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पहले नरेंद्र मोदी, अब नीतीश ने लगायी बिहार की बोली

सबकुछ एक व्यक्ति की छवि बनाने के लिए पहली बार नेता प्रतिपक्ष बने तेजस्वी 45 मिनट तक सीएम और भाजपा पर बने रहे हमलावर पटना : विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला करते हुए कहा कि 16 जून, 2013 से 26 जुलाई, 2017 तक के चार साल […]

सबकुछ एक व्यक्ति की छवि बनाने के लिए
पहली बार नेता प्रतिपक्ष बने तेजस्वी 45 मिनट तक सीएम और भाजपा पर बने रहे हमलावर
पटना : विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला करते हुए कहा कि 16 जून, 2013 से 26 जुलाई, 2017 तक के चार साल किस कारण बरबाद किया गया. चार साल में चार सरकारें बनीं.
बार-बार सरकार बनी, ऐसा क्यों हुआ, किसके लिए हुआ? कहीं सरकार बनाने बिगाड़ने का कामव्यक्तिगत कारण के लिए तो नहीं किया गया? क्या सरकार बदलने के इस खेल में बीजेपी कारण थी, क्या राजद इसका कारण था, जीतन राम मांझी जी या नीतीश कुमार इसके कारण थे. कहीं एक व्यक्ति की छवि बनाने के लिए तो ऐसा नहीं किया गया. पहली बार नेता प्रतिपक्ष बने तेजस्वी ने सत्ता पक्ष की टोका-टोकी के बीच अपनी बातें शुरू कीं.
करीब 45 मिनट तक धारा प्रवाह बोलते हुए तेजस्वी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने निशाने पर बनाये रखा. उन्होंने कहा कि महागठबंधन के लिए पांच साल के लिए जनादेश मिला था, तो पांच साल सरकार क्यों नहीं चली. चार साल बरबाद नहीं हुआ होता, तो विशेष राज्य का दर्जा मिल जाता. अधिकारी कंफ्यूजन में नहीं रहते.
विधानसभा की कार्रवाई शुरू होते ही उन्होंने अपनी बातें रखनी शुरू कीं. विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी ने नेता विपक्ष के नाते उन्हें अपनी बात रखने को कहा.
विरोधी दल के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने कहा कि वह सदन में नये मंत्रिपरिषद के पक्ष में लाये गये विश्वासमत का विरोध करते हैं. अपने भाषण में सवालिया लहजे में उन्होंने पूछा कि 2013 में भाजपा के मंत्रियों को नीतीश कुमार ने क्यों बरखास्त किया था. क्या बीजेपी वाले लोगों ने भ्रष्टाचार किया था?
भाजपा के पास 91 विधायक थे, तो सत्ता से दूध की मक्खी की तरह बाहर कर दिया. राजद के पास 80 विधायक हैं, पर नीतीश कुमार उनका इस्तीफा नहीं ले सके. इसका कारण था कि बीजेपी के लोग लालची थे. महागठबंधन के 20 माह का कार्यकाल बीजेपी के 29 माह के कार्यकाल से बेहतर है.
राजद ने बचाया था वजूद
मुख्यमंत्री पर हमलावर तेजस्वी ने कहा कि नीतीश कुमार के राजनीतिक वजूद बचाने का काम राजद व कांग्रेस ने किया है. नीतीश कुमार अपनी छवि विकास पुरुष की साबित करना चाहते हैं, तो जब अकेले चुनाव लड़े तो पता चल गया. 1995 में 324 सीटों वाली विधानसभा में सात सीट पर आ गये थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में अकेले चुनाव लड़े तो दो सीट पर सिमट गये. शायद यह उनकी छवि का या काम का असर है, जब वह अकेले लड़ते हैं तो इक्के-दुक्के सीट पर ही जीत पाते हैं.
पूरी प्लानिंग के साथ गये भाजपा के साथ
अपने ऊपर भाजपा के हमले और सीबीआइ की छापेमारी का बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि उस समय जदयू के लोग चुप थे. जदयू प्रवक्ता अमरूद खाते रहे.
