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UP में काम न आयी ‘पीके’ की ‘फिरकी’, भारी पड़ी अमित शाह की पैनी रणनीति

आशुतोष के पांडेय पटना : जरा, ध्यान से देखिए नीतीश कुमार के साथ खड़े इस मुस्कुराते हुए चेहरे को. बिहार चुनाव के बाद मोदी विरोधी दलों को लगा-उन्हें मोदी के खिलाफ प्रचंड बहुमत के सत्ता वाले रथ पर सवार करवाने वाला एक साथी मिल गया है. जी हां, बात चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की हो […]

आशुतोष के पांडेय


पटना :
जरा, ध्यान से देखिए नीतीश कुमार के साथ खड़े इस मुस्कुराते हुए चेहरे को. बिहार चुनाव के बाद मोदी विरोधी दलों को लगा-उन्हें मोदी के खिलाफ प्रचंड बहुमत के सत्ता वाले रथ पर सवार करवाने वाला एक साथी मिल गया है. जी हां, बात चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की हो रही है. सियासत में यह आमिर खान की फिल्म ‘पीके’ से ज्यादा चर्चित हुए और अपने रणनीतिक गणित से बिहार चुनाव में बीजेपी को पानी पिला दिया. कुछ ऐसा ही सपना लेकर वह यूपी गये और वहां भी कांग्रेस की कमान संभाली, लेकिन अमित शाह की पैनी रणनीति के आगे धराशायी हो गये.भाजपाने दो तिहाई बहुमत से ज्यादा सीटें जीतकर यह बता दिया कि ‘गुरु’ आखिर ‘गुरु’ ही होता है.

चाय पर चर्चा कार्यक्रम से आये चर्चा में

प्रशांत किशोर 2014 में बीजेपी के साथ थे और लोकसभा चुनाव में उन्होंने लोक संपर्क से जुड़ा एक दमदार आइडिया पेश कर सबका दिल जीत लिया. चाय पर चर्चा. लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश ने उन पर भरोसा जताया और बिहार में महागठबंधन को भी शानदार जीत मिली. लोगों में यह संदेश गया कि जिसके साथ प्रशांत किशोर होंगे, उन्हें सफलता जरूर मिलेगी. हालांकि, उन्हें भी यह नहीं पता होगा कि सियासत की खिचड़ी ही कुछ ऐसी होती है कि सामने वाले को पता ही नहीं होता किवह धीमी आंच पर पकेगी या तेज आंच पर. प्रशांत किशोर ने यूपी में कांग्रेस के लिये काम शुरू किया और खाट सभाएं आयोजित करवायी, लेकिन उन्होंने सोचा नहीं होगा कि भीड़ सभा में शामिल होने कम, खाट लूटने ज्यादा आ रही है.

प्रशांत किशोर की रणनीति हुई फेल

प्रशांत किशोर बिहार में नीतीश के लिये मुस्कान का कारण बने और अब यूपी में राहुल-अखिलेश के सपने को तोड़ने का श्रेय भी जानकार उन्हें ही दे रहे हैं. प्रशांत किशोरने यूपी में जितनी रणनीति हो सकती थी, वह चली और लागू किया. उन्होंने ब्राह्मण वोटों को नजर में रखकर शीला दीक्षित को सीएम का उम्मीदवार घोषित करवाया और कांग्रेस के आदेश पर संगठन को मजबूती देने में लग गये. हालांकि राजनीतिक जानकार यह भी कहते हैं कि उन्हें नीतीश ने जितनी आजादी के साथ काम करने दिया था, उतना यूपी में कांग्रेस ने नहीं दी. इतना ही नहीं, समय-समय पर यूपी कांग्रेस के नेता ‘पीके’ की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाते रहे. यूपी में कांग्रेस अपने अंदरूनी झगड़ों में उलझी थी, बाद में साथी अखिलेश मिले, उनके परिवार में भी सियासी घमसान ही मचा रहा.

सत्ता विरोधी लहर की हवा को पहचान नहीं पाये किशोर

यूपी की राजनीति जाति के साथ-साथ विभिन्न जातियों को लेकर किये जाने वाले सम्मेलनों पर भी टिकी होती है. जब मायावती यूपी में विजयी हुई थीं तो उन्होंने सबसे ज्यादा ब्राह्मण सम्मेलन करवाये थे. मुलायम जब विजयी हुए तो उन्होंने भी कई सम्मेलन आयोजित करवाये थे. इस बार अमित शाह ने विधानसभा क्षेत्र पर टारगेट किया और अपनी टीम को यह काम सौंपा कि उस क्षेत्र में किस जाति का वर्चस्व है और उसका मुखिया कौन है, उस पर कार्यकर्ता फोकस करें. बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने जमीनी स्तर पर जाकर कैंपेन को पैना किया और लोगों के दिलों में जगह बनाने का काम किया. अखिलेश से राहुल का हाथ मिलाना भी किशोर की रणनीति बतायी जा रही है और अब विफलता का श्रेय भी प्रशांत किशोर को लेना होगा.

रणनीति पर भारी पड़ी शाह की पैनी राजनीति

अमित शाह ने लोकसभा चुनाव की तरह यूपी चुनाव में भी जमीनी स्तर की राजनीति से सत्ता को देखना शुरू किया. अमित शाह ने संगठन स्तर पर सबको पहले एकजुट किया और पार्टी के एक-एक कार्यकर्ताओं को गांवों पर ध्यान देने की बात कही. वोट गांव में होता है और ग्रामीण ही सत्ता के करीब ले जायेगा. इस रणनीति ने प्रशांत किशोर के धांसू आइडिया की धुआं निकालकर रख दी. अमित शाह ने एक दशक से लगातार यूपी में कमजोर होते संगठन को दोबारा उर्जा दी और यूपी चुनाव में प्रशांत किशोर के जादू को हवा कर दिया. अब तोआनेवाले दिनों में सियासतकरनेवालेराजनेता भी प्रशांत किशोर की ‘फिरकी’ लेने से नहीं चुकेंगे.

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