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Bihar News: कुलपति से ज्यादा बदल दिये गये थे सीएम, बिहार में सबसे छोटा रहा इनका कार्यकाल

Bihar News: बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियां जोरों पर हैं. सभी राजनीतिक दलों ने चुनावी रणनीतियां तेज कर दी हैं. चुनाव आयोग भी अपनी तैयारियों में जुटा हुआ है. अब बस तारीखों का एलान होना बाकी है. इस सियासी माहौल में अगर बिहार की राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें, तो यह बात चौंकाने वाली है कि बिहार में कई ऐसे मुख्यमंत्री भी रहे हैं, जिनका कार्यकाल बेहद छोटा रहा. कुछ तो 5 दिन भी सत्ता की कुर्सी पर नहीं टिक पाए. आइए जानते हैं बिहार के उन मुख्यमंत्रियों के बारे में, जो सबसे कम समय तक इस पद पर रहे.

Bihar News: पटना. बिहार में सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री (Chief Minister) के पद पर रहने का रिकार्ड नीतीश कुमार के नाम है. श्रीकृष्ण सिंह का यह रिकार्ड इसी वर्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तोड़ा है. बिहार में एक दशक ऐसा भी था जब यूनिवर्सिटी में कुलपति कम और राज्य में मुख्यमंत्री अधिक बदल दिये गये थे. यह दशक था 70 का. 1960 से 1970 के बीच में बिहार को 11 मुख्यमंत्री मिले, जबकि 1970 से 1980 के बीच 9 मुख्यमंत्री बदले गये. श्रीकृष्ण सिंह के लंबे कार्यकाल के बाद बिहार में एक ऐसा दौड़ चला जब कोई तीन माह के लिए इस पद पर रहा, तो कोई महज चार दिन में ही पद त्याग दिया.

एक सप्ताह के अंदर आ गया इस्तीफा

सबसे पहले बात करते हैं सतीश प्रसाद सिंह की, जो बिहार के सबसे कम समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले नेता थे. साल 1967 के राजनीतिक बदलावों के दौर में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (SSP) का बिहार की राजनीति में खासा प्रभाव था. उस समय मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद सिन्हा के इस्तीफे के बाद 28 जनवरी 1968 को सतीश प्रसाद सिंह को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई, लेकिन उनका कार्यकाल मात्र 5 दिन चला. 1 फरवरी 1968 को विधानसभा में विश्वास मत हारने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. बाद में वे राज्यसभा के सदस्य बने और राजनीति में सक्रिय रहे, लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में यह उनका सबसे छोटा और सीमित कार्यकाल था.

तीन बार सीएम बने फिर भी दूसरा सबसे छोटा कार्यकाल

दूसरे नंबर पर आते हैं भोला पासवान शास्त्री, जिनकी पहचान एक ऐसे नेता के रूप में रही जो तीन बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन तीनों कार्यकाल मिलाकर भी वे एक साल तक भी मुख्यमंत्री नहीं रह सके. वे पहली बार 22 मार्च 1968 को मुख्यमंत्री बने और उनका पहला कार्यकाल लगभग 100 दिन चला. इसके बाद 22 जून 1969 को उन्होंने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद संभाला, लेकिन यह कार्यकाल सिर्फ 13 दिन का था. फिर 2 जून 1971 को उन्होंने तीसरी बार शपथ ली, जो 9 जनवरी 1972 तक चला. इस प्रकार, तीन बार मुख्यमंत्री बनने के बावजूद उनका शासनकाल हमेशा अस्थिर ही रहा.

बीपी मंडल भी लगा पाये बस दिनों का अर्धशतक

तीसरे स्थान पर हैं दीप नारायण सिंह, जो बिहार के दूसरे मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह की मृत्यु के बाद कार्यवाहक मुख्यमंत्री नियुक्त किए गए थे. 1 फरवरी 1961 को वे मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनका कार्यकाल सिर्फ 17 दिन तक ही रहा और 18 फरवरी 1961 को उन्होंने पद छोड़ दिया. उनका कार्यकाल अस्थायी था और उद्देश्य सिर्फ प्रशासनिक व्यवस्था बनाए रखना था, इसलिए उन्हें स्थायी मुख्यमंत्री नहीं माना गया. बीपी मंडल का कार्यकाल भी बहुत लंबा नहीं रहा. बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल 1 फ़रवरी 1968 से 22 मार्च 1968 तक कुल 51 दिन बिहार के मुख्यमंत्री रहे.

विकास में बाधक बनी अस्थिरता

यह स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि प्रशासनिक अस्थिरता के इस कालखंड में ही बिहार विकास की पटरी से उतरा और एक बीमारू राज्य बनने की ओर अग्रसर हुआ. 1990 के दशक तक बिहार की राजनीति में अस्थिरता कोई नई बात नहीं रही है. गठबंधन, टूटते-बनते समीकरण और विश्वास मत की राजनीति ने राज्य में कई बार मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल को बेहद छोटा बना दिया है. आज जब बिहार फिर से चुनाव की तैयारी में है, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह राजनीतिक स्थिरता के नए अध्याय की शुरुआत करेगा या फिर इतिहास खुद को दोहराएगा.

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Ashish Jha
Ashish Jha
डिजिटल पत्रकारिता के क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव. लगातार कुछ अलग और बेहतर करने के साथ हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश. वर्तमान में पटना में कार्यरत. बिहार की सामाजिक-राजनीतिक नब्ज को टटोलने के लिए प्रयासरत. देश-विदेश की घटनाओं और किस्से-कहानियों में विशेष रुचि. डिजिटल मीडिया के नए ट्रेंड्स, टूल्स और नैरेटिव स्टाइल्स को सीखने की चाहत.

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