MID DAY MILL: बिहार के छपरा जिले के मशरख प्रखंड के गंडामन गांव में 16 जुलाई 2013 को हुए मिड डे मील हादसे ने पूरे देश को झकझोर दिया था. सरकारी स्कूल में मुफ्त मिलने वाले भोजन में जहर मिलने से 23 मासूम बच्चों की मौत हो गई और 50 से ज्यादा बच्चे बीमार पड़े।
यह घटना न केवल योजना की खामियों को उजागर करती है, बल्कि बिहार में मिड डे मील के क्रियान्वयन पर गंभीर सवाल भी खड़े करती है.उस दर्द की यादें गांव के दिल में ताजा हैं—जहां हर बरसी पर बच्चों की तस्वीरों के सामने दीप जलते हैं, लेकिन आंखों का पानी सूखता नहीं.
क्या हुआ था,16 जुलाई 2013 को?
16 जुलाई 2013 को प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाई कर रहे मासूम बच्चे खाना मिलने का इंतजार कर रहे थे. रसोइया ने एक बच्चे को स्कूल की प्रधान शिक्षिका मीना देवी के घर से सरसों तेल लाने को भेजा. सरसों तेल के डिब्बे के पास ही छिड़काव के लिए तैयार कीटनाशक रखा था. बच्चे ने तेल के बदले कीटनाशक का घोल लाकर दे दिया, जो बिल्कुल सरसों तेल जैसा ही था. रसोइया जब सोयाबीन तलने लगी तो उसमें से झाग निकलने लगा. उसने इसकी शिकायत एचएम मीना देवी से की.
मीना देवी ने इस पर ध्यान नहीं दिया. उसके बाद जब खाना बनकर तैयार हो गया और बच्चों को दिया गया तो बच्चों ने खाने का स्वाद खराब होने की शिकायत की थी. बच्चों की शिकायत को नजरअंदाज करते हुए मीना देवी ने डांटकर भगा दिया था. कुछ देर बाद ही बच्चों को उल्टी और दस्त शुरू हो गई. इसके बाद देखते ही देखते 23 बच्चों ने दम तोड़ दिया.
16 जुलाई 2013 – यह तारीख गंडामन गांव की जिंदगी में एक ऐसे काले दिन के रूप में दर्ज है, जिसे गांववाले कभी भूल नहीं सकते. जिस मिड डे मील योजना से बच्चों की भूख मिटनी थी, उसी ने उनके घर का चिराग बुझा दिया.
गांव में मातम और गुस्सा
हादसे के बाद पूरे गांव में मातम पसर गया. गुस्साए लोगों ने सड़क जाम, तोड़फोड़ और आगजनी की. इस घटना की गूंज पूरे देश और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में हुई. जांच में स्कूल की प्राचार्या की लापरवाही सामने आई, जिन पर मुकदमा चला और सजा भी हुई.
आज भी गांव का जख्म हरा है. 10वीं बरसी पर बच्चों की याद में बने स्मारक पर गांववालों और परिजनों ने पुष्प अर्पित किए और हवन किया. इस मौके पर कोई बड़ा सरकारी अधिकारी श्रद्धांजलि देने नहीं पहुंचा.
मिड डे मील योजना पर सवाल
भारत में 1925 में शुरू हुई मिड डे मील योजना का मकसद भूख और निरक्षरता से लड़ना है. लेकिन बिहार जैसे राज्यों में इसके क्रियान्वयन पर सवाल उठते रहे हैं. योजना आयोग की 2010 की रिपोर्ट में भी पाया गया था कि राज्य के 70% छात्र भोजन की गुणवत्ता से असंतुष्ट हैं और कई स्कूलों के पास बुनियादी सुविधाओं का अभाव है.
गंडामन की यह घटना सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि योजनाओं का नाम तभी सार्थक है, जब उनका सही क्रियान्वयन हो—वरना मदद की जगह मौत बांट सकती हैं.

