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राहुल गांधी ने बिहार की राजनीति में इस फैसले के जरिये दिया लालू की पार्टी को कड़ा संदेश, पढ़ें

पटना : सियासत में वक्त के साथ फैसले और समीकरण बदलते रहते हैं. राष्ट्रीय राजनीति के साथ बिहार की सियासत में अपनी शर्तों पर कदम उठाने वाले राजद सुप्रीमो लालू यादव चारा घोटाले में दोषी करार दिये जाने के बाद जेल में हैं. इधर, कांग्रेस ने बिहार की राजनीति से जुड़े, दो बड़े कदम उठाये […]

पटना : सियासत में वक्त के साथ फैसले और समीकरण बदलते रहते हैं. राष्ट्रीय राजनीति के साथ बिहार की सियासत में अपनी शर्तों पर कदम उठाने वाले राजद सुप्रीमो लालू यादव चारा घोटाले में दोषी करार दिये जाने के बाद जेल में हैं. इधर, कांग्रेस ने बिहार की राजनीति से जुड़े, दो बड़े कदम उठाये और राहुल गांधी ने अपनी मंशा इन कदमों के जरिये साफ कर दी. पहला फैसला अखिलेश सिंह को राज्यसभा भेजने का और दूसरा बिहार विधान परिषद से जुड़ा हुआ है. राहुल ने यह संकेत दे दिया कि उन्हें कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए भ्रष्टाचार से जुड़े सवालों और नेताओं से दूरी बनाकर रखनी है. हाल में बिहार विधान परिषद में कांग्रेस नेता प्रेमचंद्र मिश्रा को भेजना, इसी संकेत का एक बड़ा हिस्सा है.

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि राहुल गांधी ने प्रेमचंद्र मिश्रा को विधान परिषद में भेजकर यह साफ कर दिया है कि वह भ्रष्टाचार के मुद्दे पर थोड़ा भी नरम नहीं हुए हैं. अब लोगों के मन में सवाल उठ सकता है कि राहुल गांधी ने ऐसा क्या कर दिया है? इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने के लिए प्रेमचंद्र मिश्रा के राजनीतिक कैरियर पर निगाह डालना जरूरी हो जाता है.

बिहार की सियासत को बहुत नजदीक से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं कि कांग्रेस ने प्रेमचंद मिश्रा को विधान परिषद में भेजने का फैसला कर अपनी बदली रणनीति का संकेत दिया है. प्रेमचंद बिहार में कांग्रेस के शालीन और बौद्धिक चेहरा हैं. पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में उन्होंने अपनी बेहतर छवि बनायी है. वे पार्टी का बचाव मजबूती के साथ लेकिन तर्क संगत तरीके से करते हैं. बीच के छोटे से काल को छोड़ दिया जाये, तो वे लगातार कांग्रेस के साथ बने रहे हैं. एनएसयूआइ से शुरुआत कर यहां तक पहुंचे हैं. वह कहते हैं कि जब कांग्रेस में खाता न बही, जो केसरी कहे वही सही की बात कही जाती थी, उस समय वे सीताराम केसरी के प्रिय शिष्य थे. सीताराम केसरी की उंगली पकड़ प्रेमचंद ने उस काल में कांग्रेस का जो ककहरा सीखा, तो फिर पीछे मुड़कर नही देखा.

जानकार कहते हैं कि हालांकि उन्हें सदन के अंदर पहुंचने में काफी देर हुई. राहुल गांधी की पहल से बिहार विधान परिषद में भेजे गये प्रेमचंद्र की एक और पहचान है. बिहार के चर्चित चारा घोटाले की सीबीआई जांच के लिये हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर करनेवालों में वे भी थे. जिस घोटाले में लालू प्रसाद सजा भुगत रहे हैं. आज लालू प्रसाद के साथ कांग्रेस का गठबंधन है. ऐसे में प्रेमचंद को सदन में भेजकर राहुल गांधी की कांग्रेस ने राजद को सीधा संदेश दिया है कि चुनावी राजनीति में भले साथ हों, लेकिन भ्रष्टाचार कतई बर्दाश्त नहीं होगा. वैसे भी पार्टी के अंदरूनी सूत्रों की मानें, तो प्रेमचंद्र मिश्रा कभी भी लालू के करीबी नहीं रहे और इसका खामियाजा भी उन्हें कई बार भुगतना पड़ा.माना जाता है कि जब सोनिया गांधी के समय में कई बार बिहार कांग्रेस से जुड़े फैसले लालू से पूछ कर लिये जाते थे और लालू हमेशा अगड़े वर्ग से आने वाले प्रेमचंद्र मिश्रा को आगे बढ़ते देखना नहीं चाहते थे.

बहरहाल, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर राहुल की एक छवि, जो पार्टी नेताओं के सामने उभरती है, वह है भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अध्यादेश को सार्वजनिक रूप से फाड़ देना. राजनीतिक प्रेक्षकों की माने, तो कांग्रेस के नेताओं को वर्तमान अध्यक्ष राहुल गांधी का वह रूप याद है, जिसमें उन्होंने गुस्से से अध्यादेश को फाड़ दिया था. कांग्रेसकाशीर्ष नेतृत्व भले लालू के मामले पर काफी डिफेंसिव लगे, लेकिनपार्टी यह मानती है कि आपराधिक मामले और राजनीति में गठबंधन दो अलग-अलग बातें हैं. साथ में यह भी कहती है कि कानून को अपना काम करना चाहिए. पूर्व में कांग्रेस द्वारा मनमोहन सिंह की सरकार में लाया गया ऑर्डिनेंस, पूरी तरह लालू को बचाने के मकसद से तैयार किया गया था. वह, यदि अमल में लाया गया होता, तो आज लालू की यह हालत नहीं होती. वर्तमान अध्यक्ष राहुल गांधी ने उस अध्यादेश की कॉपी को फाड़ दिया और गुस्से के साथ विरोध भी जताया था.

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