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कौन थे आजादी से पहले बिहार विधानसभा के स्पीकर? 1937 में कैसे हुआ था बिहार विधानसभा चुनाव

Bihar Vidhansabha Speaker: बिहार विधानसभा के नए स्पीकर को चुन लिया गया है. गया के विधायक प्रेम कुमार निर्विरोध बिहार विधानसभा के स्पीकर चुने गए हैं. वो बिहार विधानसभा के 18वे अध्यक्ष हैं. आइए बताते हैं आखिर आजादी से पहले बिहार विधानसभा का स्पीकर कौन थे और कैसे चुनाव हुआ था ? 

Bihar Legislative Assembly Speaker Before Independence: बिहार विधानसभा के 18वें स्पीकर का चुनाव हो गया है. गया शहरी विधानसभा से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के विधायक डॉ प्रेम कुमार निर्विरोध स्पीकर चुने गए हैं. वो आजादी के बाद 18वें विधानसभा अध्यक्ष हैं. आजादी के बाद 1946 में बिंदेश्वरी प्रसाद वर्मा को पहला स्पीकर चुना गया था. आजादी से पहले भी बिहार में चुनाव हुए थे और स्पीकर भी बनाया गया था. 

कौन थे आजादी से पहले के स्पीकर ? 

बिहार में किसान आंदोलन के नायक रहें राम दयालु सिंह को 1937 में हुए चुनाव में स्पीकर चुना गया था. उनका जन्म मुजफ्फरपुर के गंगवा गांव में हुआ था. मुजफ्फरपुर का राम दयालु सिंह कॉलेज (RDS College) उन्ही के नाम पर बनाया गया है. 

1920 में बना नया सचिवालय भवन 

जब बिहार और उड़ीसा की प्रांतीय सरकारें बनी थीं, तब नेताओं को लगा कि काम करने के लिए उनका अपना अलग दफ्तर और भवन होना चाहिए इसलिए 1920 में एक नया सचिवालय भवन बनाया गया. यहीं से परिषद का काम शुरू हुआ. आज यही इमारत बिहार विधानमंडल का मुख्य भवन है. 1921 में जब स्टेट, गवर्नर के अधीन हुआ, तब इस नई व्यवस्था में पहली बैठक हुई. इस बैठक की अध्यक्षता सर वॉल्टर मॉड ने की और गवर्नर लॉर्ड एस.पी. सिन्हा ने इसे संबोधित किया. 

1935 में बिहार से अलग हुआ उड़ीसा

धीरे-धीरे माहौल बदलने लगा. आजादी की लड़ाई तेज हो रही थी और लोग चाहते थे कि परिषद को और अधिकार दिए जाएं. महात्मा गांधी के नेतृत्व में आंदोलन बढ़ा तो ब्रिटिश सरकार को भी बदलाव करना पड़ा. कई बैठकों और समझौतों के बाद 1935 का नया कानून आया, जिसमें बिहार और उड़ीसा अलग स्टेट बनाए गए और प्रांतीय स्वायत्तता (राज्य को चलाने की स्वतंत्रता) की शुरुआत हुई.

नए कानून के साथ मिली नई व्यवस्था  

इस कानून के साथ एक नई व्यवस्था आई दो विधानमंडल (Bicameral Legislature) की. यानी अब दो सदन होंगे. इसमें एक नया सदन बना, बिहार विधान परिषद. इसकी पहली बैठक 22 जुलाई 1936 को हुई और यह बैठक जिस हॉल में हुई, वही आज भी विधान परिषद का हॉल है. 

1937 में राम दयालु बने स्पीकर 

1937 में विधानसभा के चुनाव हुए. संख्या बढ़ाकर 152 सदस्य कर दी गई. चुनाव के बाद डॉ. श्रीकृष्ण सिंह की अगुवाई में पहली जिम्मेदार सरकार बनी. दोनों सदनों का पहला संयुक्त सत्र 22 जुलाई 1937 को हुआ और राम दयालु सिंह विधानसभा के पहले स्पीकर बने. 

श्रीकृष्ण सिन्हा ने दिया इस्तीफा  

1939 में हालात फिर बदल गए. ब्रिटिश सरकार ने भारत को बिना पूछे युद्ध में शामिल कर दिया. इस गलत कदम का विरोध करते हुए श्रीकृष्ण सिंह ने इस्तीफा दे दिया और विधानसभा भंग कर दी गई. दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1945 में फिर चुनाव हुए और फिर से डॉ. श्रीकृष्ण सिंह सरकार बनी. 

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बढ़ती जन संख्या के साथ बढ़ी सीटें 

1950 में संविधान लागू हुआ. उसके बाद 1952 और 1957 में चुनाव हुए. पहली बार 330 सदस्य चुने गए. 1956 में सीमाएं बदलीं और सदस्यों की संख्या 330 से घटकर 318 हो गई. 1962, 1967, 1969 और 1972 में हुए चुनावों में विधानसभा की ताकत 319 ही रही. फिर 1977 में जनसंख्या बढ़ने पर सीटें भी बढ़ाईं गईं. 318 से बढ़कर 324. एक सदस्य पहले की तरह नॉमिनेटेड ही रहा. इस तरह कुल सदस्यों की संख्या बढ़कर 325 हो गई. 

Nishant Kumar
Nishant Kumar
निशांत कुमार पिछले तीन सालों से डिजिटल पत्रकारिता कर रहे हैं. दैनिक भास्कर (बक्सर ब्यूरो) के बाद राजस्थान पत्रिका के यूपी डिजिटल टीम का हिस्सा रहें. वर्तमान में प्रभात खबर डिजिटल के बिहार टीम में काम कर रहे हैं. देश-विदेश की कहानियों पर नजर रखते हैं और साहित्य पढ़ने-लिखने में रुचि रखते हैं.

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