Tejashwi Yadav: तेजस्वी यादव पिता की विशाल राजनीतिक विरासत के साये से निकलकर अपनी एक अलग पहचान बनाई . क्रिकेट के मैदान से विधानसभा के मंच तक, विरोध की राजनीति से विकास की भाषा तक.
बचपन का राजनीतिक आंगन
पटना में जन्मे तेजस्वी यादव बचपन से ही राजनीति की हवा में पले-बढ़े. पिता लालू प्रसाद यादव और मां राबड़ी देवी, दोनों मुख्यमंत्री रहे. घर में सत्ता, संघर्ष और रणनीति की कहानियां उनका पहला स्कूल थीं.


क्रिकेट के मैदान से मिली सीख
राजनीति में आने से पहले तेजस्वी ने क्रिकेट में करियर बनाने की कोशिश की. दिल्ली डेयरडेविल्स के साथ चार सीजन और झारखंड रणजी टीम में सात मैच खेले. क्रिकेट ने उन्हें धैर्य, टीमवर्क और हार से सीखने की कला सिखाई.


राजनीति में वापसी की पहली पारी
क्रिकेट छोड़ने के बाद 2013 में राजनीति में एंट्री ली. पिता लालू के साथ चुनावी मंचों पर पहली बार नजर आए. 2015 में राघोपुर सीट से विधायक बने, परिवार की परंपरा और जनता का भरोसा दोनों एक साथ मिला.

26 की उम्र में उपमुख्यमंत्री
नीतीश कुमार के साथ महागठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री बने. इतनी कम उम्र में सत्ता की जिम्मेदारी ने उन्हें राजनीति की गंभीरता का एहसास कराया.

लालू की छाया से बाहर निकलने की चुनौती
लालू यादव की करिश्माई छवि के कारण तेजस्वी के लिए अपनी अलग पहचान बनाना कठिन था. लेकिन उन्होंने अपनी भाषा, शैली और व्यवहार में एक नई पीढ़ी की राजनीति गढ़नी शुरू की.


‘न्याय यात्रा’ और नई छवि का निर्माण
2019–2020 के बीच बिहारभर में ‘न्याय यात्रा’ निकालकर तेजस्वी ने खुद को युवा नेता के रूप में स्थापित किया. बेरोजगारी और शिक्षा उनके प्रमुख मुद्दे बने. यही उनका ‘ब्रांड तेजस्वी’ बना.


विधानसभा में मुखर विपक्षी चेहरा
विधानसभा में वे तेज़, व्यंग्यात्मक और तर्कपूर्ण भाषणों के लिए पहचाने जाने लगे. उन्होंने नीतीश सरकार को बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों पर लगातार घेरा.


सोशल मीडिया पर नया नेता
तेजस्वी डिजिटल स्पेस में भी सक्रिय हैं. युवाओं के बीच उनके ट्वीट्स और पोस्ट्स उन्हें “ऑफलाइन लालू, ऑनलाइन तेजस्वी” का चेहरा बनाते हैं.

लालू की विरासत, तेजस्वी की दृष्टि
तेजस्वी ने सामाजिक न्याय की राजनीति को विकास और रोजगार की भाषा में ढाला. वे कहते हैं — “पिता ने हक की लड़ाई लड़ी, मैं हक के साथ रोजगार की गारंटी जोड़ना चाहता हूं.”

आज का ‘भविष्य का चेहरा’
2025 के बिहार चुनावों में तेजस्वी अब लालू के बेटे नहीं, खुद एक ब्रांड हैं. जनता के बीच उनका नाम उम्मीद और बदलाव का प्रतीक बन चुका है.

Also Read: क्या पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी नकली है?

