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रक्षाबंधन 2025: बिहार में इको-फ्रेंडली राखियों की धूम, जूट और कुल्हड़ से तैयार राखियां बन रहीं सबकी पसंद

Raksha Bandhan 2025: इस बार बिहार में रक्षाबंधन सिर्फ राखियों और मिठाइयों का नहीं, बल्कि क्रिएटिविटी का भी त्योहार बन गया है. कहीं टूटे कुल्हड़ों से इको-फ्रेंडली राखियां बन रही हैं, तो कहीं जूट से बनी नेचुरल राखियां लोगों को अपनी ओर खिंच रही है. इसे खास कर पुलिसकर्मियों, सफाईकर्मियों और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए तैयार किया जा रहा है.

Raksha Bandhan 2025: रक्षाबंधन पर इस बार बिहार की कुछ खास राखीयां बाजार में सबका ध्यान अपनी ओर खिंच रही है. दिखने में जितनी खूबसूरत, उतनी ही खास भी है. इस राखी की सबसे बड़ी बात ये है कि ये पूरी तरह नेचुरल है. इसमें न तो केमिकल, न ही प्लास्टिक का उपयोग किया गया है. न ही इससे स्किन को कोई एलर्जी होगी. राज्य में भाई की कलाई पर प्यार के साथ अब सेहत और प्रकृति की भी परवाह झलक रही है.

कटिहार की जुट वाली राखी

कटिहार में जूट से बनी राखियों की धूम मची है. यहां के एक युवा ने कोलकाता से ट्रेनिंग लेकर हाथ से बनी नेचुरल राखियों का निर्माण शुरू किया है. इस पहल के ज़रिए वह कटिहार को दोबारा ‘जूट नगरी’ के रूप में पहचान दिलाना चाहते हैं. उनके साथ इस काम में एक दर्जन से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हैं, जिन्हें घर के पास ही रोजगार भी मिल रहा है.

दूसरी राखियों की तुलना में है सस्ती

बाजार में मिलने वाली चमकदार और केमिकल से बनी राखियों की तुलना में यह जूट राखी काफी सस्ती है. यह न सिर्फ किफायती है, बल्कि हाथ से बनी होने के कारण खास भी है. इसमें न प्लास्टिक है, न कोई हानिकारक रंग, जिससे यह स्किन के लिए पूरी तरह सुरक्षित रहती है. कम कीमत और अच्छी क्वालिटी के कारण लोग इसे ज्यादा पसंद कर रहे हैं.

पटना की कुल्हड़ वाली राखी

बाजारों में राखियों की खूब चहल-पहल है. इसी बीच पटना के मंदीरी इलाके की झुग्गियों में रहने वाले बच्चे एक अलग ही मिसाल पेश कर रहे हैं. ये बच्चे गोबर के गोइठे और मिट्टी के टूटे कुल्हड़ों का इस्तेमाल कर पर्यावरण के अनुकूल राखियां तैयार कर रहे हैं. खास बात ये है कि इन राखियों में न तो प्लास्टिक का इस्तेमाल हो रहा है और न ही किसी तरह के नकली सामान का.

इन्हें बांधी जायेगी स्पेशल राखियां

इन इको-फ्रेंडली राखियों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इन्हें रक्षाबंधन के दिन पुलिसकर्मियों, सफाईकर्मियों और स्वास्थ्यकर्मियों को बांधा जाएगा. बच्चों का कहना है कि ये वही लोग हैं जो दिन-रात हमारी सुरक्षा और सेवा में लगे रहते हैं, इसलिए असली रक्षक वही हैं. इसके अलावा, इन राखियों को शहर के कई पेड़ों पर भी बांधा जाएगा, ताकि प्रकृति को भी इस त्योहार में शामिल किया जा सके.

अब तक 1000 राखियां हो गयी है तैयार

बच्चों की इस अनोखी पहल ने रक्षाबंधन को एक नया मायने दिया है. अब यह त्योहार सिर्फ भाई-बहन के रिश्ते तक नहीं, बल्कि समाज और प्रकृति से जुड़ाव का भी प्रतीक बन गया है. बच्चों ने अब तक करीब 1000 राखियां तैयार कर ली हैं, जो खास मकसद के लिए इस्तेमाल होंगी.

(जयश्री आनंद की रिपोर्ट)

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Abhinandan Pandey
Abhinandan Pandey
भोपाल से शुरू हुई पत्रकारिता की यात्रा ने बंसल न्यूज (MP/CG) और दैनिक जागरण जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में अनुभव लेते हुए अब प्रभात खबर डिजिटल तक का मुकाम तय किया है. वर्तमान में पटना में कार्यरत हूं और बिहार की सामाजिक-राजनीतिक नब्ज को करीब से समझने का प्रयास कर रहा हूं. गौतम बुद्ध, चाणक्य और आर्यभट की धरती से होने का गर्व है. देश-विदेश की घटनाओं, बिहार की राजनीति, और किस्से-कहानियों में विशेष रुचि रखता हूं. डिजिटल मीडिया के नए ट्रेंड्स, टूल्स और नैरेटिव स्टाइल्स के साथ प्रयोग करना पसंद है.

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