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टॉपर घोटाले के बाद स्कूलों की रद्द मान्यता होगी बहाल

बोर्ड के आदेश को हाईकोर्ट ने किया निरस्त, कहा-समिति के चेयरमैन का निर्णय ही सब कुछ नहीं पटना : टॉपर घोटाले के बाद राज्य के सैकड़ों स्कूलों की मान्यता एक साथ रद्द किये जाने संबंधी बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के चेयरमैन के आदेश को पटना हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया. मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली […]

बोर्ड के आदेश को हाईकोर्ट ने किया निरस्त, कहा-समिति के चेयरमैन का निर्णय ही सब कुछ नहीं
पटना : टॉपर घोटाले के बाद राज्य के सैकड़ों स्कूलों की मान्यता एक साथ रद्द किये जाने संबंधी बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के चेयरमैन के आदेश को पटना हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया. मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस मामले में बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा दायर 50 से ज्यादा एलपीए (अपील) पर एक साथ सुनवाई कर उसे खारिज कर दिया. अदालत ने परीक्षा समिति की कार्रवाई को गैर कानूनी करार देते हुए स्कूलों की मान्यता को रद्द करने संबंधी समिति के चेयरमैन के आदेश को निरस्त कर कानून के तहत कार्रवाई करने का आदेश दिया है. खंडपीठ ने कहा कि बोर्ड सिर्फ चेयरमैन से ही नहीं होता है. बोर्ड का अर्थ है चेयरमैन सहित अन्य अधिकारियों की सहभागिता. बोर्ड में कोई भी निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ चेयरमैन को नहीं है. निर्णय लेने में
बोर्ड के अन्य अधिकारियों की सहमति लेने का भी कानून में प्रावधान बनाया गया है. कोई भी व्यक्ति या पद कानून से ऊपर नहीं है. खंडपीठ ने कहा कि बोर्ड को जो भी कार्रवाई करनी है वह कानून के तहत करे. खंडपीठ ने स्कूलों की संबद्धता से संबंधित सभी मामले को बोर्ड के समक्ष रखने का आदेश दिया. साथ ही खंडपीठ ने बोर्ड को कहा कि वह कानून के तहत स्कूलों को मान्यता देने के बारे में कार्रवाई करें.
सुनवाई के दौरान बोर्ड की ओर से महाधिवक्ता ललित किशोर ने कोर्ट को बताया कि बोर्ड के पूर्व चेयरमैन ने बगैर संसाधनों वाले स्कूलों को मान्यता दी थी लेकिन जांच के दौरान स्कूलों में कई खामियां मिलने पर उनकी मान्यता रद्द कर दी गयी.
स्कूलों की ओर से अधिवक्ता अरुण कुमार ने कोर्ट को बताया की स्कूलों की मान्यता देने व रद्द करने के लिए कानून में प्रावधान है, लेकिन बोर्ड के चेयरमैन ने अपने स्तर से स्कूलों की मान्यता रद्द कर दी.
पटना व नालंदा के पीपी अपने पद पर बने रहेंगे
पटना व नालंदा के लोक अभियोजक (पीपी) अपने पद पर बने रहेंगे. पटना हाईकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए कहा पटना और नालंदा के लोक अभियोजकों को हटाने संबंधी राज्य सरकार का आदेश गलत है.
अदालत ने कहा कि एकलपीठ के आदेश में किसी भी तरह के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है. एकलपीठ ने जो आदेश दिया है, वह सही है, इसलिए राज्य सरकार द्वारा दायर अपील को खारिज किया जाता है.
मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायाधीश राजीव रंजन प्रसाद की खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा दायर दो अपील पर एक साथ सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया. राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता ललित किशोर व अपर महाधिवक्ता अंजनी कुमार ने अदालत को बताया इन दोनों लोक अभियोजकों को हटाने को लेकर सरकार का जो निर्णय है वह सही है. क्योंकि कई मामलों में इन लोक अभियोजकों के ऊपर से सरकार का विश्वास समाप्त हो गया है.
इन लोक अभियोजकों द्वारा अदालतों में सरकार का पक्ष सही ढंग से नहीं रखा जाता रहा है. ऐसी स्थिति में ही इनको इनके पद से हटा कर दूसरे व्यक्ति की नियुक्ति इन दोनों जगहों पर लोक अभियोजकों के पद पर कर दी गयी है. वहीं, दूसरी ओर पटना के लोक अभियोजक गजेंद्र प्रसाद व नालंदा के लोक अभियोजक मंजर हसन खान की ओर से वरीय अधिवक्ता योगेश चंद्र वर्मा और राजेश रंजन ने अदालत को बताया कि इन दोनों लोक अभियोजकों को जिस आरोप में हटाया गया है, वह आरोप गलत है.
सरकार के पास इस तरह का कोई भी पुख्ता प्रमाण उपलब्ध नहीं है, जिससे यह प्रमाणित हो सके कि इन लोगों द्वारा अदालत में सरकार का पक्ष सही ढंग से नहीं रखा गया है. अदालत को बताया गया कि दोनों जिलों के जिलाधिकारियों ने अपने पदों का दुरुपयोग करते हुए इन दोनों लोक अभियोजकों को उनके पद से हटाने का निर्देश दिया है.
जबकि जिलाधिकारी को न तो लोक अभियोजकों की नियुक्ति करने का अधिकार है और न उन्हें हटाने का. जिलाधिकारी का काम यही है कि वह जिला जज द्वारा भेजे गये नामों को अनुशंसित कर विधि विभाग में भेजें. विधि विभाग द्वारा ही सरकार की सहमति के बाद लोक अभियोजकों के पद पर नियुक्ति की जाती है.

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