पटना. दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान केंद्र में ‘मोदी काल में भारतीय विदेश नीति में गैर पारंपरिक मुद्दे’ विषय पर दो-दिवसिय राष्ट्रीय संगोष्ठी मंगलवार से शुरू हो चुकी है. सेमिनार के इस विषय में लोग खूब दिलस्पी ले रहे हैं. सेमिनार में अकादमिक जगत की कई बड़ी हस्तियां भाग ले रही हैं. उद्घाटन सत्र में प्रोफेसर केके मिश्रा, मगध यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एहतेशाम खान, विनोबा भावे यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मार्ग्रेट लाकरा, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के पीके सिंह, प्रोफेसर एसएन सिंह आदि ने व्याख्यान दिया.
बीएचयू के प्रोफेसर केके मिश्रा ने बतौर मुख्यवक्ता मोदी के कार्य-काल का एक सकारात्मक चरित्र-चित्रण प्रस्तुत किया. उन्होंने यह बताया की आज पूरे विश्व में ‘मोदी थीसिस’ की चर्चा हो रही है, परन्तु हम अभी भी मोदी-थीसिस को समझने में भूल कर रहे है. कभी जान-बूझ कर, तो कभी अनजाने में. नरेंद्र मोदी का विकास मंत्र ‘सबका साथ सबका विकास’ वर्तमान प्रेसिडेंट ट्रंप के चुनावी भाषण में भी गूंज रहा. आज संपूर्ण विश्व में इसकी चर्चा हो रही है. विश्व में युद्ध द्वारा मुद्दे सुलझाने की कवायद समाप्त हो रही है और शांतिपूर्ण सहयोग, बढ़ते इंटर-डिपेंडेंस (पारस्परिक निर्भरता) एवं आर्थिक निर्भरता के कारण युद्ध की भूमिका लगभग नगण्य हो चुकी है.
उन्होंने बताया, सत्तर साल के भारतीय विदेश नीति का आंकलन करें, तो नेहरु जी ने गुट-निरपेक्षता की नीति अपना कर भारत को विश्व से होने वाले फायदे को कम कर दिया और यह एक भूल थी. हम स्वयं को तो गुट निरपेक्ष बताते रहे और रूस के साथ संबंध बढ़ाते रहे. बाद में इंदिरा गांधी ने भी यही गलती की और विदेश नीति बिहार में खाने वाले ‘लठ्ठे’ की तरह हो गयी थी, जिसे गुड़ की चासनी में मढ़ दिया गया था. अमनेस्टी इंटरनेशनल जैसी संस्थाएं कश्मीर नीति की आलोचना करती रहीं और हम उसे नजरअंदाज करते रहे. उन्होंने बताया कि यह मोदी थीसिस का ही परिणाम है कि आज चीन भी हमसे थर्राने लगा है, क्योंकि भारतीय बाजार पर उसके कब्जे को तोड़ने का प्रयास शुरू कर दिया गया है.