पूर्णिया जिले के धमदाहा थाने से होने जा रही इसकी शुरुआत
पटना : राज्य में बच्चों या किशोर के खिलाफ होने वाले अपराध पर पूरी तरह से अंकुश लगाने के लिए बिहार पुलिस की तरफ से एक नयी पहल की गयी है. इसके तहत थानों को चाइल्ड फ्रेंडली बनाने की कवायद शुरू की गयी है.
कोई अलग से थाना नहीं तैयार किया जायेगा, बल्कि थाने के एक हिस्से को या मुख्य थाना से बाहर अलग से विशेष संरचना को बच्चों के अनुरूप तैयार किया जायेगा. यहां आने पर किसी को पारंपरिक थाने जैसा कोई आभास नहीं हो. यह कवायद पॉक्सो या किशोर अपराध से पीड़ित किसी बच्चे या किशोर के लिए की जा रही है.
जो बच्चे किसी अपराध के शिकार हो जाते या अपराध में फंस जाते हैं, तो ऐसे पीड़ित बच्चों के मन से थाने का खौफ दूर करने के लिए यह खास पहल की गयी है ताकि दोस्ताना और सुखद माहौल में उनके साथ कानूनी प्रक्रिया पूरी की जा सके. यहां किसी बच्चे को आने पर कहीं से थाना जैसा नहीं लगेगा. बाल मन के अनुकूल तमाम साज-सज्जा और वातावरण को तैयार किया जायेगा. यह एक तरह से किड जोन होगा.
ऐसे ही एक मॉडल की शुरुआत पूर्णिया जिले के धमदाहा थाने से होने जा रही है. इसका उद्घाटन आगामी सप्ताह में होने जा रहा है. इस मॉडल को हर तरह से परखने के बाद ऐसा ही मॉडल सभी थानों में चरणबद्ध तरीके से लागू कर दिया जायेगा. शुरुआती चरण में कुछ चुनिंदा थानों में यह शुरू होगा.
शुरुआत में जिन इलाकों में बाल अपराध की घटनाएं ज्यादा होती हैं या इस तरह की शिकायतें ज्यादा आती हैं, उन थानों को चिह्नित करके इस मॉडल को लागू किया जायेगा. वर्तमान में राज्य के कुछ जिलों भागलपुर, गया व नालंदा समेत कुछ एक जिलों के चुनिंदा थानों में चाइल्ड फ्रेंडली डेस्क चल रहे हैं. इस डेस्क को विस्तार देते हुए अब थानों में पूरी तरह से चाइल्ड फ्रेंडली जोन तैयार किये जा रहे हैं.
यह होगी इसकी खासियत
चाइल्ड फ्रेंडली थानों में एक कमरा अलग से बाल अपराध के शिकार होकर आने वाले बच्चों के लिए होगा. यहां यूनिसेफ और बचपन बचाओ आंदोलन जैसी संस्थानों की मदद से एक-एक काउंसेलर तैनात होंगे, जो बच्चों के मन पर अपराध के बाद पड़ने वाले दुष्परिणामों को दूर करने में हर संभव मदद करेंगे. इनकी हर तरह से काउंसेलिंग करके सामान्य जीवनयापन और लक्ष्य के प्रति केंद्रित करने में मदद की जायेगी.
पीड़ित बच्चों के साथ इनके अभिभावक की भी काउंसेलिंग होगी. इनसे घटना के बारे में पुलिसिया अंदाज में पूछताछ नहीं होगी. पुलिस का रौब और अन्य बातों के प्रभाव से पूरी तरह से दूर रखा जायेगा.
इसलिए पड़ी इसकी जरूरत
हालांकि, देश के दूसरे राज्यों यूपी, एमपी, महाराष्ट्र, कर्नाटक व तमिलनाडु समेत अन्य की तुलना में बिहार में बच्चों और किशोरों के प्रति होने वाले अपराधों की संख्या काफी कम है. फिर भी पिछले पांच साल की तुलना में सूबे में इस तरह के अपराध में 20 से 25 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है. पॉक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस) एक्ट के तहत मामले दर्ज ज्यादा होने लगे हैं.