Regional Cinema Bihar: पटना के ज्ञान भवन में शनिवार को एशिया के सबसे बड़े साहित्य उत्सव उन्मेष के मंच पर दिग्गज अभिनेता अमोल पालेकर सौंदर्यपरक भारतीय संवेदनाएं और भारतीय फिल्में विषय पर आयोजित परिचर्चा में बोल रहे थे.
पालेकर ने जोर देकर कहा कि भारतीय सिनेमा की असली ताकत उसकी विविधता है और यह विविधता क्षेत्रीय भाषाओं में बनी फिल्मों से सामने आती है.
क्षेत्रीय फिल्मों का सौंदर्यबोध
अमोल पालेकर ने कहा कि भारतीय समाज के सौंदर्यबोध को समझना है तो भोजपुरी, मराठी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. उन्होंने माना कि इनमें कभी-कभी फुहड़ता भी दिखाई देती है, लेकिन यह भी उस समाज की वास्तविकता और बड़े जनसमुदाय की संवेदनाओं को अभिव्यक्त करता है. उनके मुताबिक, भारतीय सिनेमा केवल मनोरंजन नहीं बल्कि समाज की गहराई और विविधता का आईना है.
अमोल पालेकर ने भारतीय सिनेमा पर नियोरियलिज्म के प्रभाव का विशेष उल्लेख किया. उन्होंने बताया कि विमल राय की दो बीघा जमीन और राजकपूर की बूट पॉलिश फिल्में बाइसिकिल थीफ जैसी यूरोपीय फिल्मों से प्रेरित थीं. यही वह दौर था जब भारतीय फिल्मों में आउटडोर शूटिंग शुरू हुई.
उन्होंने एक रोचक प्रसंग सुनाया कि कैसे इटली के मशहूर फिल्मकार डी सिका ने राजकपूर से पूछा था—”जब आपके देश में इतना उज्ज्वल सूर्य प्रकाश है, तो स्टूडियो के अंधेरे में कृत्रिम रोशनी से क्यों शूट करते हैं?” इसके बाद भारतीय फिल्मों में प्राकृतिक प्रकाश और लोकेशन शूटिंग का चलन बढ़ा.
सत्यजीत रे और प्रेरणा का सिलसिला
पालेकर ने बताया कि महान फिल्मकार सत्यजीत रे भी यूरोपीय सिनेमा से प्रेरित हुए थे. उन्होंने खुद स्वीकार किया था कि विमल राय की दो बीघा जमीन देखने के बाद ही उन्हें पाथेर पंचाली की स्क्रिप्ट लिखने की प्रेरणा मिली.
उन्होंने कहा कि सिनेमा केवल मनोरंजन का जरिया नहीं, बल्कि जीवन के विविध रूपों को पहचानने और समझने का माध्यम भी है. “हमें यह सीख रैशोमोन जैसी फिल्मों से मिली कि सत्य के कितने अलग-अलग रूप हो सकते हैं.”
परिचर्चा में शामिल रत्नोत्तमा सेनगुप्ता ने भारतीय फिल्मों में गीतों की भूमिका पर विस्तार से बात की. उन्होंने कहा कि भारतीय सिनेमा की सौंदर्यपरक संवेदनाओं को समझने में गीतों का योगदान बेहद अहम है.
गाइड फिल्म और कई अन्य चर्चित गीतों का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि भारतीय फिल्मों की खासियत यही है कि वे भावनाओं को केवल दृश्यों से नहीं, बल्कि संगीत और गीतों के जरिये भी अभिव्यक्त करती हैं.
भारतीय सिनेमा की वैश्विक पहचान
अमोल पालेकर ने कहा कि भारतीय सिनेमा दुनिया के अन्य देशों से इसीलिए अलग है, क्योंकि इसमें गाने और नृत्य होते हैं. यही इसकी आत्मा है, जो दर्शकों को गहराई से जोड़ती है. उन्होंने ईरानी सिनेमा का उदाहरण देते हुए कहा कि भारतीय फिल्मों ने भी उससे प्रेरणा ली है और अपनी अलग पहचान बनाई है.
पटना के मंच से अमोल पालेकर ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय सिनेमा की खूबसूरती उसकी विविधता में है. क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों को शामिल किए बिना न तो भारतीय संवेदनाओं की पूरी तस्वीर सामने आएगी और न ही सिनेमा की असली पहचान.
मुंबई तक सीमित दृष्टिकोण भारतीय सिनेमा की कहानी अधूरी छोड़ देगा.
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