उस समय वह क्यों नहीं बोले. इसका एकमात्र कारण था कि नीतीश कुमार एक सोची समझी रणनीति के तहत भाजपा के साथ जायें. पूरी तरह से प्लानिंग की गयी. इसी प्लानिंग में परसो रात में जो बातें हुई. पहले मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दिया. उनके इस्तीफे का बहुत ही दु:ख है. उनके साथ दो साल काम करने का मौका मिला. पर कभी नीतीश कुमार पर किसी तरह का दबाव नहीं था. राजद बड़ी पार्टी थी, पर कोई दबाव नहीं था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते थे कि भविष्य तो आप नौजवानों का है. भाजपा और संघियों से लड़ना है.
पर, सुशील कुमार मोदी सत्ता में कैसे आ गये. सच तो यह है कि तेजस्वी तो एक बहाना था, नीतीश कुमार को बीजेपी में जाना था. एक 28 साल का युवा निर्णय लेता है तो इसे निगेटिव रूप में देख रहे हैं. इसी उम्र में झूठा मुकदमा झेल रहे हैं. इस उम्र में उन्होंने क्या-क्या नहीं देखना पड़ रहा है. जो युवा देश को प्रगति की ओर ले जाना चाहते हैं वह उदास है. उनको मालूम है कि तेजस्वी को मोहरा बनाया जा रहा है. इसका जवाब देश को देना होगा. उन्होंने पूरी ईमानदारी से काम किया है.
मंत्री स्तर तक नहीं आयी कोई टेंडर की फाइल
जितने विभाग उनके पास थे, इसमें निर्णय लिया गया था कि कोई टेंडर की फाइल मंत्री स्तर तक नहीं आयेगी. मंत्री को टेंडर के ईंट-पत्थर की जानकारी नहीं होती. मुझे मालूम था कि टेंडर की फाइल उनके पास आती तो उनको फंसा दिया जाता. अपने घर पर पड़े सीबीआइ की छापेमारी को लेकर बताया कि जब रेड पड़ा तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीमार पड़ गये. राष्ट्रपति चुनाव था, मीरा कुमार पटना आयी थीं तो मुख्यमंत्री राजगीर चले गये. सोनिया गांधी से बात की पर यूपीए की बैठक में दिल्ली नहीं गये. जब प्रधानमंत्री के साथ लंच की बात आयी तो दिल्ली चले गये. पहले से ही बीजेपी के साथ जाने का मन बना था.
40 मिनट तक बात, नहीं मांगा इस्तीफा
लालू प्रसाद भी गठबंधन बनाने के लिए सीएम को लगातार फोन करते रहे. पर सीएम का एक बार भी फोन नहीं आया. सीएम ने उनसे 40 मिनट तक बात की. कभी इस्तीफा नहीं मांगा. भाजपा का हमला जारी रहा पर राजद की कोशिश रही कि महागठबंधन बना रहे. सीएम को बताया गया था सीबीआइ छापेमारी और एफआइआर में त्रुटि है. उनसे पूछा गया कि सीबीआइ छापेमारी पर क्या जवाब दे,ं इसका वह ड्राफ्ट बना दें. अगर लालू प्रसाद या वह कोई सफाई देते तो केंद्रीय एजेंसिया लीगल एडवाइस में शामिल कर और मुकदमा को जटिल बना देती. उन्होंने दो साल के कार्यकाल में ऐसा क्या किया है. इसके लिए जितना ढकोसला किया गया, वह केवल इंडिविजुअल के छवि बनाने के लिए किया गया. यह सब प्लाॅट इसलिए तैयार किया गया, ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार आ सकें.
पहले नरेंद्र मोदी, अब नीतीश ने लगायी बोली
तेजस्वी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस समय बिहार की बोली लगायी, हो सकता है कि अब नीतीश कुमार और जदयू की बोली लगायी हो.
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि देश का ऐसा कोई राज्य नहीं होगा, जहां भाजपा का मुख्यमंत्री न हो. सच तो यह है कि जदयू से अलग मुख्यमंत्री की विचारधारा है. मुख्यमंत्री की विचारधारा दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक विरोधी है. लालू जी पर पहले से ही पशुपालन घोटाला का आरोप था. आरोपी भी हो गये थे. इसकी जानकारी मुख्यमंत्री को थी.

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