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क्राइम कथा : हरे-हरे नोट पर डोल गये मैनेजर साहब

क्राइम कथा के आज के इस अंक में पढ़िए ओहदेदार के ईमान में खोट. मन लालच से घिरा तो धन कुबेर की गद्दी से उतर कर हाथ काला कर लिया. हिसाब रखने के लिए मैनेजर का सौभाग्य प्राप्त था, लेकिन खजाने में ही हाथ लगा दिया. चुराया हुआ पैसा पुलिस ने बरामद कर लिया. इज्जत […]

क्राइम कथा के आज के इस अंक में पढ़िए ओहदेदार के ईमान में खोट. मन लालच से घिरा तो धन कुबेर की गद्दी से उतर कर हाथ काला कर लिया. हिसाब रखने के लिए मैनेजर का सौभाग्य प्राप्त था, लेकिन खजाने में ही हाथ लगा दिया. चुराया हुआ पैसा पुलिस ने बरामद कर लिया.
इज्जत और नौकरी खुद से गवां बैठे. छोटी-सी गलती और माथे पर लिया गुनाह का ठप्पा. 83 लाख रुपये चुरा कर भाग गया मैनेजर. उसने सोचा कि पूरे पैसे को पचा जाएं, लेकिन मैनेजर नागेंद्र का हाजमा गबन व चोरी की रकम पचाने वाला नहीं था. फिर इस गलती ने सब कुछ छीन लिया आैर दलदल में फंसा दिया. पढ़िए पूरी तफतीश करती रिपोर्ट.
विजय सिंह
पटना : बैंक मैनेजर, अच्छी खासी तनख्वाह, गरिमामय पद. खाने-पीने और इज्जत से जीने की मुकम्मल व्यवस्था. बावजूद जिस शख्स का ईमान डोल गया, उसका नाम नागेंद्र सिंह है. रोज नोट की गड्डी देखते हैं, लाल-हरे नोट के पत्तों को सहेजते हैं और उसका हिसाब रखते हैं.
इन पैसा की दुनिया के बीच रह कर नागेंद्र ने कुछ ख्वाब देख लिये, ये वह ख्वाब थे जो बिना पैसे के पूरे नहीं हो सकते. महंगी गाड़ी, आलीशान मकान, शानो-शौकत की अन्य वस्तु अब उन्हें खूब आकर्षित करती है. ड्यूटी से जब घर जाते तो यही ख्वाब उन्हें सोने नहीं देते. पत्नी से भी चर्चा करते और फिर मन मसोस कर रह जाते. धीरे-धीरे लालच का दायरा बढ़ता गया. असर यह हुआ कि नागेंद्र अपना आेहदा, सम्म्मान, स्वाभिमान सब कुछ भूल गये. एक दिन ठान लिया कि बैंक में आने वाला सारा पैसा लेकर चंपत हो जाएं और ऐसा कर भी डाला.
दरअसल शाहपुर थाना क्षेत्र के महरजा गांव के रहने वाले नागेंद्र आरा में नवादा थाना क्षेत्र के रामनगर में भाड़े के मकान में रहते हैं. तीन साल पहले नागेंद्र को समस्तीपुर में नॉन बैकिंग कंपनी क्रेडिट केयर नेटवर्क लिमिटेड के भगवानपुर शाखा में मैनेजर होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.
यह कंपनी स्वयं सहायता समूह बना कर लोगों के बीच में पैसा बांटती है. यह पद संभालते हुए नागेंद्र पर पहले कभी किसी प्रकार के आरोप नहीं लगे. कंपनी भी उनकी देख-रेख में लगातार ग्रोथ कर रही थी, इसलिए जब तबादले की बात आयी तो कंपनी ने अपनी सभी शाखा प्रबंधक को इधर से उधर किया, लेकिन नागेंद्र की कुरसी सलामत रही.
कंपनी की कृपा से वह समस्तीपुर में ही जमे रहे. उनकी ईमानदारी और बेहतर काम ने कंपनी का दिल जीत लिया. कंपनी उन पर पूरा भरोसा करती है, लेकिन जब नागेंद्र ने अपना इरादा बदला, तो विश्वास की जमीन पांव के नीचे से खिसक गयी. दरअसल ईमानदारी की कमाई से नागेंद्र और उसके परिवार का पेट तो भरता, पर कुछ भौतिक इच्छाएं थीं, जो पैसे के अभाव में आकार नहीं ले पा रही थी. पैसा कमाने और अपने सभी ख्वाब पूरे कर लेने की चाहत इस कदर बढ़ी कि नागेंद्र ने बड़ा कदम उठाया.
आज गुरुवार (31 मार्च 2016) है. मार्च क्लोजिंग की अंतिम तारीख है. नागेंद्र सिंह समय से ड्यूटी पहुंचते हैं. सब कुछ प्लान करके आये हैं. अपने चैंबर में पहुंचते हैं. सिस्टम ऑन करते हैं और लग जाते हैं अपने प्लान को मूर्त रूप देने में. बैंक में अाठ लाख रुपये मौजूद हैं.
