Woman of the Week: कला, किसी भी कलाकार की पहचान है. इस पहचान को प्राप्त करने के लिए एक लंबी साधना और तपस्या की जरूरत पड़ती है. 1989 में, जब कला के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या नगण्य थी, तब डॉ राखी कुमारी ने न केवल कला में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की, बल्कि इसके बाद उन्होंने पीएचडी भी किया. आज वे उसी महाविद्यालय की प्राचार्या हैं, जहां से उन्होंने कला की शिक्षा ली थी. आज वे न केवल कला की शिक्षा दे रही हैं, बल्कि कला शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की दिशा में भी सक्रिय रूप से कार्य कर रही हैं. छापा कला के क्षेत्र में अपनी उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद, डॉ राखी की बनायी हुई छापाकृतियां और रेखांकनों की प्रदर्शनी देश के बड़े संग्रहालयों में लग चुकी हैं, और उन्हें इसके लिए कई पुरस्कार और सम्मान भी प्राप्त हो चुके हैं. प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के कुछ प्रमुख अंश.

Q. जिस कॉलेज की आप छात्रा थीं, आज उसी कॉलेज की प्राचार्या हैं. ऐसे में कैंपस में क्या खास बदलाव लाने की योजना है?
मैं 1989 से 1993 तक कला एवं शिल्प महाविद्यालय में स्नातक की छात्रा रही. उस समय महाविद्यालय में स्नातकोत्तर की कोई व्यवस्था नहीं थी, इसलिए मैंने मध्य प्रदेश (वर्तमान में छत्तीसगढ़) में स्नातकोत्तर और पीएचडी की पढ़ाई की. कुछ समय तक भारत भवन, भोपाल में भी कार्य किया और 2004 से 2012 तक कला एवं शिल्प महाविद्यालय में अस्थाई शिक्षिका के रूप में भी काम किया. पिछले कुछ महीनों से प्राचार्या के पद पर हूं.
Q. आपकी छाप कृतियों का विषय क्या है?
मैं लोक कला को समकालीन परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही हूं. मेरा उद्देश्य गांव से शहर तक के सफर को एक नयी दृष्टि में दर्शाना है. यह मेरी व्यक्तिगत अभिव्यक्ति है, जो छापा कला के माध्यम से बाहर निकलती है. मैं चाहती हूं कि मेरी कला हर किसी के लिए सुंदरता और आनंद का स्रोत बने.

Q. पहले महिला कलाकारों की संख्या बहुत कम थी. अब इस क्षेत्र में कितना बदलाव आया है?
जहां पहले कला के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या लगभग 30 प्रतिशत थी, आज वह बढ़कर 70 प्रतिशत हो चुकी है. अब माता-पिता भी अपनी बेटियों को कला के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. हालांकि, कला को सही ढंग से समझने के लिए केवल ग्रेजुएशन करना काफी नहीं है. इसकी गहरी समझ के लिए आगे की पढ़ाई की आवश्यकता होती है.
Q. यहां कलाकारों की प्रदर्शनी के लिए दीर्घाओं की कमी के बारे में आपकी क्या राय है?
बिहार संग्रहालय, बिहार ललित कला अकादमी जैसी संस्थाएं हैं, जिनमें कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन कर सकते हैं. इन दीर्घाओं में समय-समय पर प्रदर्शनी आयोजित होती रहती है. अगर सरकार के सहयोग से कलाकारों की एक सूची तैयार की जाए, जिसमें वरिष्ठ और नये कलाकार दोनों शामिल हों, तो इस आधार पर और अधिक प्रदर्शनी आयोजित की जा सकती हैं. इससे कलाकारों को अपनी कला प्रस्तुत करने का अच्छा अवसर मिलेगा.
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