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बिहार की पहली पुरावशेष संरक्षण प्रयोगशाला पटना संग्रहालय में बनकर तैयार, संरक्षण एवं डॉक्यूमेंटेशन का काम शुरू

पटना संग्रहालय में पुरावशेष संरक्षण प्रयोगशाला बन कर तैयार हो चुका है. इसके साथ ही यहां हड्डी धातु आदि से निर्मित पुरावशेषों के संरक्षण का कार्य शुरू हो गया है.

बिहार के सबसे पुराने संग्रहालयों में से एक पटना संग्रहालय में बिहार की पहली पुरावशेष संरक्षण प्रयोगशाला तैयार हो चुकी है. पाषाण, अर्ध मूल्यवान पत्थर, धातु, हड्डी, हाथी दांत, पक्की मिट्टी आदि से निर्मित पुरावशेषों के अतिरिक्त कागज, कैनवास, कपड़े आदि पर बनी पाण्डुलिपि, पेंटिंग के साथ-साथ पुस्तकों आदि के डॉक्यूमेंटेशन के साथ संरक्षण का कार्य शुरू हो गया है. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नयी दिल्ली के साथ साइन किये गये एमओयू के तहत इसका निर्माण हुआ है, जिसमें लगभग 15 करोड़ रुपये खर्च किये जा रहे हैं.

आधुनिक मशीनों से होगा संरक्षण का कार्य

इससे पहले संरक्षण का कार्य इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र नयी दिल्ली, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, विज्ञान शाखा और कुछ अन्य राज्यों में होता है लेकिन अब पटना संग्रहालय भी इसमें शामिल हो गया है. पटना संग्रहालय के संग्रह कक्षों, स्ट्रांग रूम और कॉम्पेक्टर रूम में पुरावशेषों को सुरक्षित और समुचित रूप से रखा गया है, जहां पर डिजिटल डॉक्यूमेंटेशन का कार्य किया जा रहा है. डिजिटल डॉक्यूमेंटेशन के बाद संग्रहालय में बनी प्रयोगशाला में संरक्षण का कार्य किया जाता है. संग्रहालय की संरक्षण प्रयोगशाला के लैब 1 और लैब 2 में पुरावशेषों के संरक्षण का कार्य आधुनिक मशीनों के द्वारा भी किया जाता है.

डिजिटल डॉक्यूमेंटेशन के साथ संरक्षण का कार्य शुरू

संग्रहालय के पुराने भवन से जितने भी पुरावशेष हैं, उन्हें संग्रहालय के नये भवन में बने रिजर्व कलेक्शन रूम व कॉम्पेक्टर रूम में संयोजित तरीके से रखा गया है. उक्त पुरावशेषों के डिजिटल डॉक्यूमेंटेशन का कार्य बिहार संग्रहालय के उप निदेशक डॉ सुनील कुमार झा की देख-रेख में बिहार संग्रहालय के चार संग्रहाध्यक्ष डॉ रवि शंकर गुप्ता, डॉ विशी उपाध्याय, डॉ शंकर जय किशन, स्वाति कुमारी सिंह की ओर से किया जा रहा है.

वहीं इस कार्य के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आइजीएनसीए) नयी दिल्ली के कन्जर्वेशन प्रिजर्वेशन डिपार्टमेंट के हेड प्रो अचल पांड्या के नेतृत्व में आवश्यक सहयोग प्राप्त हो रहा है. पटना संग्रहालय में संरक्षण व डॉक्यूमेंटेशन कार्य में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के मनन दीक्षित, विशाल त्रिपाठी और संबंधित विषय के अन्य विशेषज्ञों का आवश्यक सहयोग मिल रहा है.

संग्रहालय में ये लगाये गये हैं उपकरण 

फ्यूम एक्सट्रेक्टर, लो प्रेशर सेक्शन टेबल, केमिकल स्टोरेज कैबिनेट, फ्यूमिगेशन चैंबर, लीका माइक्रोस्कोप और अल्ट्रासॉनिक ह्यूमिडिफायर है.

गंगा गैलरी में लगाये जायेंगे 53 फीट लंबे फौसिल ट्री के अवशेष

दो स्कल्पचर गार्डन के अलावा गंगा और पाटलि गैलरी का भी कार्य जारी है. पुराने भवन में लाखों वर्ष पुराने विशालकाय वृक्ष का जीवाश्म रखा हुआ था, जिसे कन्जर्वेशन लैब की टीम वहां से हटा रही है, जिसे जल्द गंगा गैलरी में लगाया जायेगा. इसके साथ ही एक ऐसी जगह भी तैयार की जा रही है, जहां गंगा के प्रवाह को लोग महसूस कर सकेंगे.

इस दीर्घा में बिहार के सात सांस्कृतिक क्षेत्रों को दर्शाया जा रहा है, जिसमें कारूष क्षेत्र (शाहाबाद) में राम रेखा घाट, चौसा आदि के अवशेषों को दर्शाया जा रहा है. सारण क्षेत्र में प्रसिद्ध चिरांद पुरास्थल व वहां के पुरावशेषों को प्रदर्शित किया जा रहा है. 

एक महीने में पूरा होगा स्कल्पचर गार्डन का कार्य

तिरहुत, अंग, अंगुत्तराप व मिथिला क्षेत्र के प्रसिद्ध पुरास्थलों, जैसे- पांड़ व वहां के पुरावशेषों को प्रदर्शित किया जा रहा है. उक्त सभी क्षेत्रों की  सामाजिक, सांस्कृतिक विशेषताओं को भी प्रदर्शित किया जा रहा है. वहीं पाटलि दीर्घा में कई मॉडल्स व वहां के महत्वपूर्ण पुरास्थलों व पुरावशेषों को दर्शाया व प्रदर्शित किया जा रहा है. स्कल्पचर गार्डन और गैलरी का कार्य लगभग एक महीने में पूरा हो जायेगा. वहीं उम्मीद है कि जून के आखिर या फिर जुलाई के पहले हफ्ते में इसका उद्घाटन भी कर दिया जायेगा.

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