इन पैसों का वितरण करना है. इसके अलावा 75 लाख रुपये और चाहिए. पैसे कैसे वितरण किये जायेंगे, इसका हिसाब तैयार है. नागेंद्र ने अपने कंपनी के अधिकारी यशवंत सिंह को पत्र लिखा. इस पर यशवंत सिंह ने आइसीआइसीआइ बैंक से 75 लाख रुपये निकाल कर नागेंद्र को रिसीव करा दिया. कुल 83 लाख रुपये हाथ में आ गये हैं. नागेंद्र ने जो प्लान बनाया था, वह पूरा होता दिख रहा है. पैसा हाथ में आने के बाद उसे ठिकाने लगाना है, नागेंद्र अपने दिमाग के घोड़े दौड़ा रहे हैं.
सब लोग अपने काम में लगे हैं और नागेंद्र पैसे का बंडल बनवा रहे हैं. मौका मिलते ही पूरा पैसा लेकर निकलना है. नागेंद्र पर कंपनी के अधिकारियों का विश्वास था, इसलिए जैसा कह रह रहे थे, वैसे काम हो रहा था. थोड़ेे ही देर में पैसों का बंडल बंध कर तैयार हो गया.
नागेंद्र ने एक बोलेरो बुक कर रखी थी. उसको फोन किया और बैंक के पास उसे बुलाया. इसके बाद रुपयों से भरा बैग गाड़ी में रख दिया गया. आनन-फानन में वह गाड़ी लेकर समस्तीपुर से निकल गये. लंबे सफर के बाद वह सासाराम पहुंचे. वहां पर उसने बोलेरो को छोड़ दिया. रुपयों से भरा बैग लेकर वह सासाराम में उतर गये. वहां से फिर दूसरी गाड़ी मंगायी और आरा जिले के नवादा थाना क्षेत्र के रामनगर मुहल्ले में पहुंचे जहां पर वह डेरा लेकर रहते थे. परिवार में पत्नी और रेणु कुमारी, पिता जगदीश सिंह रहते हैं.
सभी ने पैसा देखा तो अवाक रह गये. जगदीश सिंह की आंखें फटी-की-फटी रह गयी. उन्होंने घबरा कर पूछा कि इतना पैसा कहां से आया. पर, नागेंद्र के सिर पर तो पैसे का भूत सवार था. उसने कुछ नहीं बताया. पैसे को घर में छुपा दिया और घर से फरार हो गया. इधर, कंपनी से पैसा गायब होने के बाद पूरा हड़कंप मचा हुआ है. छानबीन जारी है. अगले दिन भारी माथा-पच्ची के बाद कंपनी के क्षेत्रीय प्रबंधक राजेश यादव दलसिंहसराय थाना पहुंचते हैं. वहां पर नागेंद्र के खिलाफ नामजद एफआइआर दर्ज करायी जाती है.
यहां से शुरू हुई 83 लाख रुपये लेकर भागने वाले मैनेजर नागेंद्र की तलाश. समस्तीपुर एसपी इस केस में लगे तो नागेंद्र के मोबाइल फोन का टावर लोकेशन निकाला गया. घटना के दिन पता चला कि वह समस्तीपुर से सासाराम आये थे और यहीं से बोलेरो को छोड़ दिया. इसके आगे बोलेरो वाले को भी नहीं पता कि वह कहां गया. फिर समस्तीपुर पुलिस ने आरा की पुलिस से संपर्क किया. तत्काल पुलिस टीम बनायी गयी और आरा के रामनगर मुहल्ले में नागेंद्र के भाड़े के मकान में छापेमारी का प्लान बनाया गया.
तीन अप्रैल को भारी संख्या में पुलिस बल पहुंचा और नागेंद्र के घर और आसपास की गहन तलाशी ली. इस दौरान पुलिस को सफलता मिली. नागेंद्र के घर में बोरे में छुपा कर रो नोटों की गड्डी बरामद की गयी. पुलिस ने गिनती करायी, लेकिन यह पैसा पूरा नहीं निकला. इसमें 75 लाख ही थे, बाकी के आठ लाख रुपये नहीं मिले. नागेंद्र घर पर नहीं मिला. पुलिस ने उसकी पत्नी रेणु कुमारी और पिता जगदीश सिंह को हिरासत में लिया और समस्तीपुर चली गयी.
पूछताछ में जगदीश सिंह ने बताया कि उन्होंने बेटे से पूछा था कि इतने पैसे कहां से आये, लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया. पुलिस की पूछताछ में कुछ और जानकारी नहीं मिल पायी. तब से पुलिस नागेंद्र की तलाश कर रही है.
(इनपुट : आरा से गोपाल मिश्रा)
Prabhat Khabar Digital Desk
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