Navratri 2025: भागलपुर को ‘सिल्क सिटी’ के नाम से देश-विदेश में पहचान मिली है. यहां के रेशमी धागों से बुनी साड़ियों ने वर्षों से बंगाल, दिल्ली और मुंबई के बाजारों को सजाया है हाल के दिनों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बढ़ाए गए टैरिफ के कारण बुनकरों पर कारोबार का संकट मंडरा रहा था. विदेशी ऑर्डर लगभग ठप हो गए थे.
लेकिन जैसे ही नवरात्रि नजदीक आई, वैसे ही बुनकरों के चेहरे पर फिर से रौनक लौट आई. दुर्गा पूजा को देखते हुए देश के कई महानगरों से करीब 5 करोड़ रुपये का ऑर्डर भागलपुर पहुंचा है. इस राहत से बुनकरों में उम्मीद जगी है कि मां दुर्गा की कृपा से इस बार घाटा कुछ हद तक पूरा हो जाएगा.
टैरिफ की मार, फिर नवरात्रि की राहत
भागलपुर के बुनकर लंबे समय से विदेशी ऑर्डरों पर निर्भर थे. खासकर अमेरिका और यूरोप में यहां की सिल्क की अच्छी-खासी डिमांड थी. लेकिन हाल ही में ट्रंप प्रशासन ने सिल्क उत्पादों पर टैरिफ बढ़ा दिया, जिससे कीमतें वहां के खरीदारों को भारी पड़ने लगीं. इसका सीधा असर बुनकरों पर पड़ा और पिछले कुछ महीनों में ऑर्डर लगभग आधे हो गए.
इसी बीच नवरात्रि ने उनके लिए उम्मीद की किरण लाई. इस साल सिर्फ कोलकाता, दिल्ली और मुंबई से ही 5 करोड़ रुपये का ऑर्डर आया है. स्थानीय व्यापारी मानते हैं कि इससे न केवल बुनकरों को रोजगार मिलेगा बल्कि त्योहार के समय उनकी आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी.
कौन-कौन सी साड़ियों की है डिमांड
दुर्गा पूजा के मौके पर हर साल भागलपुर से खास डिजाइन की साड़ियां बनाकर विभिन्न शहरों में भेजी जाती हैं.
कोलकाता: यहां सबसे अधिक मांग मस्राइज साड़ियों की है. इन पर खास कटवर्क किया जाता है, जो साड़ियों को अलग और आकर्षक बनाता है. हल्की और आरामदायक होने के कारण महिलाएं इन्हें पूजा-पंडालों में पहनना पसंद करती हैं.
बाटिक प्रिंट: कोलकाता में बाटिक प्रिंट की डिमांड सबसे ज्यादा है. यह प्रिंट हाथ और मशीन दोनों तरीकों से बनता है. हाथ से बनने वाले प्रिंट में मोम का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे डिजाइन और भी निखर कर आता है. इनकी कीमत 800 रुपये से शुरू होकर 3000 रुपये तक जाती है.
कटवर्क साड़ियां: मस्राइज पर कटवर्क की खास डिमांड दक्षिण भारत में भी है. इस बार वहां से भी बड़े पैमाने पर ऑर्डर आए हैं. इनकी कीमत 1300 रुपये से शुरू होकर 4000 रुपये तक जाती है.
करघों पर फिर लौटी चहल-पहल
भागलपुर के बुनकर सह कारोबारी संजीव कुमार बताते हैं कि विदेशी बाजार में मंदी के बावजूद नवरात्रि ने नई उम्मीद जगाई है. उनका कहना है, “एक-एक बुनकर को इस बार 300 से ज्यादा साड़ियों के ऑर्डर मिले हैं. लोग दिन-रात करघों पर जुटे हुए हैं. अगले पांच से सात दिनों में पहला खेप तैयार होकर कोलकाता और दिल्ली भेज दिया जाएगा.
त्योहार का मौसम बुनकरों के लिए हमेशा से खास रहा है, लेकिन इस बार इसका महत्व और बढ़ गया है. क्योंकि विदेशी ऑर्डर न मिलने से उनका धंधा लगभग आधा रह गया था. अब घरेलू बाजार से मिले ये बड़े ऑर्डर उनके लिए जीवनरेखा साबित हो रहे हैं.
रोजगार और रोजी-रोटी की गारंटी
भागलपुर में बुनकरी सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि हजारों परिवारों का जीवन है. एक-एक करघे पर पूरे परिवार की रोज़ी-रोटी टिकी होती है. स्थानीय बुनकर कहते हैं कि नवरात्रि के ऑर्डर से उन्हें न सिर्फ आर्थिक सहारा मिलेगा बल्कि त्योहार पर घर-परिवार की खुशियां भी लौटेंगी.
बुनकरों का मानना है कि अगर सरकार सिल्क उद्योग को लगातार प्रोत्साहित करती रही तो विदेशी बाजार पर निर्भरता कम होगी और घरेलू बाजार ही उन्हें स्थिर रोजगार दे सकेगा.
त्योहार का तोहफा
नवरात्रि हर साल बुनकरों के लिए उम्मीद लेकर आती है. इस बार भी ऐसा ही हुआ है. करघों पर बैठकर दिन-रात मेहनत करने वाले बुनकर मानते हैं कि यह ऑर्डर उनके लिए मां दुर्गा का आशीर्वाद है. त्योहार के दौरान उनके घरों में न सिर्फ रौनक लौटेगी बल्कि उनके हुनर को भी देश भर में पहचान मिलेगी.
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