Bihar Historical College: राजेन्द्र साहित्य महाविद्यालय, यह वही जगह है, जहां कभी आजादी की लड़ाई लड़ने वाले वीर सेनानियों की बैठकों से गांव की गलियां गूंजा करती थीं. अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ योजनाएं यहीं बनती थीं. 1936 में जब भारत अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था, तब डॉ. राजेन्द्र प्रसाद स्वतंत्रता सेनानियों के आग्रह पर सेबदह गांव पहुंचे. वहां उन्होंने एक जनसभा को संबोधित किया. उस ऐतिहासिक सभा में कई बड़े नेता और स्वतंत्रता सेनानी भी मौजूद थे, जिनमें प्रमुख थे – राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन.
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने की थी कॉलेज की स्थापना….
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने 1937 में इसी गांव में एक शैक्षणिक संस्था की नींव रखी थी. एक ऐसा संस्थान जो शिक्षा को सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रखता था, बल्कि आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक भी बन गया था.
महिलाओं को मिलती थी व्यावहारिक शिक्षा भी….
राजेन्द्र साहित्य महाविद्यालय उस समय एक अलग सोच के साथ काम करता था. यहां महिलाओं को वैद्य, शिक्षक और कलाकार बनने की पढ़ाई करवाई जाती थी. किताबों के साथ-साथ उन्हें असल जिंदगी से जुड़ी चीजें भी सिखाई जाती थीं. जैसे – सिलाई, कढ़ाई, मधुमक्खी पालन, खेती और हाथ से चीजें बनाना. खासकर महिलाओं को अलग से ट्रेनिंग दी जाती थी.
जरूरतमंद बच्चों के लिए होती थी खेती…
हित कुमार जी ने इस कॉलेज के लिए 7-8 बीघा ज़मीन दान में दी थी, जहां खेती होती थी.उससे मिलने वाला अनाज जरूरतमंद छात्राओं के काम आता था. यह कॉलेज गांधीजी के सिद्धांतों पर चल रहा था, जो लोगों को आत्मनिर्भर बनाना चाहता था. यह सिर्फ पढ़ाई नहीं, बल्कि गांवों के लिए एक अच्छा विकास मॉडल भी था.
दूर-दूर से छात्र आते थे पढ़ने….
बिहार के इस कॉलेज की पढ़ाई इतनी अच्छी थी कि बंगाल, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से भी छात्र यहां पढ़ने आते थे. इसकी पहचान केवल पढ़ाई की वजह से नहीं थी, बल्कि उन लोगों की वजह से भी थी, जिन्होंने इसे एक जिवंत संस्था बनाया.
यहां से निकले जाने-माने चेहरे
इस कॉलेज ने कई नामी लोगों को आकर्षित किया. आजादी के बाद कैबिनेट मंत्री रहे लाल सिंह त्यागी ने भी यहां पढ़ाई की और सेवा दी. इसके अलावा, भोला सिंह, इंदर सिंह नामधारी और स्व. राजो सिंह जैसे प्रतिष्ठित लोगों ने भी यहीं से शिक्षा ली. इन सभी ने न सिर्फ अपने क्षेत्र में नाम कमाया, बल्कि इस संस्था की पहचान को भी आगे बढ़ाया.
हिंदी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने में निभाई भूमिका
इलाहाबाद स्थित ‘हिंदी साहित्य सम्मेलन’ की स्थापना 1910 में हुई थी. इसने हिंदी भाषा और साहित्य को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई. यह कॉलेज भी इसका मजबूत साथी था. इस जुड़ाव ने सुनिश्चित किया कि यहां की शिक्षा में हमेशा राष्ट्रीय और सांस्कृतिक मूल्यों की झलक बनी रहे. यही संबंध इस कॉलेज को खास बनाता है.
कॉलेज की जर्जर हालत
आज राजेन्द्र साहित्य महाविद्यालय की हालत बेहद खराब है. इसकी इमारतें समय के साथ टूट चुकी हैं, लेकिन आज भी यह कॉलेज अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाता है. एक समय था जब यह कॉलेज शिक्षा के क्षेत्र में नालंदा जैसे बड़े संस्थानों से जुड़कर काम करता था. उस दौर में यह छोटा कॉलेज भी ज्ञान का एक अहम केंद्र था.लेकिन आज़ादी के बाद कई कारणों से इसकी चमक फीकी पड़ गई है.
(जयश्री आनंद की रिपोर्ट)
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