Bihar Election: दीपांकर श्रीवास्तव, सहरसा. राजनीति में कटुता, बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप आम बात है. आज के समय में विरोधी दलों के नेता एक-दूसरे से नजरें मिलाने तक से बचते हैं. लेकिन, कोसी में एक ऐसा दौर भी था जब चुनाव में कांटे की टक्कर के बावजूद नेताओं के रिश्ते निजी स्तर पर मधुर रहते थे. यह कहानी है लहटन चौधरी और परमेश्वर कुंवर की. दो स्वतंत्रता सेनानी, दो बड़े जननेता और दो कट्टर प्रतिद्वंद्वी, जिन्होंने अपनी राजनीति को कभी व्यक्तिगत कड़वाहट में नहीं बदला. लोग आज भी कहते हैं-‘वह दौर राजनीति का स्वर्णयुग था.’ उस दौर में न तो चुनाव में पैसा-बाहुबल हावी था, न ही कटु प्रचार. नेताओं की पहचान उनके व्यक्तित्व, सिद्धांत और विचारधारा से होती थी.
चुनाव में जंग, हार के बाद भी मनाते थे जश्न
सुपौल से 1952 में लहटन चौधरी विधायक चुने गये. 1957 और 1962 में परमेश्वर कुंवर ने चुनाव जीता. महिषी विधानसभा क्षेत्र के गठन के बाद 1967 में भी परमेश्वर कुंवर को जीत मिली. फिर जेपी की समग्र क्रांति के योद्धा के तौर पर परमेश्वर कुंवर ने 1977 के चुनाव में लहटन चौधरी को पराजित किया. चुनाव में दोनों एक-दूसरे को पराजित करते रहे. महिषी विधानसभा क्षेत्र में दशकों तक दोनों के बीच कांटे का मुकाबला रहा. दूसरी ओर दोनों के बीच आपसी संबंध भी उतना ही प्रगाढ़ था. लहटन चौधरी से हारने के बाद परमेश्वर कुंवर और परमेश्वर कुंवर से हारने पर लहटन चौधरी जलेबी मंगा कर प्रतिद्वंद्वी की जीत का जश्न मनाते थे. यानी हार-जीत का सिलसिला चलता रहा, लेकिन कभी भी दोनों के रिश्तों में खटास नहीं आयी.
हार पर मिठाई, जीत पर बधाई
जब भी चुनाव परिणाम आते – हारने वाला मिठाई बांटता. लहटन चौधरी हारते तो कुंवर जी के घर मिठाई भेजी जाती. कुंवर जी हारते तो चौधरी जी गांव में जलेबी बांटकर जश्न मनाते. यह परंपरा राजनीति को उत्सव में बदल देती थी.
चुनाव प्रचार में भी भाईचारा
एक बार प्रचार के दौरान लहटन चौधरी जीप से जा रहे थे. सड़क पर मुलाकात हुई तो परमेश्वर कुंवर बोले –‘पहले मुझे अगले गांव तक छोड़ दीजिए, वहां सभा है.’ सभा खत्म होते ही दोनों फिर साथ बैठकर अगले गांव निकल गये. यह दृश्य देखकर ग्रामीणों को समझ ही नहीं आता कि चुनाव में किसे वोट दें, क्योंकि दोनों ही नेता उनके अपने लगते थे.
गाड़ी खराब, प्रतिद्वंद्वी ने मदद की
एक बार चुनाव के बीच लहटन चौधरी की जीप खराब हो गयी. उन्हें तत्काल चंद्रायन पहुंचना था. तभी वहां से गुजर रहे परमेश्वर कुंवर ने बिना हिचकिचाए अपनी जीप से झंडा उतरवाया और गाड़ी चौधरी जी को दे दी. समर्थक विरोध करतेरहे, लेकिन कुंवर जी ने डांट लगायी- ‘जनता का काम पहले है, राजनीति बाद में.’
विचार अलग, लक्ष्य एक – जनता की सेवा
दोनों नेताओं की राजनीतिक राहें अलग थीं. लहटन चौधरी कांग्रेस के सशक्त चेहरे थे. परमेश्वर कुंवर समाजवादी धारा से जुड़े थे. फिर भी विकास, शिक्षा और सड़क जैसी समस्याओं पर दोनों की राय एक रहती थी. मंत्री रहते जब लहटन चौधरी पर आरोप लगे, तो परमेश्वर कुंवर ने सार्वजनिक रूप से कहा- कोसी के गांधी का अपमान हम बर्दाश्त नहीं करेंगे.
गांधी, विनोबा, लोहिया के आदर्शों पर राजनीति
दोनों नेताओं ने गांधी, विनोबा भावे और लोहिया के आदर्शों को जीवन में उतारा. जनता के मुद्दे पर समझौता नहीं. व्यक्तिगत संबंधों में कभी दूरी नहीं. राजनीति का उद्देश्य सिर्फ सत्ता नहीं, बल्कि जनता की सेवा.

