नयी दिल्ली/पटना : मुजफ्फरपुर बालिका गृह दुष्कर्म कांड को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवायी हुई. सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई को बिहार में गड़बड़ पाये गये 17 आश्रय गृहों की जांच करने का आदेश दिया है.सुप्रीम कोर्ट ने इन मामलों पर सुनवाई करते हुए कहा कि बिहार पुलिस अपना काम नहीं कर रही है. कोर्ट ने बिहार सरकार की उस मांग को ठुकरा दिया, जिसमें उसने जवाब दाखिल करने लिए और समय की मांग की थी.सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सीबीआई सभी मामलों की जांच के लिए तैयार है. इसलिए अब सीबीआई ही शेल्टर होम से जुड़े सभी मामलों की जांच करेगी. न्यायालय ने कहा बिहार में आश्रय गृह की जांच कर रहे सीबीआई अधिकारियों का तबादला बिना उसकी (न्यायालय) पूर्व अनुमति के नहीं किया जाये. वहीं, सीबीआई ने न्यायालय से कहा कि मुजफ्फरपुर आश्रय गृह मामले में सात दिसंबर तक आरोप पत्र दाखिल कर दिया जायेगा. ज्ञात हो कि टिस की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 17 आश्रय गृहों में गंभीर किस्म के आरोप लगे हैं. इसके साथ ही बुधवार को उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुरूप सीबीआई ने आज कोर्ट में संशोधित एफआइआर की कॉपी पेश की.
Muzaffarpur(Bihar) shelter home case: Supreme Court orders for transferring investigation against all the 17 shelter homes and their owners in the state to CBI. A TISS report had alleged sexual abuse of children. pic.twitter.com/ceYvc23Xb5
— ANI (@ANI) November 28, 2018
विदित हो कि मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को फटकार लगायी थी. उच्चतम न्यायालय ने बिहार के कई आश्रय गृहों में बच्चों के शारीरिक और यौन शोषण के आरोपों के बावजूद उचित कार्रवाई नहीं करने पर राज्य सरकार के आचरण को मंगलवार को ‘बहुत ही शर्मनाक’ और ‘अमानवीय’ करार दिया था. न्यायालय ने ऐसे मामलों में केंद्रीय जांच ब्यूरो से जांच कराने की हिमायत की है. न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने तल्ख शब्दों में कहा था कि ऐसे अपराध करने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के मामले में सरकार का रवैया ‘बहुत ही नरम’ और ‘पक्षपातपूर्ण’ रहा है.
पीठ ने बिहार सरकार से सवाल किया था कि क्या ये बच्चे इस देश के नागरिक नहीं हैं? शीर्ष अदालत ने बिहार सरकार की ओर से पेश वकील से सवाल किया कि आश्रय गृहों में बच्चों के साथ अप्राकृतिक अपराध के आरोपों के बावजूद ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत प्राथमिकी दर्ज क्यों नहीं की गयीं? पीठ ने राज्य सरकार के वकील से कहा, ‘‘आप क्या कर रहे हैं? यह बहुत ही शर्मनाक है. आपने विस्तृत हलफनामा (न्यायालय में) दाखिल किया होगा परंतु यदि किसी बच्चे के साथ अप्राकृतिक अपराध किया गया है तो आप यह नहीं कह सकते कि यह कुछ नहीं है. आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? यह अमानवीय है.’
इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति गुप्ता ने आरोपों और उनसे निबटने की पुलिस की कार्यशैली पर टिप्पणी करते हुए कहा था, ‘‘हर बार जब मैं यह फाइल पढ़ता हूं, मैं मामले की त्रासदी से रूबरू होता हूं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है.’ पीठ ने कहा था, ‘‘हमारा यही मानना है कि राज्य पुलिस अपेक्षा के अनुरूप अपना काम नहीं कर रही है. हम चाहेंगे कि सीबीआई इन आरोपों की जांच करे.
मुजफ्फरपुर आश्रय गृह कांड की जांच कर रही सीबीआई का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने कहा कि वह बुधवार तक इस बारे में आवश्यक निर्देश प्राप्त करेंगे. इस आश्रय गृह में अनेक महिलाओं और लड़कियों का कथित रूप से बलात्कार और यौन शोषण हुआ था. सीबीआई इस प्रकरण की जांच कर रही है. पीठ ने जांच ब्यूरो के वकील से कहा, ‘‘आप निर्देश प्राप्त कर लीजिये. आपको (सीबीआई) इन सबकी जांच करनी हाेगी. ऐसा लगता है कि इसमें और भी बहुत कुछ है. इसके साथ ही न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई बुधवार के लिये सूचीबद्ध कर दी थी.
बिहार सरकार के वकील ने न्यायालय को आश्वासन दिया कि सरकार इस मामले में सभी उचित कदम उठायेगी और वह अपनी सभी गलतियों को सुधारेगी. याचिकाकर्ता फौजिया शकील की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफडे ने दावा किया कि राज्य सरकार इन मामलों में ‘नरम’ रूख अपना रही है और इन मामलों में कम गंभीर अपराध के तहत प्राथमिकी दर्ज की गयी हैं. नफडे ने टिस की रिपोर्ट का जिक्र करते हुये कहा कि आश्रय गृहों में कई बच्चों के साथ दुराचार किया गया है और इनमें भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत मामला बनता है. बिहार के वकील ने जब यह कहा कि प्राथमिकी में पोक्सो के प्रावधानों को शामिल किया गया है तो पीठ ने कहा था, ‘‘यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो गयी हो और प्राथमिकी सिर्फ मामूली चोट का जिक्र करे तो आपको क्या लगता है कि इसे हम स्वीकार करेंगे.’
इस पर राज्य सरकार के वकील ने कहा कि वह सुनिश्चित करेंगे की दर्ज प्राथमिकी में धारा 377 भी जोड़ी जाये. पीठ ने सरकार के वकील से कहा, ‘‘अपने मुख्य सचिव (जो न्यायालय में मौजूद थे) से पूछिये. हमें पहले बताया गया था कि सरकार पूरी गंभीरता से मामलों पर गौर करेगी और यह गंभीरता आप दिखा रहे हैं. यह विडंबना है.’ पीठ ने कहा, ‘‘बिहार सरकार का यह रवैया है.’ पीठ ने शुरू में राज्य सरकार के वकील से कहा कि 24 घंटे के भीतर इन मुद्दों को ठीक किया जाये. बाद में, पीठ की राय थी कि इन सभी मामलों की जांच सीबीआई को करनी चाहिए क्योंकि यदि राज्य पुलिस इनकी जांच करती रहेगी तो सच्चाई कभी भी सामने नहीं आयेगी.
न्यायालय ने कहा था कि टिस की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 17 आश्रय गृहों में गंभीर किस्म के आरोप लगे हैं. राज्य सरकार के वकील ने जब यह कहा कि सात आश्रय गृह बेहतर स्थिति में मिले हैं तो पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘करीब 110 आश्रय गृहों में से सात आश्रय गृह. क्या आप बच्चों के प्रति कोई उपकार कर रहे हैं? सभी आश्रय गृह बेहतर क्यों नहीं हो सकते? आपको ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए? क्या ये बच्चे इस देश के नागरिक नहीं हैं?’ राज्य सरकार के हलफनामे का अवलोकन करने के बाद पीठ ने सवाल किया कि सिर्फ पांच बाल देखभाल संस्थानों से संबंधित मामलों में ही प्राथमिकी क्यों दायर की गयी. जबकि, ऐसी नौ संस्थायें थीं. पीठ ने कहा कि राज्य सरकार का रवैया पक्षपातपूर्ण है.