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Friday, March 29, 2024

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Sunday Positive News: पटना में गोलगप्पे बेचकर भविष्य संवार रही महिला बनी मिसाल, खुद संभाल रहीं घर, परिवार और व्यापार

क्या आपने कभी सोचा है कि गोलगप्पा सिर्फ पुरुष ही क्यों बेचते हैं? क्या कोई महिला इस क्षेत्र में अपना कदम बढ़ा सकती है, जवाब आयेगा नहीं. ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे जेहन में कुछ क्षेत्र में पुरुषों की छवि बैठ चुकी है,लेकिन इस सोच को गर्दनीबाग रोड नंबर एक पर गोलगप्पा का ठेला लगाने वाली रिंकू देवी ने गलत साबित कर के दिखाया है. वे साल 2014 से गोलगप्पा बेच रही हैं और आज उनके पास लोग बेझिझक गोलगप्पा खाने के लिए आते हैं.

जूही स्मिता, पटना : क्या आपने कभी सोचा है कि गोलगप्पा सिर्फ पुरुष ही क्यों बेचते हैं? क्या कोई महिला इस क्षेत्र में अपना कदम बढ़ा सकती है, जवाब आयेगा नहीं. ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे जेहन में कुछ क्षेत्र में पुरुषों की छवि बैठ चुकी है,लेकिन इस सोच को गर्दनीबाग रोड नंबर एक पर गोलगप्पा का ठेला लगाने वाली रिंकू देवी ने गलत साबित कर के दिखाया है. वे साल 2014 से गोलगप्पा बेच रही हैं और आज उनके पास लोग बेझिझक गोलगप्पा खाने के लिए आते हैं.

बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए कर रहीं यह काम :

रिंकू देवी बताती हैं कि उनके पिता के गुजर जाने के बाद उनकी शादी कम उम्र में ही कर दी गयी थी. उनके चार बच्चे हैं. पति की कमाई से घर चलाना मुश्किल होने लगा. चार बच्चों के बेहतर भविष्य और घर की आर्थिक स्थिति को संभालने के लिए उन्होंने गोलगप्पे बेचना शुरू किया. उनके पति गोलगप्पा बेचा करते थे. उन्होंने गोलगप्पा बनाना उनसे सीखा.

पढ़ाई में अव्वल आ रहे बच्चे 

आज उनके पास काफी संख्या में ग्राहक आते हैं. उनके चार बच्चों में बड़ी बेटी ने इसी साल इंटर की परीक्षा फर्स्ट डिविजन से पास की, वहीं छोटी बेटी दसवीं की परीक्षा दे चुकी है. बड़ा बेटा ग्यारहवीं और छोटा बेटा पांचवीं में पढ़ रहा है. उनका कहना है कि बच्चे जितना पढ़ना चाहते हैं, वे उन्हें पढ़ायेंगी और जितना होगा मेहनत करेंगी. घर का सारा खर्च निकाल कर वे महीने के पांच से छह हजार रुपये बचत कर लेती हैं. हालांकि कोरोना के दौरान काफी परेशानी भी हुई, लेकिन धीरे-धीरे फिर से जिंदगी पटरी पर आ गयी है.

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रिंकू देवी ने बताया कि शुरुआत में लोग कम आते थे और गोलगप्पे में मसाला भरने में थोड़ा समय लगता था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और रोजाना शाम 4 से 9 बजे रात तक गोलगप्पा का ठेला लगातीं.

Posted By: Thakur Shaktilochan

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