Bihar Teacher Recruitment Scam: बिहार में शिक्षक बहाली का मुद्दा एक बार फिर विवादों में आ गया है. पटना हाईकोर्ट ने कंप्यूटर साइंस विषय में नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार और शिक्षा विभाग को तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है.
अदालत ने साफ कहा है कि यदि योग्य अभ्यर्थियों के अधिकारों का हनन हुआ है, तो यह गंभीर मामला है जिस पर कठोर कदम उठाए जा सकते हैं.
विवाद की जड़
यह मामला विज्ञापन संख्या 26/2023 से जुड़ा है, जिसके तहत कंप्यूटर साइंस विषय में शिक्षकों की नियुक्ति की जानी थी. याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि इस भर्ती प्रक्रिया में ऐसे उम्मीदवारों को भी नियुक्ति पत्र जारी कर दिए गए, जिन्होंने STET (Secondary Teacher Eligibility Test) या TET (Teacher Eligibility Test) तक पास नहीं किया था. जबकि दोनों परीक्षाएं इस पद के लिए अनिवार्य योग्यता मानी गई थीं.
याचिकाकर्ताओं ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि नियुक्तियों में गड़बड़ी शिक्षा विभाग की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है. उनका कहना है कि अब तक संशोधित मेरिट लिस्ट जारी नहीं की गई है, जिससे योग्य अभ्यर्थियों के अधिकारों का हनन हो रहा है.
अदालत में यह भी दलील दी गई कि पूर्व में ही बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) और राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में अयोग्य उम्मीदवारों की नियुक्ति को गलत माना था, लेकिन कार्रवाई न होने से विभागीय लापरवाही उजागर होती है.
हाईकोर्ट की सख्ती
जस्टिस हरीश कुमार की एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि स्थिति को स्पष्ट करने के लिए शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव (ACS) को व्यक्तिगत रूप से हलफनामा दाखिल करना होगा. अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि यदि योग्य उम्मीदवारों को नजरअंदाज कर अयोग्यों को नियुक्त किया गया है, तो यह शिक्षा व्यवस्था के लिए घातक है और राज्य सरकार को तुरंत इसका समाधान करना चाहिए.
अदालत ने शिक्षा विभाग को चेतावनी दी कि यदि तय समय सीमा के भीतर संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो सख्त निर्देश जारी किए जाएंगे. मामले की अगली सुनवाई 7 अक्टूबर 2025 को होगी. अदालत की इस सख्ती के बाद विभागीय अधिकारियों पर दबाव और बढ़ गया है.
पुराने विवाद फिर याद आए
बिहार की शिक्षक बहाली प्रक्रिया पहले भी विवादों में रही है. समय-समय पर नियुक्तियों में अनियमितता, फर्जी डिग्री और राजनीतिक दबाव के आरोप लगते रहे हैं.
हालांकि, जांच और कार्रवाई के नाम पर अब तक बहुत कम ठोस कदम उठाए गए हैं. यही कारण है कि यह मुद्दा लगातार राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करता रहा है.

