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Bihar News: लीची के बीज और छिलके नहीं होंगे बर्बाद, बिहार में बनेंगे अब ये प्रोडक्ट

Bihar News: एक रिपोर्ट के अनुसार, फल अपशिष्टों को पशु चारे में बदलना पोषण सुरक्षा का प्रभावी माध्यम है. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ विकास दास ने कहा कि लीची के अपशिष्ट से मवेशियों का चारा तैयार करने के लिए रिसर्च चल रहा है.

Bihar News: मुजफ्फरपुर. लीची के बीज और छिलकों से अब पशुओं का चारा बनाने की पहल हो रही है. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र इसके रिसर्च में जुटा है. लीची की प्रोसेसिंग के दौरान उत्पन्न अपशिष्ट, विशेष रूप से छिलके और बीज बेकार हो जाते थे, लेकिन इससे जैविक खाद बनाये जाने से किसानों और पशुपालकों को दोहरा फायदा होगा. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे मवेशियों के दूध में 20 फीसदी की वृद्धि होगी.

पशुओं को मिलेगी पोषण सुरक्षा

मुजफ्फरपुर जिले में लीची का जूस व जैम बनाने के दौरान 40 से 50 फीसदी वजन छिलके, बीज और अन्य अपशिष्ट के रूप में निकलता है. छिलकों में उच्च फाइबर, पॉलीफेनॉल्स, एंटीऑक्सीडेंट्स और विटामिन सी जैसे पोषक तत्व मौजूद होते हैं, लेकिन परंपरागत रूप से इन्हें खाद या जलाने के लिए उपयोग किया जाता है, जो प्रदूषण का कारण बनता है. एक रिपोर्ट के अनुसार, फल अपशिष्टों को पशु चारे में बदलना पोषण सुरक्षा का प्रभावी माध्यम है.

गाजियाबाद की कंपनी ने भी किया पशु चारा तैयार

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र अपशिष्ट उपयोग पर शोध कर रहा है, जिसमें छिलकों को एंटीऑक्सीडेंट स्रोत के रूप में चिह्नित किया गया है. कई किसानों ने लीची अपशिष्ट से चारा तैयार करना शुरू किया है. इस तकनीक में लीची के छिलकों को संरक्षित हरा चारा बनाकर भैंसों और गायों को खिलाया जायेगा़. कई किसानों ने प्रशिक्षण लेकर इसे खुद बनाना शुरू किया है. मई-जून में लीची की कटाई के बाद प्रसंस्करण इकाइयों में काफी मात्रा में छिलके और बीज बेकार पड़े रहते हैं. ये अपशिष्ट सड़ते हैं, जिससे पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता है, लेकिन इसे पशु चारा के रूप में विकसित किये जाने से मवेशी पालकों को कम कीमत में चारा मिलेगा.

लीची के अपशिष्ट टॉक्सिन निकाला जायेगा

गाजियाबाद की विश्वकाइनाथ हर्बस एंड एरॉमेटिक प्राइवेट लिमिटेड ने भी पशुओं का चारा तैयार करके लैब में भेजा है. इसके प्रबंधक कृष्ण गोपाल ने बताया कि लीची के अपशिष्ट का टॉक्सिन निकाल कर चारा तैयार किया है, इससे किसानों को काफी फायदा होगा. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ विकास दास ने कहा कि लीची के अपशिष्ट से मवेशियों का चारा तैयार करने के लिए रिसर्च चल रहा है.

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Ashish Jha
Ashish Jha
डिजिटल पत्रकारिता के क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव. लगातार कुछ अलग और बेहतर करने के साथ हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश. वर्तमान में पटना में कार्यरत. बिहार की सामाजिक-राजनीतिक नब्ज को टटोलने के लिए प्रयासरत. देश-विदेश की घटनाओं और किस्से-कहानियों में विशेष रुचि. डिजिटल मीडिया के नए ट्रेंड्स, टूल्स और नैरेटिव स्टाइल्स को सीखने की चाहत.

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