संवाददाता, पटना बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने एक प्रस्ताव तैयार किया है. इस पर विभागीय स्वीकृति मिलने के बाद में राज्यभर में ठनका से बचाव के लिये ताड़ और खजूर के पेड़ लगाये जायेंगे. प्राधिकरण की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक यह देखा गया है कि ठनका से सबसे अधिक मौत खेतों में या खुले में काम करने वालों की हो रही है. ऐसे में पाया गया है कि खेतों के मेढ़ या पतले रास्ते के किराने एक भी ताड़ और खजूर के पेड़ नहीं बचे है. जो पहले हर रास्ते पर होते थे, जिसपर सबसे अधिक ठनका गिरने की घटनाएं होती थी. अब दोबारा से ताड़ का पेड़ लगाने के लिए राज्यभर में अभियान चलायेगा. प्राधिकरण के मुताबिक 2025 में अब तक पिछले साल की तुलना में ठनका से मौत कम हुई है. सिर्फ पटना में पिछले 20 वर्षों में कट गये हजारों ताड़ के पेड़ : पटना में 20 वर्ष पहले सभी इलकों में ताड़-खजूर के पेड़ थे.पटना के दीघा,पटना सिटी, कुम्हरार, फुलवारी, दानापुर, बहादुरपुर, अगमकुआं, नौबतपुर सहित सभी इलाकों में हजारों ताड़ के पेड़ थे, जो आज कट चुके है.शोधकर्ताओं के मुताबिक ताड़ के पेड़ ऊंचे होते है और जब बिजली गिरती है, तो वह पहले उस पेड़ को नुकसान पहुंचाती है. ऐसे में ठनका जमीन पर या किसी व्यक्ति पर नहीं गिरता है और मरने वालों की संख्या भी कम होती है, लेकिन अब खेतों के आसपास कोई ताड़ का पेड़ बचा नहीं है. प्राधिकरण ने ठनका से बचाव के लिए राज्यभर में व्यापक जन-जागरूकता कार्यक्रम चलाया जा रहा है. इसमें प्राधिकरण द्वारा प्रशिक्षित स्वयंसेवक, मास्टर ट्रेनर्स एवं जागरूकता रथ निकाला गया है. स्वयंसेवकों की टीम जागरूकता रथों के साथ गांव-गांव भ्रमण कर वज्रपात से बचाव संबंधी कौशल सीखा रही है और लोगों को बचाव संबंधी जानकारियां दे रही है. कार्यक्रम में पंचायत प्रतिनिधियों, जीविका दीदियों, आंगनबाड़ी सेविकाओं, स्कूली शिक्षकों, एनसीसी कैडेट्स, स्काउट्स के वॉलंटियर्स, स्कूली बच्चों एवं ग्रामीण समुदाय के अन्य लोग भाग ले रहे हैं. इन जिलों में होती है सबसे अधिक मौत :आंकड़ों के मुताबिक जमुई, भागलपुर, पूर्णिया, बांका, गया, औरंगाबाद, कटिहार, पटना, नवादा और रोहतास सबसे अधिक ठनका से प्रभावित जिले हैं. सारण, सीवान दरभंगा, समस्तीपुर, बेगूसराय, भोजपुर, पश्चिम चंपारण जिले दूसरे नंबर पर हैं. गोपालगंज मधुबनी, कैमूर, जहानाबाद, बक्सर, खगड़िया, मधेपुरा, अरवल, वैशाली तीसरे नंबर पर हैं.
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