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पटना के गांधी मैदान में लगे सीआरडी पुस्तक मेले में गुरुवार को अलग-अलग श्रेणियों में कार्यक्रम का आयोजन किया गया. मेले में स्त्री नेतृत्व कार्यक्रम के तहत पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने इस बात पर बल दिया कि बच्चों को अच्छे संस्कार देना मां की जिम्मेदारी होती है. वरना आज के समय यह कहावत सही बैठेगी की बोया पेड़ बबूल का तो आम कहा से खाएं.
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मालिनी अवस्थी ने कहा कि मैं अपने जीवन को हर समय सवारने का प्रयास करती हूं. अपने जीवन की सोच को अपने काम के माध्यम से पूरा करती हूं और गीत के माध्यम से लोगों के समक्ष रखती हूं. अपने जीवन संघर्ष के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि मेरे आगे बढ़ने में माता-पिता का योगदान हैं.
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मालिनी ने कहा कि मेरे जीवन में संगीत का अहम योगदान हैं, इसलिए मैंने तय किया था कि मैं जो गाऊंगी तो उसमें भारत दिखेगा. मैंने भारतीय संस्कार को ध्यान में रखकर ही गीत गाएं हैं. मेरा मानना हैं कि संबंधों की मर्यादा बची रहनी चाहिए.
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मालिनी अवस्थी ने कहा कि भारत जब पराधीन था उस समय भारत कि ज्ञान परंपरा को दादियों नानियों ने बचाया. भारत के सारे संस्कार को गीतों के माध्यम से बताया गया है. शास्त्रीय संगीत के ज्ञान होने के बाद भी हमने भारतीय संस्कार को जोड़कर गीत को गाया. उन्होंने अनादि देवी अम्बिके तुम्हे सतत प्रणाम है! , सेजिया पर लोटे काला नाग हो कचौड़ी गली सून कइला बलमू” गीत को गाया.
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उन्होंने कहा कि लोक संगीत के लिए लोक दृष्टि होनी चाहिए, शास्त्रीय संगीत का अनुभव होना जरूरी नहीं. सभी परिवार कि तरह मेरा भी परिवार था. लेकिन मैंने संघर्ष किया और आगे बढ़ी. पहले बेटियों के जन्म कि सूचना तक नहीं देते थे. लोगों ने अपनी निजता बचाने कि वजह से समाजिक कुरीति आयी.
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मालिनी अवस्थी ने कहा कि मैंने ”मिथिला नगरिया आभार सिया के जन्म भयो” गीत के माध्यम से लड़कियों के जन्म उत्सव मनाने के लिए लोगों को कहते हैं. उन्होंने कहां कि पूर्व का समाज मातृ सत्तात्मक हैं. स्त्री ही घर को चलाती हैं. घर का पूरा प्रबंधन करती हैं. कामकाजी महिलाएं पुरुषों से ज्यादा सशक्त हैं. भारत कि पूरी खेती किसानी महिलाएं करती हैं. इस दौरान उन्होंने अपने पोती के जन्म पर लिखे गीतों के बारे में भी बताया.
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