Natural Farming: बिहार के पूर्णिया जिले में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की अनोखी पहल शुरू हुई है. कृषि विभाग ने यहां चौबीस महिलाओं को चुना है, जिन्हें जलालगढ़ स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है. यह प्रशिक्षण पूरी तरह निःशुल्क है और पांच दिनों तक चलेगा.
प्रशिक्षण पूरा करने के बाद ये महिलाएं गांवों में जाकर किसानों को बताएंगी कि बिना रसायन और कम लागत में कैसे खेती की जा सकती है. इस कदम से न केवल किसानों की आय बढ़ेगी, बल्कि लोगों की सेहत और पर्यावरण पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा.
खेतों में बदलती सोच की शुरुआत
आज खेती-बारी में तात्कालिक मुनाफे के लिए रसायनों का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है. रासायनिक खाद और कीटनाशक किसानों को त्वरित उत्पादन तो दे रहे हैं, लेकिन धीरे-धीरे मिट्टी की उर्वरता कम हो रही है. दूसरी ओर, इन रसायनों से पैदा होने वाले अन्न और सब्जियां आम लोगों की सेहत पर भी बुरा असर डाल रहे हैं. यही वजह है कि अब सरकार प्राकृतिक खेती पर जोर दे रही है. पूर्णिया में चौबीस कृषि सखियों को प्रशिक्षण देकर इस बदलाव की शुरुआत की गई है.
जलालगढ़ स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी डॉक्टर के एम सिंह ने बताया कि यह कार्यक्रम राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के अंतर्गत चलाया जा रहा है. पांच दिनों तक चलने वाले इस प्रशिक्षण में महिलाओं को जैविक घोल, खाद तैयार करने और कीट नियंत्रण की पारंपरिक विधियों की जानकारी दी जा रही है. इसके जरिए वे किसानों को समझाएंगी कि कैसे घर की ही साधारण चीजों से खेतों को उपजाऊ बनाया जा सकता है.
घर की चीजों से बनेगी खाद और दवा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना है कि पूरे देश में प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित किया जाए. प्राकृतिक खेती की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें बाजार से महंगे रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती.
गाय का गोबर, गौमूत्र, पुवाल, खल्ली, चुना और नीम की पत्तियां जैसे घरेलू सामान खेतों में काम आते हैं. इनसे न केवल खाद तैयार होती है बल्कि कीटों से फसल की रक्षा भी होती है. इससे खेती की लागत घटती है और उत्पादन की गुणवत्ता बढ़ती है.
महिलाओं का बढ़ता उत्साह
प्रशिक्षण ले रही महिला कृषि सखियों का कहना है कि उन्हें यह पहल बेहद उपयोगी लग रही है. वर्षा कुमारी, पूनम देवी, कुमारी जूली, स्वीटी और गीता देवी जैसी महिलाएं मानती हैं कि प्राकृतिक खेती से किसानों का खर्च आधा हो जाएगा और मुनाफा दोगुना. उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण के दौरान उन्हें ठहरने और खाने की मुफ्त सुविधा दी गई है. इसके बाद वे गांवों में जाकर किसानों को समझाएंगी कि कैसे प्राकृतिक खेती अपनाकर वे न केवल अपनी आय बढ़ा सकते हैं बल्कि परिवार की सेहत और मिट्टी की ताकत भी बचा सकते हैं.
पूर्णिया और आसपास के इलाकों में धान और मक्के की खेती प्रमुख है. लेकिन लगातार रसायनों के इस्तेमाल से यहां की मिट्टी की सेहत बिगड़ रही है. अगर प्राकृतिक खेती का दायरा बढ़ा तो किसानों को बेहतर पैदावार मिलेगी और बाजार में उनकी उपज की मांग भी बढ़ेगी. साथ ही, उपभोक्ताओं को भी सुरक्षित और पौष्टिक भोजन मिलेगा.
पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों को लाभ
प्राकृतिक खेती सिर्फ किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने तक सीमित नहीं है. इससे पर्यावरण और स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक असर पड़ता है. रसायन और कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग से जमीन, पानी और हवा प्रदूषित हो रहे हैं. खेतों में प्राकृतिक तरीकों से खेती करने पर यह खतरा घटेगा। इसके साथ ही कैंसर, किडनी और लीवर जैसी गंभीर बीमारियों का जोखिम भी कम होगा, जो अक्सर रसायनों से दूषित भोजन की वजह से बढ़ता है.
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम की खासियत यह है कि इसमें महिलाओं को केंद्रीय भूमिका दी गई है. ग्रामीण समाज में महिलाएं खेती-बारी की अहम भागीदार होती हैं, लेकिन अक्सर उन्हें महत्व नहीं मिलता. चौबीस महिलाओं को प्रशिक्षण देकर न केवल उन्हें सशक्त बनाया जा रहा है बल्कि उनकी मदद से गांव-गांव में प्राकृतिक खेती का संदेश पहुंचाना आसान हो जाएगा.

