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पटना : सरकते जनाधार को बचाने में जुटी कांग्रेस, चल रहा मंथन का दौर, जानें कहां से कहां पहुंच गयी कांग्रेस
पटना : कांग्रेस पार्टी बिहार में अपने सरकते जनाधार को बचाने की तैयारी में जुट गयी है. इसे लेकर लगातार मंथन का दौर चल रहा है. दिल्ली में ओरिएंटेशन प्रोग्राम का आयोजन किया गया है. इसमें शामिल होने के लिए प्रदेश कांग्रेस के कुछ अधिकारी शुक्रवार को दिल्ली के लिए रवाना हो गये हैं. वहीं […]
पटना : कांग्रेस पार्टी बिहार में अपने सरकते जनाधार को बचाने की तैयारी में जुट गयी है. इसे लेकर लगातार मंथन का दौर चल रहा है. दिल्ली में ओरिएंटेशन प्रोग्राम का आयोजन किया गया है. इसमें शामिल होने के लिए प्रदेश कांग्रेस के कुछ अधिकारी शुक्रवार को दिल्ली के लिए रवाना हो गये हैं.
वहीं प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कामकाज की शैली, गुटबाजी, मतदाताओं की नाराजगी और चुनाव में चूक के कारणों को निष्पक्षता से जानने के लिए अन्य प्रदेशों के वरिष्ठ नेताओं को प्रभार देकर यहां भेजा गया है. इसमें शक्ति सिंह गोहिल और अल्पेश ठाकोर मुख्य रूप से शामिल हैं.
प्रदेश कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि कहने के लिए तो पार्टी में लोकतंत्र है, लेकिन आम कार्यकर्ताओं की बात नहीं सुनी जाती. वहीं नेताओं को भी अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तक कोई बात पहुंचाने का रास्ता पार्टी के महासचिव से होकर गुजरता है. इसके बाद महासचिव ही किसी भी बात को राष्ट्रीय अध्यक्ष तक पहुंचाते हैं. ऐसे में राष्ट्रीय अध्यक्ष से सीधा संपर्क नहीं किया जा सकता.
अविभाजित बिहार में कांग्रेस का प्रदर्शन
वर्ष सीटें
1951 239
1957 250
1962 185
1967 128
1969 118
1972 167
वर्ष सीटें
1977 57
1980 169
1985 196
1990 71
1995 29
2000 23
बिहार विभाजन के बाद कांग्रेस का प्रदर्शन
वर्ष 00000
2005 5
2010 5
वर्ष 00000
2015 27
कहां से कहां पहुंच गयी कांग्रेस
आजादी के बाद लंबे समय तक कांग्रेस की पहचान एक ऐसी राष्ट्रीय पार्टी की रही, जिसके पास सवर्ण हिंदू जातियों की अगुवाई में दलितों-अल्पसंख्यकों का विशाल जनाधार था. सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने संगठन और सत्ता में दलितों-अल्पसंख्यकों को वाजिब हिस्सेदारी कभी नहीं दी.
ऐसे में कांग्रेस का जनाधार खिसक कर अन्य दलों के पास चला गया. विश्लेषकों की मानें तो 1990 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने और आरक्षण की राजनीति में राजद के साथ महागठबंधन में कांग्रेस के शामिल होने पर सवर्णों ने भी इससे दूरी बना ली. इससे पहले ही 1989 में भागलपुर दंगे के बाद अल्पसंख्यक राजद के साथ चले गये. वहीं, दलितों ने रामविलास पासवान का दामन थाम लिया.
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल ने पांच सितंबर, 2018 को पटना में एक कार्यक्रम के दौरान शक्ति एप लांच किया. उन्होंने बताया इस एप के द्वारा पहली बार यह व्यवस्था की जा रही है कि कांग्रेस नेतृत्व किसी भी मुद्दे पर आम कार्यकर्ताओं से संवाद कर सकेंगे. साथ ही कार्यकर्ताओं को किसी प्रकार की परेशानी होने पर वे भी कांग्रेस नेतृत्व के सामने अपनी बात रख सकेंगे. इसके साथ ही संगठन मजबूत करने के लिए कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी दी जायेगी और कांग्रेस नेतृत्व उस पर निगरानी भी रखेंगे. इसका मकसद संगठन को मजबूत करना है.
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