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बिहार के इस जिले में बन रहा चीन को टक्कर देने वाला झूला, कभी यहां लगा रहता था कबाड़…

Bihar News: बिहार के नालंदा जिले का कन्हैयागंज गांव झूला निर्माण का हब बन चुका है. करीब 45 साल पुरानी इस परंपरा से जुड़ा उद्योग अब एक हजार से ज्यादा कारीगरों को रोजगार दे रहा है. यहां के झूले देश के हर कोने में मेलों की रौनक बढ़ा रहे हैं.

Bihar News: नालंदा जिले के एकंगरसराय प्रखंड का कन्हैयागंज गांव आज झूला निर्माण के लिए पूरे देश में जाना जाता है. एक समय में गुमनाम रहा यह गांव अब झूला बनाने का बड़ा केंद्र बन चुका है. यहां तैयार झूले देशभर के मेलों और प्रदर्शनियों में लोगों के मनोरंजन का जरिया बनते हैं. गांव की आधी से ज्यादा आबादी इस काम से जुड़ी है और रोजाना करीब एक हजार कारीगर इसमें मेहनत करते हैं.

पलायन रोकने की ओर बड़ा कदम..

खास बात ये है कि यहां सिर्फ बिहार के नहीं, बल्कि दूसरे राज्यों के कारीगर भी आकर काम करते हैं. इस झूला उद्योग ने गांव के लोगों को दिल्ली, कोलकाता, लुधियाना और गुजरात जैसे बड़े शहरों में काम की तलाश में जाने से रोक रखा है.

45 साल पहले हुई थी कारोबार की शुरुआत

इस कारोबार की शुरुआत करीब 45 साल पहले हुई थी, जब गांव के विश्वकर्मा समुदाय के एक कारीगर ने झूले का एक पुर्जा तैयार किया था. पहले ये कारीगर खेती के औजार बनाते थे और मनोरंजन से जुड़ी चीजों की उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं थी. लेकिन जैसे-जैसे झूलों की मांग बढ़ी, इन्होंने अपना हुनर उसी ओर मोड़ दिया. एक बार जब एक पुराना और टूटा झूला मरम्मत के लिए गांव में लाया गया, तो यहां के कारीगरों ने उसे इतना अच्छा बना दिया कि लोगों का ध्यान इस ओर गया. इसके बाद से यह काम तेजी से बढ़ा और आज यह कारोबार चौथी पीढ़ी तक पहुंच चुका है.

चीन को सीधे टक्कर दे रहे कारीगर

पहले झूले सिर्फ गुजरात में बनते थे और चीन की तकनीक से मुकाबला करना मुश्किल था. लेकिन अब कन्हैयागंज में ऐसी तकनीक तैयार हो चुकी है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर की है. यहां यूनिक डिजाइन वाले ऑटोमैटिक झूले बनाए जा रहे हैं, जैसे – ‘तरंग’, ‘सुनामी’ और एक नया आधुनिक झूला भी तैयार किया जा रहा है.

(जयश्री आनंद की रिपोर्ट)

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Preeti Dayal
Preeti Dayal
प्रभात खबर डिजिटल, कंटेट राइटर. 3 साल का पत्रकारिता में अनुभव. डिजिटल पत्रकारिता की हर विधा को सीखने की लगन.

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