Voter Adhikar Yatra: आजादी से लेकर 80 के दशक तक बिहार की राजनीति में कांग्रेस का दबदबा रहा, लेकिन मंडल राजनीति के बाद पार्टी सत्ता से बाहर हो गई. तीन दशक से भी अधिक समय से कांग्रेस जनाधार खो चुकी है और अब राहुल गांधी इसे दोबारा पाने की कोशिश कर रहे हैं. इसी रणनीति के तहत उन्होंने 17 अगस्त से सासाराम से शुरू की गई 16 दिन की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के जरिए बिहार की सड़कों पर उतरकर जनता से सीधा संवाद कर रहे हैं.
राहुल गांधी ने अपनाया देसी अंदाज

यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने देसी अंदाज अपनाया. कभी बुलेट चलाते, कभी खेतों में उतरकर किसानों से बातचीत करते और गमछा लहराकर लोगों से जुड़ते नजर आए. तेजस्वी यादव के साथ मिलकर उन्होंने मतदाता सूची से नाम काटने और वोट चोरी के मुद्दे को बड़े पैमाने पर उठाया. प्रियंका गांधी ने भी यात्रा में शामिल होकर महिलाओं और ब्राह्मण बहुल मिथिला क्षेत्र में कांग्रेस को मजबूत करने का प्रयास किया.
बिहार के 23 जिलों से होकर गुजर रही यात्रा

इस यात्रा का रोडमैप बेहद रणनीतिक है, जो बिहार के 23 जिलों से होते हुए पटना तक पहुंचेगा. इससे कांग्रेस ने दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वोटरों को साधने की कोशिश की है. हालांकि, कांग्रेस की हालिया स्थिति कमजोर रही है. पिछले तीन विधानसभा चुनावों में उसका वोट शेयर 10% तक नहीं पहुंचा और लोकसभा में भी प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा. लेकिन, राहुल गांधी ने प्रदेश नेतृत्व में बदलाव कर दलित और पिछड़े वर्ग को प्रतिनिधित्व देकर नई ऊर्जा पैदा की है.
बिहार की राजनीति में हलचल
अब सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी की यह यात्रा कांग्रेस को बिहार में नया जीवन दे पाएगी और 35 साल का वनवास खत्म कर पाएगी? नतीजे तो चुनाव बताएंगे, लेकिन इतना तय है कि इस अभियान ने बिहार की राजनीति में नई हलचल जरूर पैदा कर दी है.

