Gandhi Maidan Patna: गांधी मैदान सिर्फ एक खुला मैदान नहीं, बल्कि बिहार के बदलते दौर का गवाह रहा है. आजादी की लड़ाई से लेकर बड़े-बड़े आंदोलनों की शुरुआत यहीं से हुई. चाहे कोई विशाल रैली हो या फिर किसी बड़े कार्यक्रम का आयोजन, राजधानी में सबसे पहले यही मैदान चुना जाता है. शहर के बीचों-बीच होने की वजह से सुबह से शाम तक यहां लोगों की आवाजाही लगी रहती है.
यहां से गूंजी बदलाव की आवाज
गांधीजी से लेकर सुभाष चंद्र बोस, जयप्रकाश नारायण, आडवाणी और नरेंद्र मोदी तक लगभग हर बड़े नेता ने यहां से अपनी आवाज बुलंद की है. जब-जब देश या बिहार में बदलाव की लहर उठी, जनता का कदम सबसे पहले इसी मैदान की ओर बढ़ा है.
इसी मैदान में फहराया गया था पहली बार तिरंगा
जानकारी के मुताबिक, 5 मार्च 1947 को महात्मा गांधी ने यहां प्रार्थना सभा की थी. आजादी मिलने पर 15 अगस्त 1947 को पहली बार इसी मैदान में तिरंगा फहराया गया. यह वही जगह है जहां राष्ट्रकवि दिनकर ने अपनी कविता सुनाकर लोगों को जोश से भर दिया था.
यहीं से उठी थी संपूर्ण क्रांति की लहर
कहा जाता है कि गांधी मैदान की सबसे ऐतिहासिक सभा 5 जून 1974 को हुई थी. उस दिन शाम को लाखों युवा जेपी को सुनने जुटे थे. इसी सभा में पहली बार उन्होंने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया और यहीं से उन्हें लोकनायक की पहचान मिली. इसके बाद यह मैदान बड़े-बड़े आयोजनों और सभाओं का केंद्र बन गया. आज भी इसकी अहमियत कम नहीं हुई है.
आज भी कायम है अहमियत
आज भी गांधी मैदान की अहमियत बरकरार है. यह सिर्फ ऐतिहासिक घटनाओं की यादें समेटे नहीं है, बल्कि आज के दौर में भी बड़े सांस्कृतिक कार्यक्रमों, राजनीतिक रैलियों और खेलकूद आयोजनों का मुख्य केंद्र बना हुआ है. शहर के बीचों-बीच होने की वजह से लोग सुबह-शाम यहां सैर और आराम के लिए आते हैं. बदलते समय में भी यह मैदान पटना की पहचान और लोगों की भावनाओं से गहराई से जुड़ा हुआ है.
(जयश्री आनंद की रिपोर्ट)

