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पटना : 14 जिलों के प्राइवेट अस्पतालों में ढूंढ़े जायेंगे 80 हजार टीबी मरीज

रविशंकर उपाध्याय पब्लिक सेक्टर में 70 हजार मरीजों का हो रहा इलाज, टीबी पीड़ित के परिवार के सदस्यों की होगी काउंसेलिंग पटना : राज्य के 14 जिलों के प्राइवेट सेक्टर के अस्पतालों में इलाज करा रहे 80 हजार टीबी मरीजों को ढूंढ़ा जायेगा. ये वैसे मरीज हैं जो अभी तक सरकारी अांकड़ें में नहीं शामिल […]

रविशंकर उपाध्याय
पब्लिक सेक्टर में 70 हजार मरीजों का हो रहा इलाज, टीबी पीड़ित के परिवार के सदस्यों की होगी काउंसेलिंग
पटना : राज्य के 14 जिलों के प्राइवेट सेक्टर के अस्पतालों में इलाज करा रहे 80 हजार टीबी मरीजों को ढूंढ़ा जायेगा. ये वैसे मरीज हैं जो अभी तक सरकारी अांकड़ें में नहीं शामिल हो सके हैं. इसके लिए प्राइवेट एजेंसी की मदद से सरकार मरीजों की मैपिंग करेगी. एजेंसी जो डिटेल्स उपलब्ध करायेगा, उस पर स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी-पदाधिकारी मरीजों के घर जाकर उनकी जांच करेंगे.
टीबी से पीड़ित परिवार के सभी सदस्यों की काउंसेलिंग की जायेगी और बच्चों की भी जांच के साथ उन्हें बचाव की दवा मुहैया करायी जायेगी. अभी तक राज्य में केवल पब्लिक सेक्टर अस्पतालों में 70 हजार मरीजों का इलाज किया जा रहा है. राज्य सरकार ने लक्ष्य तय किया है कि कुल 1.5 लाख मरीजों को ढूंढ़ कर उनका पूरा इलाज किया जाये ताकि किसी दूसरे को यह बीमारी नहीं होने पाये. इसके लिए 14 जिलों में कुल चार कलस्टर बनाये गये हैं. चारों कलस्टर में तीन से चार जिले रखे गये हैं.
टीबी की पहचान होने पर ही रोकथाम संभव
यदि टीबी की पहचान हो जाए और मरीज दवा का पूरा कोर्स ले ले तो वह पूरी तरह स्वस्थ हो सकता है. दवा का कोर्स अधूरा रहने पर एमडीअार टीबी होने की आशंका रहती है. इसमें मरीज की जान तक जा सकती है.
टीबी यानी ट्यूबरक्‍युलोसिस बैक्टीरिया से होनेवाली बीमारी है. कॉमन फेफड़ों का टीबी है और यह हवा के जरिए एक से दूसरे इंसान में फैलती है. यदि इसे बिना इलाज छोड़ दिया जाये तो सक्रिय टीबी से पीड़ित व्यक्ति हर साल 10 से 15 लोगों को संक्रमित कर सकता है. जिन लोगों को सामान्य टीबी है, जिस पर दवाअों का असर होता है, उनमें से 90 फीसदी लोग छह महीने में स्वस्थ हो जाते हैं.
प्रक्रिया अंतिम चरण में
पटना सहित कुल 14 जिलों के प्राइवेट सेक्टर में टीबी मरीजों को ढूंढ़ने के लिए एजेंसी के चयन की प्रक्रिया अंतिम चरण में है. इसके बाद एजेंसी मरीजों की मैंपिंग कर पहचान करेगी और उसके पूरे डिटेल्स हमें मुहैया करायेगी. इसके बाद हमारा काम शुरू होगा, हम उन मरीजों का इलाज करने के साथ काउंसेलिंग भी करेंगे ताकि अन्य लोगों में टीवी नहीं फैल सके.
-डॉ केएन सहाय, राज्य यक्ष्मा
पदाधिकारी, बिहार.

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