है.
Q. सरोद वादन में आने के लिए किसने प्रेरित किया?
मेरे परिवार के अलावा, मैं दो लोगों को अपनी प्रेरणा मानती हूं. पहली विदुषी अन्नरूर्णा और दूसरी पंडित भीम सेन जोशी. इन दोनों ने मुझे संगीत और सरोद वादन में प्रेरित किया.
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Q. सरोद सीखने के दौरान महिला होने के नाते आपको किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
मेरी दीदी, डॉ रमा दास, इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय में रिसर्च स्कॉलर थीं. जब वहां सरोद वादन की पढ़ाई के लिए आवेदन मांगे गये, तो मैंने भी आवेदन किया. उस समय विवि के वीसी पंडित विमलेंदु मुखर्जी ने मुझसे कहा कि महिलाएं अक्सर संगीत में शुरुआत करती हैं, लेकिन घर और परिवार की जिम्मेदारियों के कारण उनका संगीत की ओर ध्यान कम हो जाता है. मैंने उनसे आग्रह किया कि मुझे एक मौका दें, और मैं उन्हें शिकायत का मौका नहीं दूंगी. इसके बाद, पिताजी ने एक पत्र लिखा और मेरी तालिम शुरू हुई. महिलाओं को घर और सरकार, दोनों का सहयोग चाहिए, ताकि वे वाद्य यंत्र सीखने और संगीत में अपनी पहचान बना सकें.