मुख्य बातें
Anant Singh: पटना. अनंत कुमार सिंह उर्फ अनंत सिंह का प्रारंभिक जीवन साधु बनने की इच्छा से शुरू हुआ, लेकिन भाई की हत्या के बाद बदले की भावना और वर्चस्व की लड़ाई ने अनंत को एक बाहुबली बना दिया. “छोटे सरकार” के नाम से प्रसिद्ध अनंत सिंह अपने बड़े भाई विनोद सिंह की हत्या के बाद ही हिंसा का रास्ता अपनाया. बिहार के प्रभावशाली भूमिहार समुदाय में पैदा हुए अनंत सिंह का जीवन वैराग्य, बदला और सत्ता तीनों से होकर गुज़रा है. एक साक्षात्कार में अनंत सिंह खुद कहते हैं कि उनका शुरुआती जीवन बिल्कुल अलग था. साधु बनने के लिए वो एक बार घर छोड़ हरिद्वार चला गये थे.
Anant Singh: साधु-संतों के बीच रहकर की सेवा
1 जुलाई, 1961 को पटना जिले के बाढ़ अनुमंडल के नदवां गांव में जन्म अनंत अपने चार भाइयों में सबसे छोटे हैं. बचपन में उनका मन न पढ़ाई में लगता था, न खेल में बल्कि पूजा-पाठ और भक्ति में उनका गहरा रुझान था. चौथी कक्षा के बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया. परिवार वालों के विरोध के बावजूद, मात्र 9 साल की उम्र में अनंत घर छोड़कर हरिद्वार चले गए. वहां उन्होंने साधु-संतों के बीच रहकर सेवा की, मंदिरों में सफाई और भंडारे में काम करते हुए कई माह गुजारे. हरिद्वार में रहते हुए अनंत को ऐसा लगने लगा था कि उन्होंने अपनी मंज़िल पा ली है.
Anant Singh: ऐसे हुआ संन्यास की दुनिया से मोहभंग
शांति की चाह में हरिद्वार गये अनंत को तब बड़ा झटका लगा जब एक दिन साधुओं के बीच हुए हिंसक झड़प हो गयी. इस घटना ने अनंत की सोच को पूरी तरह झकझोर दिया. जिस स्थान को उन्होंने “शांति और वैराग्य” का प्रतीक समझा था, वहां उन्होंने लालच और हिंसा का वो चेहरा देखा, जिसे छोड़कर वो हरिद्वार आये थे. 10 वर्ष की अल्पआयु में ही बालक अनंत का वैराग्य टूट गया और वो अपने गांव नदवां लौट आए.
Anant Singh: भाई की हत्या ने बदला जीवन
गांव लौटने के कुछ समय बाद ही अनंत के बड़े भाई की हत्या हो गयी. एक दोपहर खाना खाते हुए उन्हें खबर मिली कि उनके बड़े भाई बिराची सिंह की गांव के चौक पर गोली मारकर हत्या कर दी गई है. अनंत सिंह का परिवार उस समय इलाके के प्रभावशाली ज़मींदारों में से एक था. यह वह दौर था जब बिहार के ग्रामीण इलाकों में माओवादी (नक्सली) आंदोलन अपने चरम पर था. ज़मींदारों और उग्रवादियों के बीच खूनी टकराव आम बात थी. भाई की हत्या ने अनंत के जीवन का लक्ष्य ही बदल दिया. यहीं से उनके छोटे सरकार बनने की कहानी शुरू हुई.
Anant Singh: पत्थर से कुचल कर की थी पहली हत्या
लेखक राजेश सिंह अपनी किताब “Bahubalis of Indian Politics” में लिखते हैं, “न्याय न मिलने पर अनंत ने खुद हत्यारे को सज़ा देने की ठानी. एक रात उन्हें सूचना मिली कि हत्यारा गंगा पार के जंगल में छिपा है. उनके साथी ने कहा कि न हथियार हैं, न नाव, लेकिन अनंत ने किसी की नहीं सुनी. वे गंगा नदी में छलांग लगाकर तैरते हुए उस पार पहुंच गए. घंटों की मशक्कत के बाद जब वे हत्यारे तक पहुंचे, तो उनके पास कोई हथियार नहीं था. उन्होंने पत्थर उठाया और उसी से हमला कर दिया. पहले उसे बेहोश किया और फिर सिर पर जोरदार वार कर उसकी जान ले ली. रात के अंधेरे में खून से सने हाथों के साथ अनंत सिंह गंगा पार करके अपने गांव लौटे.”
Anant Singh: “संरक्षक” से “सत्ता के प्रतीक” में बदले अनंत
अनंत सिंह की छवि एक “निडर” और “अपनों का बदला लेने वाला” की बन गयी. 1990 के दशक में वे बाढ़ और मोकामा क्षेत्र में अपना असर जमाने लगे. उन पर हत्या, रंगदारी, और धमकी जैसे गंभीर आरोप लगे हैं. अनंत सिंह “संरक्षक” से “सत्ता के प्रतीक” में बदल गये. वक़्त के साथ उन्होंने अपने प्रभाव को राजनीतिक रूप से भी इस्तेमाल किया. स्थानीय नेताओं से संबंध बने. धीरे-धीरे उन्होंने खुद को बिहार की राजनीति के “मजबूत चेहरों” में शामिल कर लिया. हालांकि राजनीतिक करियर विवादों से घिरा रहा है. अनंत सिंह ने 2005 में मोकामा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद उन्होंने पांच लगातार चुनाव जीते, कभी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में और कभी राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार के रूप में.
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